पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५१६

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यन्त्रनाल-यम यन्त्रनाल ( स० क्ला० ) वह नल जिसके द्वारा कूए यन्त्रागार मात्र, वह स्थान जहां कल या यतादि हो । आदिसे जल निकाला जाता है। | यन्त्राश ( स० पु०) एक राग जो इनुमतके मंतसे हिंडोल यन्त्रपुत्रक (स० पु०) कलकी पुतली। रागका पुत्र है। यन्त्रपेपणी ( स० स्त्री०) पिण्यतेऽनयेति पिप-करणे ल्युट् यन्त्रिका ( स० स्त्री०) यन्त्रयति कृतकौतुकापीड़यतीति ङोप, यंत्रमेव पेपणी। पीसनेको यन, चक्की। यन्त्रि ण्वुल, टागि अत इत्वं । १ स्त्रीकी छोटी बहन, छोटी .. यन्तप्रवाह (सं० पु० ) १ यन्त्र द्वारा परिचालित जलस्रोत | साली। २ छोटा ताला। २ दमकल। यन्तित (सं० वि०) यात्रि-क्त । १ जो यत्र आदिको सहा- यन्त्रमन्त्र (सं० पु०) जादू, टोना। यतासे वांधा या बंद कर दिया गया हो रोका या व यन्नमय ( स० त्रि०) मन्त्रसम्वन्धोय, यन्त्रगठित किया हुआ। २ ताला लगा हुआ, तालेमें वंद। . . यन्त्रमातुको स० स्त्री०) चौंसठ कलाओंमें से एक कला । यन्तिन् ( स० वि० ) यंत्र अस्त्यर्थे इन् वा यनयति इसमें अनेक प्रकारके यन्त्र या कलें आदि बनाना और | रध्नाति यानि वन्धने णिनि । १ वन्धकारक, यत्रमंत्र उनसे काम लेना सम्मिलित है। करनेवाला, तांत्रिक। २वाजा बजानेवाला। यन्त्रमार्ग ( स० पु० ) जलप्रणाली, खाल । यन्ति (स० वि०) यन्त्रिन् देखो। यन्त्रयुक्त ( स० वि० ) १ यन्त्रसमन्धित, यन्त्र मिला| यन्त्रोपल ( स०पु०) चक्कीका पत्थर । हुआ। २ हाल दांड़ और पालयुक्त नाव आदि। | यन्द (हिं० पु० ) स्वामी । यन्त्रराज (संपु०) ज्योतिषमें एक यन्त जिससे ग्रहों | यनिमित्त (सं० अव्य०) जिस कारणसे, जिसके लिये। •और तारोंकी गति जानी जानी है। यन्महिष्टीय ( स० क्लो०) सामभेद। धन्त्रवत् (स'० त्रि०) यन्तः विद्यतेऽस्य यन्त्र अस्त्यर्थे | यन्मध्ये (सं० अव्य ) जिसके भीतर अन्दर । मतुप मस्य व। यन्त्रविशिष्ट, यन्त्रयुक। यन्मय (सं० वि०) यद्व्याप्त । यत् स्वरुप, जैसा। यन्त्रविद्या ( स्त्री) कलोंके चलाने और बनानेकी यन्मान ( स० त्रि०) जिस परिमाणमें। .. विद्या। यन्मू नि (सं० पु०) जिसका शिर। यन्त्रशर (स' पु० ) वह अस्त्र जो यन्त्रको सहायतासे | यम (स० पु०) यमयति नियमति जीवानां फलाफलमिति फेंका जाता है। यम-अच। १ भारतीय आर्योंके एक प्रसिद्ध देवता जो यन्त्रशाला (स० स्त्री० ) १ वेधशाला । २ वह स्थान | दक्षिण दिशाके दिक्पाल कहे जाते हैं और आज कल जहां अनेक प्रकारके यन्त्रादि हों। मृत्युके देवता माने जाते है। पर्याय-यमराज, पितृ- यन्त्रसूत्र ( स० पुं० ) वह सूत्र जिसकी सहायतासे कठ पति, समवत्ती, परेतरार, कृतान्त, यमुनाभ्राता, शमन, पुतली नचाई जाती है। यमराट, काल, दण्डधर, श्राद्धदेव, वैवस्वत, अन्तक, यन्तापीड़ (सं० पु.) एक प्रकारका सन्निपात ज्वर । धर्म, जीवितेश, महिषध्वज, औडुम्वर, दण्डधार, कोनाश, इसका लक्षण- दध्न, महिपवाहन, शीर्णपाद, भामशासन, कङ्क, हरि "पेन मुहुवरवेगात यणावापी ऽयते गात्रम्। कर्मकर । ( जटाघर) रक्तपीतञ्च भवेत यन्त्रापीड़ः स विज्ञेयः ॥" (भावप्र०) वैदिक विवरण जिस सन्निपात ज्वरके कारण शरीरमें बहुत वैदिक निघण्टु प्रथमें (५५) 'यम' और 'मृत्यु'- अधिक पीड़ा होती है और रोगीका लहू पीले रंगका हो | पृथक् रूपले उल्लेख है। व्याख्याकारोंके मतकी आलो- आता है उसे यत्रपीड़ कहते हैं। चना करनेसे भी मालूम होता है, कि मृत्यु और यम यन्तारूढ़ (सति०) यंत्र पर रखा हुआ। विभिन्न वैदिक देवता हैं। निरुक्तकार यास्क, नैघण्टुक यन्त्रालय (सं० पु०) १ मुद्रायन्न, छापाखाना | २ काण्ड-निर्वचनकार देवराजयज्वा तथा निरुकटीकाके Vol. XVIII, 129