पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५१७

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यम . दुर्गाचोर्यके मतसे. जो प्राणिमात्रके मारक हैं, वे ही मृत्यु। योषाके पुत्र हैं ।" ( १०।१०४ ) ऋग्वेदके कई हैं, अर्थात् वह देवता जो मरने पर भोगायतन देहसे स्थानों में यमको वरुण कहा है और उनका अग्निके जीवात्माको विमुक्त करते हैं। दुर्गाचाने मृत्यु और साथ एकत्र वर्णन देखा जाता है। कहीं कही अग्नि यमकी भिन्नताको स्वीकार कर कहा है, "मृत्यु-देवता और यम (१०१२१) अभिन्न भावमें उल्लिखित हैं। फिर निश्चय ही मध्यलोकसञ्चारी वायु हैं।" किन्तु यमके कहीं (१११६४ सूत ) अग्नि, यम और मातरिश्याका सम्बन्धमें महामुनि यास्कने लिखा है, "जो जोवमानको | एकत्र अभिन्नरूपसे वर्णन देखनेमें आता है। हो कमोनुयायो स्थान प्रदान करते हैं, वे ही यम हैं।" प्रेत ( मृत व्यक्तिगण ) स्वर्ग जा कर सबसे पहले देवराजयज्वाने उक्त निर्वचनानुसार दानार्थ दा धातुसे यम और वरुणको देखते हैं। (१०।१४ सूत ) ऋग्वेदके कत्तं वाच्यमें अच् प्रत्यय करके 'यम' पदको सिद्ध किया| वर्णनसे प्रतीत होता है, कि यम मृत पितरों के विशेषतः हैं और कहा है, कि यम नभश्चारी वायुविशेष हैं। यास्का आङ्गिरसोंके अधिपति हैं। परवत्तीं तैत्तिरीय आरण्यक प्रदर्शित यमदेवताकी स्तुतिमें 'सङ्गमनं जनाना' अर्थात् (६५) और आपस्तम्ब-श्रौतसूतमें (१६६ ) यमक जो कर्मफलभोगी जीवोंको इस लोकसे दूसरे लोकमें ले घोड़ोंका वर्णन है। उनके खुर लौहमण्डित और चक्ष जाते हैं वे ही यम हैं। मतपय उपरोक्त घटनासे स्पष्ट सुवर्णज्योतिविशिष्ट हैं। अथववेदमें भी ( १८१२ सू०) मालूम होता है, कि मृत्यु और यम कार्यतः भिन्न होने लिखा है, कि वे हो मृत व्यक्तियोंको आश्रम देते तथा पर भी दोनों में बहुत कुछ सदशता देखी जाती है। भविष्य वास स्थान ठीक करते हैं। फिर भवममण्डलके अथर्ववेदमें "य: प्रथमः प्रवतमाससादः यमाय नमो अस्तु ११३ व सूक्तमें आकाशके दूरवत्ती तथा उच्चतम अंशमें मृत्यवे" (६.२८॥३) इस मन्त्र द्वारा यम अन्यान्य सभी | यमका स्थान कल्पित हुआ है। त्रिलोकमें मध्य दो देवोंसे श्रेष्ठ हैं तथा 'मृत्यु' नामसे ही उनकी पूजा होती सवितृलोक और तीसरा यमलोक है। वाजसनेय- है। यहां यम और मृत्यु दोनों एक है। ऋग्वेदके संहिताके वर्णनानुसार यम यमीके साथ उच्चतम स्वर्ग- १०११८०१ मन्त्रमें मृत्यु देवताकी स्तुति देखी जाती है। में विराजित हैं तथा उनके चारों ओर दिव्य सङ्गीत और फिर १११४१ मन्त्रमें यमका पूजनीयत्व घोषित हुआ है। वीणाध्वनि हो रही है। देवराजके ध्याख्यानुसार इसका अर्थ है, जो देवता सम- यम और यमकी कथोपकथनमें यमीने यमको सर्च तलवासी, मध्यप्रदेशवासी, निम्नदेशवासी सभी भूत- प्रथम मरणशील बतलाया है। यम हो सबसे पहले जातिसे परिचित है, जो क्या पुण्यवान, क्या पापी | देहत्याग कर मरणपथके नेता हुए है। फिर अथर्ववेद सभीका गन्तव्य मार्गदर्शक हैं, जो विवखई धके प्रशंसा (६२८) में मृत्युको यमका पथस्वरूप भी बतलाया .मोय पुत्र हैं, जो पक्षपातशून्य हृदयमें कर्मफलानुसार है। ऋग्वेदमें यमकी विभीषिकाका विशेष उल्लेख तो जीवोंको इस लोकसे दूसरे लोकमें जानेके लिये उपयुक्त देखने में नहीं आता पर अथर्ववेद में यम विभीषिकास्व- शरीर दान करते हैं, जो प्राणधारी जीवमानके ही राजा कहे जाते हैं उस 'यम' नामक देवताको हविः प्रदान द्वारा ऋग्वेद (१०११६५ सू०) मैं एक उल्लू या कपोतको पूजा करो। यमका दूत कहा है। यह उल्लू मृत्युका नामान्तर ___ इससे यमको पूजनीयता अच्छी तरह समझो जाती मात्र है। अथर्ववेद ( स० ) में इस रूपकका उल्लेख देखनेमें आता है। किंतु यमके यथार्थ दूत ..वेदमें कई जगह यम और उनकी वहिन यमो (वा (१०३१४) ही भोषण कुत्ते हैं। उनमेंसे एक भिन्न यमुना) को विवखत और सरण्युकी यमज सन्तति वत भिन्न रंगका और दूसरा साँवला है। उनके चार लाया है। (ऋग्वेद १०११०२) यम और यमोकी कथो- सफेद आँख और बड़ो नाक है। दोनों सरमा (देवता- पक्रधनमें यम कहते हैं, "हम लोग गन्धर्व तथा अप्या ! ओंकी एक कुत्तिया ) के पुत्र है। वे यमके पथको रक्षा