पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५२०

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यम ५१७ मनुष्यलोकसे यमलोक ८६ हजार योजन दूर है । उक पुराणके उत्तरखण्ड १६वें अध्यायमें भी यममार्ग- . इस महापध हो कर ही पापी मनुष्य यमलोक जाते हैं। का विवरण है। वहां "यमश्चतुर्भजो भृत्वा शङ्खचक्रगदादि- वहां गले हुए तविकी तरह अग्निस्रोत हमेशा वही करता | भृत्"-अर्थात् यम चतुर्भुज और शङ्खचक्रगदाधर हैं । वे है। कोई स्थान कांटोंसे भाकीर्ण है और कोई अग्नितुल्य अञ्जनाद्रिसमप्रभाविशिष्ट है, महिपको सवारी है और उत्तप्त वालको कणसे व्याप्त है। वहां वृक्षादि भी नहीं है, कि प्रलयकालीन जलधरकी तरह गरजते हैं। उनका शरीर .प्रेतगण विश्राम करें। उस भीषण यममार्गमें भूख प्यास तीन योजन विस्तृत है। हाथमें भीषण लौहदण्ड और गादि वुझानेका कोई उपाय नहीं है। जिसने जैसा पाप | पाशास्त्र है। आँखोंसे विजलीके समान अंगार निकल किया है वह उसी प्रकारके पथसे यमलोक जाता है। रहे हैं । किन्तु उनको दोनों भयानक आँखें वन हैं। यम पापियोंके यन्त्रणासूचक उच्च चीत्कारसे पत्थर भी पापियोंको बुला कर उनके किये हुए दुष्कर्मोंके लिये विदीर्ण हो जाता है। . भय दिखलाते है। याम्य और नैऋत कोणके मध्य वज्रमय सुरासुरको उक्त पुराणके १६वें अध्यायमे चित्रगुप्तपुरका अभेद्य चैवस्वत यमकी पुरी बनी है। वह पुरी चौकोन, वर्णन है। है. उसमें चार दरवाजे और सात तोरण हैं। यम वहां . वराहपुराण ( १९६ अ० ) में नचिकेताने यमा- पर दूतोंसे घिरे हुए हमेशा बैठे रहते हैं वह यम-भवन लयादिका जो वर्णन किया है, वह इस प्रकार है-- हजार योजन विस्तृत है और समुज्ज्वल विधज्ज्वाला प्रेतपतिका नगर चार हजार योजन लंबा और दो वा सूर्यतेजकी तरह चमक रहा है। सर्वरत्नविमण्डित हजार योजन चौड़ा है। इस नगरमें नाना प्रकारके यम-भवन पांच सौ योजन ऊंचा है। वह भवन वैदुर्य- वर्णमण्डित हय॑प्रासाद और अट्टालिका हैं। कैलास- मणिमण्डित सहस्त्र गोलाकार स्तम्भोंसे घिरा है। उसके । शिखरके समान ऊंचे सोनेके प्राचीरसे यह नगर घिरा .झरोखे मुक्काजालमण्डित है और उस पर एक सी है। वहांको सभी नदियां विमलसलिलशालिनी और पताका फहरा रही हैं। एक सौ फाटकों पर लगातार दिधिका नलिनीमण्डिता हैं। बड़े बड़े पोंसे हाथी. घंटाध्यनि हुआ करता है। वहां भगवान् धर्म दश । घोड़े तथा असंख्य नर-नारी आती जाती है। हमेशा योजन विस्तीर्ण नीलाम्बरसन्निभ आसन पर बैठे हैं। शोरगुल हुआ करता है। कोई नाचता है और कोई वे हो धर्मके नियन्ता, पापियोंके भयदाता और धार्मिकों- रोता है। वहांकी सवसे श्रेष्ठ नदीका नाम पुष्पोदका है। के सुखदाता हैं। उनके चारों ओर वेणुध्वनि होती और उसके दोनों किनारे एक पंक्तिमें तरह तरहके वृक्ष शोभा शंख बजाते हैं। दे रहे हैं। नदीका जल सुशीतल और सुगन्धित है। . . यमपुरोके मध्य चित्रगुप्तका घर शोभता है। वह उस जलमें विशाल जांघवाली गन्धर्व-रमणियां हमेशा बोस योजन विस्तीर्ण है और दश योजन ऊंचे लोहेके | जलक्रीड़ा करती हैं। यमलोकके सुवर्णनिर्मित अट्टा. प्राचीरसे घिरा है। ऊपरमें सैकड़ों पताका शोभती | लिकाओं तथा पुष्पोदको जलमें दियाङ्गना अप्सरायें और तरह तरहकी गीतध्वनि होती है। घरके मध्य | तथा किन्नरियां नाना प्रकारको क्रीड़ा द्वारा पुण्यवान् मणिमुक्ताका आसन विछाया हुआ है। उस आसन | लोगोंको प्रसन्न किया करती हैं। दिव्याङ्गनाओंके भूषण- पर चित्रगुप्त वैठ कर मनुष्यकी आयु गणना करते हैं। शिक्षन तथा जलतुर्यनिनादसे वह पुष्पोदिका अमरावती- और कायस्थोंके साथ अठारह प्रकारके दोपोंसे रहित | की मन्दाकिनीको भी मात करती है। यमालयके मध्य- हो मनुष्यको सुकृतिका परिमाणं लिखते हैं। उनके चारों | स्थलमैं वैवखती नामकी एक और महानदी है। उसके गोर सब प्रकारको व्याधि मूर्ति धारण कर खड़ी है। जलमें कुन्द इन्दुवर्णके हंस सदा विचरण करते हैं तथा सौ हजार यमदूत तरह तरह के हथियारसे पापियोंको | उत्तप्त कनका तिसम्पन्ना कमलिनी सदा प्रस्फुटित सजा देते हैं। | रहती हैं। सभी सोपान सोनेके वने है और जल Vol, XIIII, 130