पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५२१

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यप अमृतके समान स्वादिष्ट और सुगन्धित है। उस नदीमें | द्विवाह, विवाहु, वहुवाहु, शंकुकर्ण, महाकर्ण, इस्तिकर्ण सुन्दर मदमाती देववाला तरह तरहकी वाद्यध्वनिके आदि यमदूत नाना आभरणोंसे भूषित तथा कुठार, साथ गीत गाती हैं जिसे सुन कर दर्शक अपनेको भूल कुदाल, चक्र, शूल, शक्ति, तोमर, धनु, असि, मुद्र जाते हैं। यमपुरकी ऐसी छटाके सामने अमरावतीका आदि अत्रोंसे सजित हो पापियोंको कष्ट देते हैं। चारुचित्र भी मलिन हो जाता है। ऐसे रमणीय | अन्यान्य यमदूतगण दधि, गन्ध, तरह तरहके खाद्य वस्त्र यमालयमें प्रवेश करनेके दो दरवाजे हैं। उनमेंसे एक और सवारियां ले कर पुण्यात्माओंकी अपेक्षा करते हैं। सोनेका वना है और दश योजन चौड़ा है तथा दोनों पूर्वोक्त यमसभाके मध्यस्थलमें प्रेतपुराधिपति वैठते वगल ऊचो दीवार खड़ी है। इस पथसे देवता, ऋषि | हैं। इसी यमलोकमें चित्रगुप्तपुर अवस्थित है। इस और पुण्यात्मागण प्रवेश करते हैं। यह पध नानायन्त्र चित्रगुप्तपुरमें वैतरणी नदी वहती है। यहां नाना सुशोभित और शतप्रासादसमांकीर्ण हैं। दूसरा दर प्रकारके सुकृत और दुष्कृतका स्थान विद्यमान है। वाजा लोहेका है। वह भयानक और पापियों के लिये बराहपु. १६६-२०५ अ० देखो। बना है। यह पथ प्रचण्ड अग्निसे उत्तप्त रहता है। ! ज्योतिषिक । जो पापी, नृश'सक और दुरात्मा हैं वही इस पथसे सुप्रसिद्ध पण्डित बाल-गङ्गाधर तिलकने Orion प्रवेश करते हैं। और Arctic Home in the vedas नामक पुस्तकमें ___ इस रमणीय यमालयमें मृत व्यक्तिके विचारार्थ वैदिक ज्योतिषका उद्धार कर यमपथ और पितृलोकका सुन्दर रत्नमयी दिव्य यमसभा है। इस सभामें जिते- जो वर्णन किया है वह इस प्रकार है- न्द्रिय वीतराग तपस्विगण रहते हैं। यह सभा पापो विष्णुपुराण पढ़नेसे मालूम होता है, कि देवयान और पुण्यात्मा दोनोंके लिये वनी है। धर्मराजकी इस और पितृयान सूर्याके भ्रमणपथ (क्रान्तिवृत्त )-का अश सभाका नाम धर्मसंहिता है। जो प्रजापति, पराशर, विशेष है। यमका पथ देवयानके विपरीत अर्थात् पितृ उहालक, आपस्तम्ब, वृहस्पति, शुक्र, गौतम, शङ्ख । यान वो दक्षिणपथ है। पुराणमें भी यमको दक्षिण- लिखित, अङ्गिरा, भृगु, पुलस्त्य, पुलह आदि धर्मशास्त्र- दिकपाल कहा है। साधारण प्रवचनमें भी 'यमके प्रयोजको तथा यम-संहिताके अनुयायी शास्त्रसम्मत दक्षिण द्वार' का उल्लेख है। सिद्धान्तज्योतिष और धर्मकर्मका अनुष्ठान करते । वे यमपुरमें परमसुख पुराणके मतसे उत्तरायण ( देवयान वा देवलोक ) में ऐश्वर्यम्ने समय विताते हैं। जव सूर्य ६ मास रहते हैं, तब देवताओंका दिन और यमदूतगण डरावने, काले, लम्बी दाढ़ीवाले और | जब दक्षिणायन (पितृयान यमलोक ) में ६ मास रहते बेढगे होते हैं। वे लोग यमके आज्ञानुसार पापियोंको हैं, तब देवताओंकी रात्रि होती है । अतएव पितृयाण दण्ड देते हैं यहां सनतेजोमयी शुभ यमके द्वारा दक्षिणपध वा यमलोकका नामान्तरमात्र है। अभी पूजिता सनसाधिनो मोहनी देवी रहती हैं। सुरासुर यमद्वारमै कल कल शब्द करती हुई वैतरणी नदी बहती और ऋषियोंकी भी वे पूज्य हैं। उनके शरीरसे क्लश-1 है। वहां प्रहरी स्वरूप जो दो कुत्ते हैं उनका ज्योति- दायक व्याधियाँ निकलती हैं। भीषण मृत्यु और उनके | षिक अर्थ इस प्रकार दिया गया है. ऋग्वेद (१०।१४. अनुचरवर्ग वहां विराजमान हैं। अनेक प्रकारके ज्वर | सू०)-में लिखा है- और दारुण घेदना नरनारीका रूप धारण कर वह खड़ी हे यम! वैतरणीके किनारे तुम्हारे द्वारके प्रहरी- रही हैं। कामक्रोधविचारिणी नानारूपधारिणी| स्वरूप जो चार चार आंखवाले और पथरक्षक दो कुत्ते रमणियों चारों ओर हलहला शब्दसे पृथ्वीको कंपा देती | हैं तथा जिनके दृष्टि सभी मनुष्यों पर पड़ती है, उनके हैं। अलावा इसके कुष्माण्ड, यातुधान, राक्षस, पिशि- | क्रोधसे इन मृत व्यक्तियोंकी रक्षा करो । हे राजन् ! ताशन, एकपाद, द्विपाद, त्रिपाद, बहुपाद, एकवाहु, इन्हें कल्याणभागी वनाओं ।" फिर १०।४३ सूकमें देवी