पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५२२

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५१६ यंप नौका द्वारा वैतरणी पार करनेकी बात लिखी है। । अनुरोध करने पर भी यमने स्वीकार नहीं किया। वेदमें तैत्तिरीय-ब्राह्मण (२२२ )में दो दिव्य श्वा ( कुत्ते) यमके बड़े भाई वैवस्वत (मनु) और अवस्ताके यिमको का उल्लेख है तथा वहां कालका (कालपुरुष ) नामक एक व्यक्ति कहा है । यिमने अपनी बहनसे विवाह कर मसुरका वर्णन भी पाया जाता है। मनुष्यवंशको सृष्टि को । वे ही अवस्ताके मनु हैं। ___ उपरोक वैदिकवर्णन द्वारा तिलक कहते हैं, कि हिमप्रलयकालमें जीवोको रक्षा करते हैं। आकाशगङ्गा ( मन्दाकिनो वा छायापथ) यमद्वारकी तिलकने गहरी खोज कर यह सावित किया है, कि वैतरणी है, उस मन्दाकिनीके मध्य जो अगस्त्य नक्षत्र जब पुनर्वसु नक्षत्र में विषुवन रहता था, उस समयके (1:011gris) है वह दिव्य नौका स्वरूप है तथा जिन विषुवनकी अवस्थितका अवलम्बन कर इस रूपको- दो दिव्य (ज्योतिर्मय) कुत्तोंकी बात लिखी है, उनमेसे पाख्यानको कल्पना हुई है । देवमाता अदिति पुनर्गसु एक कुत्ता लुब्धकनक्षत्र (Canis major वा sirius | नक्षत्रकी देवी है। वे वारह आदित्योंकी भी माता हैं। canis श्वन आकाशगङ्गाके पश्चिमी किनारे और दुसरा जिस समय देवयान वा देवलोक तथा पितृयाण वा यम- आकाशके पूर्वी किनारे रहता है। दूसरे कुत्तेका नाम लोक अदिति नक्षत्रमे मिला हुआ था। उसी समयसे प्रलुब्धक (Canis mionr= Procyon = (greek) Pro अदिति देवजननो हुई है। यम और यमी यमज होनेका kuan (संस्कृत) प्रश्वन् ) है। ये दोनों ज्योतिर्मय कारण यह है, कि पुनर्वासु नक्षत्रके दो तारे हैं ( Castar तारारूपो कुत्ते वैतरणीके दोनों किनारे अवस्थित हैं।| Pallus ) वही सम्भवतः यम और. यमी हैं। यूरोपके पहले हो कहा जा चुका है, कि विषुवन्से ले कर सूर्यके | वेदज्ञ पण्डितमण्डली यम और यमीको दिनरात मानती समस्त दक्षिणपथका नाम यमलोक है। मृगशिरा हैं। उन लोगोंके मतसे यम और यमीके मिलनेसे दिन- नक्षत्रमें विषुवन नहीं रहनेसे यमलोक जानेमें वैतरणी रात होती है। आकाशगङ्गाके पश्चिम पार्शमें ही नदी नहीं पड़ती तथा दोनों कुत्तोंके सामने हो कर नहीं | पुनर्वसु नक्षत्र अवस्थित है। तिलकका कहना है, कि जाना पड़ता। अवस्ता और प्रोकपुरोणमें यमद्वार | पुनर्वसुमे जो दो तार हैं, साकल्पसंहिताके मतसे उनमें पर वैतरणी ( Styx) और दोनों कुत्तोंके रहनेका हाल | से एकका नाम यमको है। अतएव इस यमक (यम लिखा है। इन दोनों नामोंका पाश्चात्य अर्थ आज भी| और यमी )से हो पुनर्गसु नक्षत्र में अवस्थित नरमिथुन- कुकुरवोधक है। प्रीकपुराणके यम ( lades ) अपनी रूपी मिथुनराशिको कल्पना है। अभी मिथुनराशिमें ये पत्नी पासिंफोन ( Persephone )-के साथ एक | दोनों उज्ज्वल तारे ( Castor, Pailus ) देखे जाते हैं। आसन पर बैठ कर विचार करते थे तथा उनका अनुचर वराहके मतसे लुब्धक (मृगव्याध वा ( Sirius वा Can- कुत्ता ( cerberus) वैतरणा ( Styx)-के दूसरी किनारे | is major ) तथा प्रलुब्धक (Procyon) पुनर्नसमें अव- यमराजकी रक्षा करता था। लुब्धक नक्षत्रको ऋग्वेद- स्थित हैं। अनः राशिचकको मिथुनराशि जो यम में 'सरमा' कहा है। सरमासे ही सारमेय ( अथर्ववेद और यमो-संघटित व्यापारमें कल्पित है वह स्पष्ट प्रतीत १८२२० ) हुमा है। इसका विवरण यही स्थिर हुआ, | होता है। पाश्चात्य पण्डितोंका कहना है, कि उसमें कि जिस समय मृगशिरा नक्षत्रमै विषुवदिन होता था प्रथम नरमिथुनका आकार वर्णित हुआ है । पारसिकों उसी प्राचीनतम कालमें इस यमराज्यको कल्पना हुई के आदि धर्मशास्त्र अवस्तामें इस नरमिथुनसे मनुष्यकी थी। सृष्टि वतलाई है। मिस्रपुराणके ओसिरिस और भाइ. ऋग्वेद (१०१० सूक) में विवखान और सरण्युको | सिस यम और यमोसे विभिन्न नहीं हैं। सन्तात यम और यमो यमज भाई बहिनका उल्लेख है। ग्रीकपुराणमें जो यमके कुत्ते ( Cerberus ) सरमा यमीने यमके साथ जव सहवास करनेको इच्छा प्रकटको ( Herms echidna ) और वैदिक वर्णनमें कुत्तोंका तव यमने उसे नाना युक्तिसे टाल दिया। उसके लाख || उल्लेख है, उससे डाक्टर राजेन्द्रलाल मिलने प्राचीन