पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५२३

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५२० यम-धमक मार्य और सेमतिक जातिके शवदाह वा समाधि ___ परन्तु उसी पुराणमें दूसरी जगह यमकी संख्या प्रथाका आविष्कार किया है। उनका कहना है, कि | दश कही गई है। यथा- वेदमें जो श्येन (मिस्रदेशके पुराणमें केवल श्येनको हो "ब्रह्मचर्य दया क्षान्तिानं सत्यमकल्कता । Hawk यमका दूत कहा है ) और कुत्ते को यमका दूत अहिंसास्त यमाधूर्य दमचैते यमाः स्मृताः ॥" कहा है, इसका अर्थ यह कि वैदिक युगमें शवदाह वा (गरुडपु० १०६ अ० और याज्ञवाल्क्यस० ३।३१३ ) समाधिप्रथा सर्वत्र प्रचलित न थी। (1ndo Aryan, roi ब्रह्मचर्य, दया, क्षान्ति, ध्यान, सत्य, अकल्कता, अहिंस 11, P, 161) उस समय मृतदेह जंगल में गाड़ दी जाती अस्तेय, माधुर्य और दम ही दश प्रकारके यम हैं। थी और कुत्ते, गीध आदि पक्षो उसे निकाल निकाल "आनृशंस्य क्षमासत्यमहिंसा दम आर्जवम् । कर खाते थे। उत्तर मङ्गोलिया तथा प्राचीन्द पारसिक पीति-पसादो माधुर्य मार्दवञ्च यमा दश" जातिकी शाखा विशेष. यह प्रजा आज भी प्रचलित (पारस्करगृह्य० २१७) है। सोगडियाना तथा वाहि लकमें भी यही प्रथा, पारस्कर-गृह्यसूत्रमें सी ओनृश स्य, क्षमा, सत्य प्रचलित थी। प्रीफ पुराणमें हिरालोसने इस कुत्तोको अहिंसा, दम, ऋजुता, प्रीति, प्रसाद, माधुर्ण और मृदुता मार डाला था, अर्थात् इस विभत्स प्रथाको उठा दिया ये दश प्रकारके यम बतलाये हैं। 'यम' योगके .आठ ' अंगों से पहला अंग है। ___ श्रीमद्भागवत, देवी भागवत, ब्रह्मपुराण, नारदीय यच्छति नियिच्छति इन्द्रिग्राममनेति यम-घन्। पुराण ( उत्तरभाग ५-६ अ० ) अग्निपुराण और स्कन्द ३ सयम, मन, इन्द्रिय आदिको वश या रोकमें रखना। पुराणमें यम, बमलोक और यमदूतादिका सविस्तार ४ काक, कौवा । ५ शनि । ६ विष्णु। यमज, जोड़े। वर्णन है। ७दो की संख्या। ८ वायु । पारिभाषिक यमदण्ड-कार्तिक मासके ८ दिनसे ले यमक ! स० को०) यम युग्मभारं कार्यात ग्राप्नोतीति कर अग्रहायणमासके ८ दिन तक यमदण्ड कहलाता है।। कैक। १ शब्दालङ्कारविशेष। इसका लक्षण- इन दिनो लधु आहार करना उचित है। लघु आहार | भिन्न भिन्न आर्यावाले स्वख्यञ्जनोंकी क्रमिक करनेवाले दीर्घजीवि होते हैं। मावृत्ति होनेसे यह अलङ्कार होता है अर्थात् एक ही शब्द "कार्तिकस्य दिनान्यष्टावष्टाग्रहायणस्य च । कई वार आनेसे यह अलङ्कार होगा। उदाहरण- यमस्य दर्शना एते लध्वाहारी स जीवित " ( वद्यक ) "नवपलाशपलाशयन पुरः स्फुटपरागपरागतपङ्कजम् । २ शरीरसाधनापेक्ष नित्य कर्म, चित्तको धर्ममें मुदुलतान्सलतान्तमलोकयेत् स सुरभि सुरभिं समनोभरैः॥" स्थिर रखनेवाले कर्मों का साधन । (साहित्यद० १० परि) मनुके अनुसार शरीर-साधनके साथ साथ इनका पलाश, पलाश, पराग, पराग, लतान्त, लतान्त, पालन नित्य कर्तव्य है। मनुने अहिसा, सत्यवचन, | सुरभि, सुरभि इस शब्दका भिन्न भिन्न अर्थमें व्यवहार ब्रह्मचर्या, अकल्कता और अस्तेयमें पांच यम कहे हैं। । होनेसे यह अलङ्कार हुआ है। "यमकादो भव दैक्य उलो वोलरोस्तथा।" "अहिंसा सत्यवचनं ब्रह्मचर्यमकल्कता। (साहित्यद० १० परि०) अस्तेमिति पञ्चैते यमाश्चैव व्रतानि च ॥" (मनु) गरुड़ पुराणमें भी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य | यमकादि स्थानमें 'ड, ल, व, वरल इन सब और अपरिग्रह ये पांच प्रकारके यम कहे हैं। वर्णों का ऐक्य हुआ करता है। "अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यापरिप्रहो। __ "भुजलतां जड़तामवलाजनः" यहां जलता और जड़ता' यमाः पञ्चाथ नियमाः शौचद्विविधमीरितम् ॥" इन दो शब्दोंका प्रयोग होनेसे यमक अलङ्कारकी हानि गरुडपु० १०६ अ०) नहीं हुई।