पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५२४

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यपकनमहो-यमचक्र ___ यह अलंकार युग्मपादयमक, अयुग्मपादयमक, आदि- "लङ्काकुमध्ये यमकोटिरस्याः प्राक पश्चिमे रोमकपत्तनची यमक और अन्तयमक, पादमध्ययमक, पादान्तयमक, | ___ अधस्ततः सिद्धपुरः सुमेरुः सौम्येऽथ याम्ये वाड़वानलश्च ॥ पादादियमक, पादादिमध्ययमक, पादायन्तयमक, कुवृत्तपादान्नरितानि तानि स्थानानि पड़गोलविदो वन्ति। (सिद्धान्तशिरोमणि) 'मध्यान्तयमक, काञ्चीयमक, गर्भयमक, चक्रवाल- यमक, पुष्पयमक, महायमक, मिथुनयमक, अन्तयमक, | यमक्षय (सं० पु०) यमस्य क्षया। यमके लिये क्षय वा विषमयमक, समुद्यमक और सर्जयमक, भेदसे बहुत नाश, मृत्यु । प्रकारका है। | यमगाथा (सं० स्त्री०) वह स्तुतिमन्त्र जो यमके उद्देश्यसे • इसके लक्षण और उदाहरण आदि काव्यादर्शक / किया गया हो, तैत्तिरीय-संहिताका ५।शार मन्त्र । दशा परिच्छेद तथा भटिकान्यके दशनें सर्गमें लिखे यमगीत (सं० क्लो० ) विष्णुपुराणके तीसरे अंशका सातवां अध्याय जिसमें यमकी स्तुति है। • २ व्यूहविशेष, सेनाको एक प्रकारका व्यूह या | यमघण्ट (सपु०) यमं घण्टयतीति घरिट-भण् । १ गमाव। (भहाभारत ४१५५१५२)३ सदृश, समान । ४ ज्योतिषके अनुसार एक दुष्ट योग। इस योगमें शुभ वृत्तका नाम जिससे प्रत्येक चरणमें एक नगण और दो काम वर्जित है। यह योग रविवारके दिन मघा और 'लघु माताएं होती हैं। (त्रि०) ५ यमज, वे दो वालक पूर्णफल्गुनी, सोमवारके दिन पुष्या और अम्लेषा, मंगल जो एक साथ हो उत्पन्न हुए हों। (पु०) ६ संयम। वारको ज्येष्ठा, अनुराधा, भरणी और अश्विनी, बुद्धवारको यमकनमहीं-वम्बई प्रदेशके बेलगांव जिलान्तर्गत एक इस्ता और आद्रा, वृहस्पतिको मूला, पूर्वाषाढ़ा, रेवती नगर। यह अक्षा० १६८० तथा देशा०७४ ३२ और उत्तरभाद्रपद, शुक्रवारको खाति और रोहिणी तथा पू०के बीच पड़ता है। शनिवारको शतभिषा और श्रवणा नक्षत होने पर होता यमकात (सपु०) १ यमका छुरा वा खाँडा । २ एक प्रकारकी तलवार। इस योगमें यदि कोई यात्रा करें तथा धे यमकातर ( हिं० पु०) यमकात देखो। इन्द्रके समान भी व्यक्ति क्यों न हों तथापि उनकी मृत्यु यमकालिन्दी (सं० स्त्री० ) यमः कालिन्दी च सुतः सुता होगी ही होगी। विवाहमें वैधव्य, कृषिवाणिजामें व यस्याः। संज्ञा, सरण्यु, सूर्यपनी, यम और यमुना निष्फलता, विद्याके आरम्भमें मूर्खता, गृहप्रवेशमें भङ्गा को माता। चूडामे मरण, ऋणदानमें फलको शून्यता तथा व्रत मादि यमकिङ्कर ( स०पु०) यमस्य किङ्करः। यमदूत, यमको | भी फलरहित हो जाते हैं। इसलिये इसमें कोई शुभ काम नहीं करना चाहिए। यमकोट (स.पु०) यमसूचका कोटः। भूकोरविशेष, इसमें कुछ प्रतिप्रसव देखनेमें भाता है। वह यह केंचुवा। कि इस यमघण्टयोगमें आठ दण्डके वाद यात्रा करनेसे यमकील ( स० पु०) विष्णु। (हेम) शुभ होगा। यमकूट-निषधके उत्तरदिस्थ एक प्रकारका नाम । ____ यह विशेष नियम रहने पर भी प्रतिप्रसव मानना (जैन इरिवंश ५६ारा१०) युक्ति संगत नहीं। जिन सव स्थानोंमें दोष है उसे यमकेतु (स० पु०) यमका केतु, मृत्युध्वज, मृत्यु- त्याग करना ही विधेय है । तब जहां कार्यकी बड़ी होनि सूचक। हो वहां प्रतिप्रसव मान कर कार्य करना जरूरी है। २ यमकोटि (सं० स्त्री० ) वह पुरी जो देवताओं द्वारा दीपावलीका दूसरा दिन, कार्तिक शुक्ला प्रतिपद। बनाई गई है और जो भूगोलके चारों ओर लङ्काले पूर्वको यमघ्न (नि.) यमं हन्ति इन-हन-क। यमघाती भोर भवस्थित है। यमचक्र (संपु०) यमराजका शस्त्र। Vol. XVIII, 131 किंकर।