पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५२६

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५२३ यमदैवत-याद्वीतिया यमदेवत (स.नि.) यमदेवतासम्बन्धीय। ; भोजन करे तथा उसे वस्त्र और अलङ्कारादि दे। इस यमद्रम (सपु०) यम इव भयावहःद्रमः। शाल्मलि-! व्रतके प्रभावसे वर्ष भरमें किसीके भी लाथ कलह नहीं वृक्ष, सेमरका पेड़। इसका यह नाम इसलिये है, कि ! होता, यमदूत व्रतधारीसे दूर रहता है, अपुत्रके पुत्रलाभ . इसमें फूल तो बड़े सुन्दर देख पड़ते है परन्तु उबसे। होता है, निर्धन धन पाता है, तथा उसके सप्तजन्मकृत कोई खाने लायक फल नहीं उत्पन्न होता। पाप नष्ट होते है, इत्यादि । पद्मपुराणसे इस व्रतकी यमद्वितीया (सं० स्त्री० ) यमनियां द्वितीया, मध्यपदलोपि | कथा नीने उद्धत की गई- कर्मधा० । कार्तिक मासकी शुक्लाद्वितोया। बोल- "ब्रह्मोवाच। चालमें इसे भाई-दूज कहते हैं । यह चान्द्रकार्तिक- मासमें होती है। कार्शिकमासकी शुक्लाद्वितीयाके दिन यदि चेच्छसि विप्रेन्द्र व्रतानां व्रतमुत्तमम् । भाईके पूजा नहीं करनेसे सात जन्म तक भाईका नाश । व्रतं यमद्वितीयाख्य शृणु त्वं मृत्युवारणम् ॥ होता है। कार्तिके मासि शुक्लायां द्वितीयायां मुनीश्वर । महाभारतमें लिखा है, पहले कार्तिकमासको कर्तव्य तद्विधानेन ह्यपमृत्युनिवारणम् ॥ शुक्ला द्वितीया तिथिको यमराजने अपनी वहन यमुनाके ब्राह्म मुहत्ते चोत्थाय चिन्तयेदात्मनो हितम् । यहां भोजन किया था। इसीलिये इस दिन वहनके प्रातः कृत्वा द्विजः स्नान' दन्तधावनपूर्वकम् ॥ यहां भोजन करना और उस कुछ देना मंगलकारक और ततः शुक्लाम्बरधरः शुक्लमाल्यानुलेपनः । मायुद्धक माना जाता है। कृतनित्यक्रियो दृष्टः कुण्डलाङ्गदभूपितः ।। "कात्तिके तु द्वितीयायां शुक्लायां भ्रातृपूजनम् । विधि विष्णुच्च रुद्रश्च संस्थाप्यो डम्बरे शुमे। यो न कुर्यात् विनभ्यन्ति भ्रातरः सप्तजन्मनि ॥" पद्म सप्तदलं कृत्वा पूजयेत् सुस्थमानसः ॥ यमद्वितीयाको वहनके हाथसे भोजन करना होता चन्दनागुरुकर्पूर-कङ्क मैजिसत्तम । है, इस कारण भोजनकालमें जो पञ्चमयामाद्ध है उस पुष्पधूपैश्च नैवेद्ये नारिकेलादिभिः फलेः ।। समय तिथि प्राप्त होनेसे हो यह कृत्य होगा। सरस्वतीञ्च वरदा वीणापुस्तकधारिणी। भ्रातृद्वितीया देखो। ध्यायेत् शुक्लाम्बरधरां हंसवाहनसंस्थिताम् ॥ इस तिथिमें कहींको यात्रा न करनी चाहिये । यदि . ततो मृत्युविनाशार्थ सालङ्कारां पयस्विनीम् । कोई करे, तो उसकी मृत्यु होती है। . । विप्राय वेदविदुपे गाञ्च दद्यात् सवत् सकाम् ॥ "तथा यमद्वितीयां यात्रायां मरण भवेत् । थपमृत्युविनाशाय संसारार्णवतारिकाम् । . (ज्योतिःसारस०) । विप्र तुल्यमिमां रौद्रीं धेनुः सम्प्रददे ह्यहम् ॥ पद्मपुराणमें यमद्वितीया-व्रतका विधान इस प्रकार इति वाक्यविचारेण धेनु दद्यात् द्विजातये । लिखा है,-कार्तिक मासकी शुक्लाद्वितीयाके दिन यह | कुलीनाय सुशास्ताय रोगहीनद्विजाय वै. व्रत करनेसे अपमृत्युका भय नहीं रहता। इस दिन तस्यान्यलाभे विप्रेन्द्र विप्राय सदुपानही। प्रातःकृत्यादि करके शुभ औडम्बर (गूलर ) वृक्षमें | दद्यात् कार्तिकशुक्लायां द्वितीयायां विशेषतः। ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वरकी स्थापना कर नाना उप ज्ञातिभे ठान् तथा वृद्धान् संपून्य चाभिवादयेत् चारसे पूजा करनी होती है। पीछे मृत्यु विनाशके नारिकेलादिदानेन तोषयेत् स्वजनानपि॥ लिये.अलङ्कारयुक्त धेनु ब्राह्मणको दान करना आवश्यक ततः सोदरसम्पन्ना भगिनीयाभवन्मुने। . है। धेनुके अभावमें वस्त्र सहित जलका घड़ा दान किया तस्या गृहं समागत्य श्रद्दधानोऽभिवादयेत् ॥ जा सकता है। भद्र भगिनि सुभगे त्वदनिसरसीरहे। पीछे सरस्वती पूजा करके यत्नपूर्वक वहनके हाथसे | श्रेयसेऽद्य नमस्कत मागतोऽहं तवालयम ॥