पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५३

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मुद्रावत्व (मारतीय) कौशाम्बोमें वत्स राजाओंको राजधानी थी।) चिह्न-1 अक्षरमें 'काइस' नामाङ्कित और गोवत्सविलित कार्षा- गोवत्स। पण पाया गया है। यह बहुत पुरानी मुद्रा है, कोई कोई २ उदुम्बर (पंजावके उत्तर उदुम्बर जनपद था। इसे कोनिन्द मुद्रा भी कहते हैं। • वहांके लोग भी उदुम्वर कहलाते थे। इसका चिह्न- भारतमें प्राचीन विदेशी मुद्रा। उडम्बर या यशडुम्वर ! पारसि मुद्रा ।-अखमणिवंशके शासनकालमें ३ पुष्कर-(अजमीरके निकटवत्ती)। इसका चिह्न (५००-३०१ ख.० पू०) पारसिक मुद्रा पंजावमें प्रचलित मछली या विना मछलीके चौकोन सरोवर। हुई। यहां तक कि, भारतमें प्रस्तुत ईसाजन्मसे पहले ४ अहिच्छत्र-(हिन्दू और बौद्धशास्त्रोक्त अहिक्षेत्र ४थी शताब्दीकी अनेकों अखमणि मुद्रा ( Gold double वा अहिच्छत्रपुर ) इसका चिह्न अहि (सांप)का छन। | Stater ) पाई गई है। इस समय जो सब सिगलई ५ यौधेय-(सिन्धु प्रदेशवासो यौधेयगण द्वारा (Sigloi) रौप्यमद्रा प्रचलित हुई है उनमें देशी कार्षा- प्रचलित ) इसमें सराख मूर्ति है। पणका आदर्श दिखाई देता है। ६ पद्म (नलराजकी राजधानी पद्मावतो, वर्तमान | __इस देशको वनाई पारसिक मुद्राओंका मान (सिग्लस- नाम नरवारसे शायद प्रचलित है। ८६४५ प्रेन वा ५६०१ ग्राम ) पारसिक मानके समान ७ पञ्चालो--(पञ्चाल देशमें प्रचलित, रमणीमूर्ति, था। पीछे इस देशको ग्रीक-राजाओंको मुद्रा में भी वही उसके मस्तकसे मानों पञ्चरश्मि निकल रही है। मान जारी रहा। ८ पाटली-(मौर्यराजधानी पाटलीपुत्रसे प्रचलित आथेनीय मुद्रा ।-वाणिज्यसूत्रसे भारतवर्ष में पाटल पुष्प।) आथेन्सकी पेचक मुद्राका प्रचार हुआ। ई सन्के • अलावा इसके मयूर, खजर, रतालू, तक्षशिर आदि ३२२ वर्ष पहले आर्थनीय टकसाल जब बंद हो गई तब नाना चित्रोंकी प्राचीन मुद्रा भी पाई जाती हैं। फिर उत्तर भारतमें उसी मुद्राका अनुकरण होने लगा। पेचक- जबलपुरके अन्तर्गत तेवार ( प्राचीन त्रिपुरी वा के बदलेमें कहो' श्येन पक्षीका चित्र भी रहता था। चेदी ) तथा सागर जिलेके एरणसे ब्राह्मी लिपियुक्त अलेकसन्दरके आक्रमण कालमें (३२६ खु० पू० ) ख० पू० ३य और ४ा शताब्दीको मुद्रा आविष्कृत हुई | असतो ( Ascesines ) वा शतद्रु प्रवाहित जनपदमें है। ये सब भारतकी बहुत पुरानो मुद्रा हैं। इनमें | सोफितेस ( Sophytes) राज्य करते थे। उनको वैदेशिक प्रभाव वा संस्रव नहीं है। मथुरा अञ्चलसे मुद्रा भी उसी ढंगकी थी। 'उपातिक्या नामाङ्कित ब्राह्मी लिपियुक्त अति प्राचीन | ____अलेकसन्द्रय ( Alexandroy ) नामाङ्कित माकिदन मुद्रा पाई गई हैं। उसका लिपिविन्यास देखनेसे वह वीर अलेकसन्दरकी चौकोन रौप्यमुद्रा भारतवर्षमें ढली अलेकसन्दरको पूर्ववत्ती देशी मुद्रा-सी मालूम होतो है। थी। इस अञ्चलसे ब्राह्मो लिपियुक्त वलभूतिको मोहर पाई : यवन-मुदा।-अशोक प्रियदर्शीके साथ ग्रीक यवन- गई है। यह मथुराके शकयवन प्रभावके पहलेको है। का सम्बन्ध था। अशोकानुशासन और जूनागढ़- वुलन्द शहर (प्राचीन नाम वरण )-से ब्राह्मो अक्षरमें, के रुददामकी लिपिसे यह बात मालूम होती है। इस 'गोमितस वारणाया' नामाङ्कित अति प्राचीन हिन्दूमुद्रा सम्बन्धके फलसे सेल्युकस ( Seleucus ) और सीक- संगृहीत हुई है। शकाधिकारके बहुत पहले मथुराम । तेसको मुद्रा में हाथीका चित्र छपता था। गोमिल नामक जो हिन्दू राजा राज्य करते थे, वह मुद्रा वाहिक प्रभाव ई०ससे पहले श्री शताब्दी तक उन्हींकी है। प्रसिद्ध प्रत्नतत्त्वविद् वुइलरने उक्त मुद्रा- भारतीय देशी मुद्रामे कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। लिपिको बहुत प्राचीन माना है। कौशम्बी वा वत्स , २१८ ई सन्के पहले अन्तियोकके समय दियोदोतसने पत्तन ( यमुना तोरस्थ वर्तमान कोसम्) से भी ब्राह्मी । वागी हो कर वाहिक (Bactria) पर अधिकार जमाया।