पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५३१

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ना ५२८ यमुना यम शब्दसे 'अग्नि' और यमो शब्दसे 'पृथ्वी' का वोध , (७७५३ पूर्व द्राधिमाय ) यह हिमालयके देहरादून और होता है-"यमेनत्वं यम्या संविदानोत्तमे नाके अधिरोड कितादून उपत्यकाको दो भागोंमें विभक्त कर दक्षिण- यैनन् ॥” (शुक्लयजु १२।६३) पश्चिमकी ओर ग्यारह कोसा पश्चिमसे गिरि नदी 'किञ्च यमेन अग्निना यम्या पृथिध्या च संविदाना | में मिल गई है। ऐकमतय गता सति उत्तमे उत्कृष्ट नाके सर्वसुखोपेते। इस तरह प्राय अड़तालीस कोस पथरोला पथ'तय कर दुःखमात्रहीने स्वर्गे एनं यजमानमधिरोऽय स्थापया' । शिवालिककी पहाड़ियों के नीचे सहारनपुर जिलेके फैजा. (वेददीप) । वादको समतल भूमिमें पहुंचती है। इसके बाद दक्षिण- यमीने यमका आलिङ्गन करना चाहा, पर यमने इसे पश्चिम चकको तरह पञ्जावके अंचाला और काल स्वीकार नहीं किया, ऐसा जो लिखा है, इससे स्पष्ट और युक्तप्रदेशके मुजफ्फरनगर और सहारनपुर होती अनुमान होता है, कि दिन और गत आपसमें मिलनेको हुई साढ़े यत्तीस कोस आती आती यह . हुत कुछ चौड़ी नहीं हैं. वे अलग हो रहेंगे-इस प्रकार अभिलापशाप.. हो गई है। यहां यह एक वेगवती नदीका आकार धारण नार्थ उपरोक्त एक रूपक कल्पित दुआ था। पीछे शत रात कर लता कर लेती है। फैजावादसे इससे पूर्व-पश्चिमकी ओर पथनाह्मण (२०१०) पञ्चविंश ब्राह्मण (१९२३)। दो नहर निकाली गई है, जिनसे खेतों में सिचाईके काम और विभिन्न पुराणोंमें यम और यमीका उपाख्या ' की सुविधा है। वहां लोग इन नहरोंको यमुनाको विशेषरूपसे रूपान्तरित हुभा है। नहरें कहा करते हैं। यमुना (सं० स्त्री०) यमयतीति यमि ( अनि यमि शोन्मभ्यश्च । राजघाटके समीप पूर्वको ओरसे आ कर सडरा. उण् ३६६१) इति उनन् टाप् । दुर्गा। नाम्नी एक छोटी नदी मिल गई है। विधौलीसे नदी- "यमस्य भगिनी जाता यमुना तेन सा मता ॥" की गति क्रमशः दक्षिणको ओर चालीस कोस आ कर ( देवीपु. ४५०) भारतको राजधानी दिल्ली नगरीको जलमय करती दान- भारतको राजधानी दि यच्छति विरमति गड़ायामिति । २ नदीविशेष. कौर होती हुई साढ़े तेरह फीस तक चली गई है। इसके यमुना नदी । पयोय कालिन्दी, सुर्य्यतनया, शमनस्वसा. कुछ ही उत्तर आने पर कठा और हिन्दन नामको दो तपनतनुजा, कलिन्दकन्या, यमस्वसा, श्यामा, तापो.। नादयो मिल गई है। कलिन्दनन्दिनी, यमनो, यमी, कलिन्द, शैलजा, सूर्य दानकौरस पक्षाव और युक्तप्रदेशके जिलोंको परस्पर सुता। (जटाधर) विच्छिन्न कर यमुना कोई पचास कोस तक चली आई उत्तर-पश्चिम भारतमें प्रवाहित यह पुण्यतोया नदी है। आगरा और इटावा जिलेकी निम्नभूमिमें प्रवाहित गढ़वालराज्यके मध्य हिमालय शैलको यमनोत्तरी शृङ्ग- होने तथा आगरेमें नहर निकल जानेके कारण यमुनाका: से ढाई कोस उत्तर और पांचवांदर शृङ्गसे (२०७३१ | कलेवर क्षीण हो गया है। फीट) चार कोस उत्तर पश्चिम (अक्षा० ३१३० और आगरेके पास करवा नदी और उतङ्गन नदी उससे द्राधि० ७८३० पू०) उत्पन्न हुई है। यमनोत्तरीको मिल गई है। आगरा, फिरोजावाद, और इटावा पार पार कर साढ़े उनीस कोस आने पर दक्षिण-पश्चिमसे | करनेके वाद, क्रमशः नदीको गति दक्षिणसे दक्षिण-पूर्व- वदियार और कमलादा और उससे तेरह कोस दक्षिण की ओर टेढ़ी हो प्रायः सत्तर कोस पथ तय कर हामीर- बदरी और असलौर नाम्नी चार शाखा नदियोंने मिल | पुर पहुंचाती है। काल्पीके पास सेनगार नदी, इटावा कर इस नदोके कलेवरको बढ़ा दिया है। निम्नोक्त और जालौनको सीमा पर सिन्धु तथा इटावासे बीस सङ्गमके वाद साढ़े सात कोस पश्विम इसके दक्षिणी | कोस दक्षिणको भोर जा कर चम्बल नदी .इस नदीमें फिनारे तमशा नदी मा कर मिल गई है। इसके बाद | गई है। .