पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुद्रातत्त्व (भारतीय) उन्हों की मुदासे उत्तर पश्चिम भारतीय मुद्राका मान | थोक्लेशकी किसी किसी ताम्रमुद्राके दोनों ओर खरोष्ठी और रूप विलकुल वदल गया। | लिपि देखी जाती है। अन्तिसकास ( Antimachus )- ___पार्थिय वा पारद प्रभाव । वाहिकमें पारद और की मुद्रा पर नौयुद्ध जयका चित्र दिखाया गया है। शकसम्बन्ध प्रयुक्त भारतीय मोहरादिमें पार्थिय प्रभाव हेलिओक्लेस (१६०-१२० ख०पू०) के वाद प्रीकाधिपत्य लक्षित होता है। ई०सन्से पहले श्री शताब्दीके शक- वाहिकसे निषध ( Paropanisus ) पर्वतके दक्षिण राज मौएस (Moues ) और श्ली शताब्दीके शकपति चला गया । उनके राज्यकाल तक ग्रीक राजगण वोनोनेस ( Vonones )-को मुद्राओंकी अधिक सम्भव वाहिक और पञ्चनद दोनों स्थानों में राज्य करते रहे। है पार्थिय ( Parthitan ) हाथसे सृष्टि हुई होगी। उन लोगोंकी मुद्रा पर वाहिक और भारत दोनों रोमक-प्रभाव ।-शककुशन राजाओंकी मुद्रा पर। स्थानोंकी लिपि तथा आटिक मान ( अर्थात् १ ड्राम= रोमक-मान देखा जाता है। यहां तक, कि कुसुल कप्तश: ६७५ ग्रेन) अङ्कित है । किन्तु हेलिओक्लेस और (Kozola Kadates)-की मुद्रा पर रोमकपति अगष्टसका तत्परवत्ती अपल्लोदोतस १म और अन्तिअल किदस मुख अङ्कित है। (Antiatcidas) आदि परवत्ती यवन राजाओंने शासन प्रभाव ।-३००से ४५० ई०सन्के भीतर । पारसिक मानका ही व्यवहार किया है। कावुलके कुशनराज और पारस्यके शासन ( Sassani- , शकराजाओंकी मुद्रा। an) राजवंशका सम्बन्ध हुआ। उसी सूत्रसे कावुलमें ! जिस समय भारतके उत्तर-पश्चिम प्रान्तमें प्रोक- शासनमुद्रा प्रचलित हुई। इसके बाद भारतमें जव हूण | शासन फैला हुआ था, उस समय उत्तर-भारतमें शक माधिपत्य फैला, तव उन लोगोंके द्वारा भी शासन- | और हिन्दूशासन भी जारी था। वाहिकमें यवन-शासन- मोहरादिका भारत भरमें प्रचार हो गया। . के हो समय चीनसे शकजातिने वाहर निकल कर शक- भारतीय यवन (ग्रीक) राजाओंकी मुद्रा। स्थान पर अधिकार जमाया था। उन लोगोंका आदि · ईसाजम्मसे पहले री सदमें वाहिकके यवन- परिचय आज तक अज्ञात है। शक राजाओंकी जो सर्व राजाओंने कावुल और उत्तर भारत पर आक्रमण किया। मुदा पाई गई है वे माकिदनीय, सलौकीय, वाहिक और ई०सन्के २०६ वर्ष पहले अन्तिभोक निषध पर्वत पार | पारद मुद्राकी जैसी है। दो एकमें तुर्किस्तानकी सुप्राचीन कर गान्धार राज्य पहुचे। कावुलपति जलौक-सुभग- | अरमीय लिपिका निदर्शन देखा जाता है। सेन ( Saphagasenus ) के साथ उनकी गाढी मित्रता शकाधिप मोआ वा मोगसे ही इस जातिको माया थी। उसी सूत्रसे ग्रीक और भारतीय मुद्राका एकत्र | परिपुष्ट हुई थी। मोग, वोनोनेस ( "onones) और समावेश आरम्भ हु। पीछे युथिदेमस और उनके लड़के स्पलगदमकी मुहरों में पारद ( Parthian ) की सदृशता 'दिमिताने भारतवर्ष पर चढ़ाई कर प्रथम उपनिवेश | देखी जाती है। स्थापित किया। उनकी मुद्रा पर ग्रीक परिमाण रहने मथुराके शक नपोंकी किसी किसो मुद्रामें ग्रोकका पर भी वह भारतीय चौकोन मुद्रा-सी है। इस मुद्राके | अनुकरण देखा जाता है। जैसे, रञ्जवुलको मोहर और सम्मुख भागमें खरोष्ठी अक्षरमें प्रोक नाम देखा जाता है। रुपयेमें ग्रीकराज पाटोको मुद्रानुकृति है। फिर इसके बाद भारतवर्ण जीत कर युक्रेटिड्सने १४७ रज्जवुलकी किसो किसी मुद्रामें ब्राह्मी लिपि भी सलौकाम्द अर्थात् १६५ विक्रम संवत्में जो मुद्रा चलाई | देखी जाती है। मथुराके दूसरे दूसरे क्षत्रप राजाओंकी उसकी कुछ विशेषता देखी जाती है। इस राजाके सम- | मुद्रामें शुङ्ग और मथुराके हिन्दू राजाओंको मुद्राका भी सामयिक पन्तलेवन और अगथोक्लेशकी मुद्रा काबुल और सादृश्य है। फिर मियूस (Mius ) की मुद्रा में हिरको- . पश्चिम पंजावमें पाई गई है। इन दोनों ग्रीक राजाओंको | देसको मुद्राका सम्पूर्ण सादृश्य रहनेके कारण बहुतेरे मुद्रा पर ब्राह्मी लिपि व्यवहृत हुई है। अग• अनुमान करते हैं, कि जो सब कुशन मुद्रा वाहिकमें