पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यलापस-यवं यलोपत (सपु०) राजा। । जाते थे। तभीसे इस यवचूर्ण ( सत्तू का खाद्यध्य- यलिसिरुर-वम्बईप्रदेशके धारवाड़ जिलान्तर्गत एक बड़ा रूपमें व्यवहार चला आ रहा है। गांव । यहाँके ईश्वर-मन्दिरमें ११०६, १११७ और भिन्न भिन्न देशों में यह भिन्न भिन्न नामसे परि. 2018 तथा इमान-मन्दिरमें ११९५०को उत्कीर्ण चित्त है। हिन्दी-यक, जौ, सुज; बलायव, जो बहुत-सी शिलालिपियां देखी जाती है। जोओ; भोट-नाश, लासा-सुया, नेपाल-तोषा यल्लभट्ट-१ न्यायपारिजातके प्रणेता। २ शतश्लोकी, युकप्रदेश--यड, इन्द्रयव, युक; पक्षाव-पानजात, नाई, पडशीति और यलमट्रीय नामक तीन अन्योंके प्रणेता। जव, चक, जो अफगान-यावतुर्ण, याव: दाक्षिणात्य- यलमट्टसुत-आश्वलायनसून-व्याख्याके रचयिता। सातू; वम्बई-यव, सातू : महाराष्ट्र- यव, सातु, जव। यल्लम-कल्पवल्ली नामको सूर्यसिद्धान्तकी टीका और गुर्जर-यो, जव, युवा ; तामिल-बर्लि-अरिसो, संहितार्णव नामक ज्योतिर्गप्रथके रचयिता। ये श्रीधरा- वाली-अरिमु । तेलगु-पाच्छायव, यव, धान्यभेदम् , चार्यके पुत्र थे। यवक, यवल, बलि-वियम ; कणाड़ी-यवेगाड़ी। यल्लमा दाक्षिणात्यमें प्रसिद्ध एक शक्तिमतिः । ब्रह्म-मु-यौ, अरव-साधायिव ; पारस्य ल्याव , यल्लयार्ग-वेदपददर्पणके प्रणेता। । तुर्कि-आर्पा । यल्लाजी-पैतृमेधिकविधानके रचयिता । पृथिवीमें सभी जगह अनाज उत्पन्न होता है। ऊंचे | पर्वतशिखरसे लेकर समतलक्षेत्रादिमें यह अनाज बहुतसे यल्लार्य-दैवज्ञविलासके प्रणेता। उत्पन्न होते देखा जाता है। हिमालय पर्वतके ११से १५ यव (सं० पु०) युयते अम्भसा इति यु मिश्रणे अप्। '। हजार फुटकी ऊंचाई पर, यहां तक कि शोतप्रधान लैप- स्वनामख्यात शकधान्य, जौ। संस्कृत पर्याय--सित- लैण्डकं ६८ ३८ डिग्रो उत्तापविशिष्ट स्थानमें, कास्पोय शक, सितशत, मेध्य, दिव्य, अक्षत, कंचुकी, धान्यराज, । सागरके किनारे, अरबके सिनाई पर्वतके नोचे, पारसी. तीक्ष्णशक, तुरगप्रिय, शक्तु, महेष्ट, पविनधान्य । पोलिस नगरके खंडहरों मे, स्युफोरन और वकुर मध्यवती . "गोभिर्यावः न चक्त पत् ॥” ( भृक् १।२३।१५), चिरमान और भवहासियाके विजन मरुदेशमे, चीन, मित्र 'यथा यवमुद्दिश्य भाम प्रतिवत्सरं पुनः पुनः कृषति खोजरलैण्ड आदि यूरोप और अमेरिकामे जौकी खेती

तद्वत् ।' (सायया)

होती है। Bretschneider का उपाख्यान पढ़नेसे जौ देखने में बहुत कुछ धान और गेह' के जैसा होता। मालूम होता है, कि चीनसम्रार सेननुड़के शासनकाल- हैं। किन्तु भीतरी बीजकोषज पदार्थ उक्त दोनों में (२७०० ई० सन्के पहले ) चीनराज्यमे जौको खेती • अनाजोंकी अपेक्षा बहुत कुछ विभिन्न है। बहुत पहलेसे । होती थी। थियोफ्राष्टस ( Theophrastus ) तरह ही इस ययका व्यवहार चला पाता है। वैदिक थार्य- तरहक जोसे जानकार थे। ईसाधर्मग्रन्थ बाइबिलमै भी पियों ने धान और गेहका व्यवहार जानने के पहले। कई जगह जौका उल्लेख पाते है। राजा सलोमन के “यवशस्यके चूर्णका खाद्यद्रव्यरूपमें ध्यवहार करना सीखा। शासनकाल में ( १९५ ई० सन्के पहले) जौ प्रधान भोजन था । ऋक्संहिता ११२३११५, १६६।३, १।११।२१ , समझा जाता था। प्राचीन मिस्र-कीर्तिस्तम्भोंमें भी आदि मन्त्रों में यक्षका उल्लेख्न पाया जाता है। शेषोक्त | H. hexastichum श्रेणोके यवका निदर्शन है। ई०. मन्त्रमें लिखा है, "हे अश्विद्वय ! तुम नेमार्ण मनुष्य के लिये । सन्के ६ सदी पहले मुद्राङ्कित इटलीके दक्षिणस्थ मेटा. हल चलवा कर, जौ युनवा कर और अन्नके लिये वृष्टि- पाइण्ट नगरके पदकमें भी जौके छः गुच्छोंका चिह था । वर्षाण कर बल द्वारा दस्युका वध कर उसका बड़ा उप. | 'डन मवक्री. आलोचना कर पाश्चात्य उद्भिद्ववेत्ता अनुः मान रते हैं, कि प्राचीनतम युगमें जो जंगली जो कार किया है। इससे मालग होता है, कि प्राचीन.युग उपा जाता था वह H. henastichum वा H.dis में आर्यगण उपभोगके लिये जमीन जोत कर जौ उप- शिपाया ।