पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५४६

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यवन "असृजत् पहवान् पुच छात् प्रसवाद्राविड़ाञ्छकान। | कन्या थी। जिउस् (Zeus ) नामक एक युवकके योनिदेशाच्च यवनान् शकृत् शवरान वहूनः ।।"* साथ उनका प्रणय हुआ। कुछ दिन बाद यही 'यो' रूपकांशको वाद दे र यदि यवनजातिके उत्पत्ति- | गायका रूप धारण कर पृथ्वीके नाना देशोंमें घूमने लगी। स्थान या वासभूमिको योनिदेश (यवनदेश) मान लिया | सागरके किनारेके योनीय' देशमें बहुत दिनों तक उसने नाय, तो सम्भवतः कोई आपत्ति नहीं हो सकती, दोनों भ्रमण किया था। इसीसे उसका नाम उस स्थानके पोरसे संगृहीत सेनायें जातिवाचक हैं, और किसी देश-! नामानुसार 'योन' हुआ। से आई हुई थी, इसमें जरा भी सन्देह नहीं। ऋग्वेद | यूनानो इतिहासको इस वातसे मालूम होता है, कि संहितामें भी वशिष्ठ-विश्वामित्रके विरोधको वात लिखो | 'यो' के वंशधरगण, यूनानी और निकट देशके रहनेवाले ई सही, किन्तु यवनोंके साहाय्य लेनेकी वात कहीं भी विभिन्न जातियों के संमिश्रणसे उत्पन्न हुए है। सिवा देखने में नहीं आती। मालूम होता है, कि इस ग्रन्धकी इसके हिरोहतासके हीरा और जिउस और आर्गोस रचना पीछे हुई होगी। तथा हामिसको कथाओंसे पौराणिक तत्त्वोंका एक विशेष इस ब्रिाह्मण क्षत्रिय प्रतिद्वन्द्विताकी घटनामे ब्रह्मर्षि | द्वार उन्मुक्त होता है । इसके द्वारा मालूम होता है, कि वशिष्ठने हीनदेशोत्पन्न अर्थात् सिद्धगम्भादि परिसेवित । फिनिकीके वणिक्दल यूनानो सुन्दरियोंके हर ले जाया पुण्यमय भारतभूमिसे भिन्न सदाचारहीन यवनजातिका करते थे। हिरोदोतसके ग्रन्धमें ( 2. 122 और 1. 125) साहाय्य ग्रहण किया होगा। कारण, ऐतिहासिक, 'यो' हरणको वात लिखी है। फारसवालोंकी दन्त- प्रमाणसे हम कह सकते हैं, कि भारतके वाहरी देश कथाओके अनुसार वाणिज्यप्रिय फिनिकीय वणिकों वाहिकवासी यूनानीराजे ( Bactrio Greeks ) 'योन-1 द्वारा 'यो' कैदी रूपसे लाई गई। किन्तु फिनिकियोंकी राज' शब्दसे सम्बोधित किये गये हैं। वौद्धसम्राट कथाओंसे जाना जाता है, कि 'यो' अपनो इच्छासे प्रेम अशोकको शिलालिपिमे भी यूनानीर जोंको 'योनराज', फांसमें फंस आई थी। पिता माताको वदनामीके भय- और यूनानी राज्यको योनदेश हो कहा गया है। यह से उसने इच्छापूर्वक फिनिकियोंके जहाज पर चढ़ लोक योन शब्द सम्भवतः 'यउन' या 'यवन' शब्दका अपभ्रंश लजाको तिलाञ्जलि दे दी थी। है। क्योंकि प्राचीन संस्कृत-साहित्यमें वैदेशिक ग्रीक उपयुक्त दो विभिन्न देशीय प्रवादोंके सत्यासत्यका या यूनानियोंके हम योन नाम हो पाते हैं। विश्वा- विचार न कर, सोमाजिक आदिम आचार व्यवहार पर मित्र-वशिष्ट-विरोध संग्राम कथामे उल्लिखित (नाम)| निर्भर करनेसे स्पष्ट अनुमान होता है, कि 'यो' के वंश- 'यवन' सम्भवतः योनि (यौन) देशसे आये होंगे। धर एशिया माइनरके पश्चिमी किनारेके रहनेवाले जल- आयं हिन्दुओंसे होनाचार म्लेच्छभावापन्न यवनोंके | डाकुओके सन्तान हैं। नाना जातियोंके संमिश्रणसे पार्थषयनिर्देश करनेके लिये उनका वासस्थान योनि | इस सङ्कर जातिकी उत्पत्ति हुई है। फिर भी इसमें सदश घणित और होनस्थान रूपसे ही कहा गया है। सन्देह नहीं, कि उनमे कभी कभी यूनानी रक्तस्रोत भी . यूनानी इतिहाससे जाना जाता है, कि होरा प्रवाहित हुआ था। यूनानके प्राचीन इतिहाससे मालूम ( Hera) के मन्दिरमें (J०) नाम्नी एक पुरोहितकी होता है, कि डाकूवणिक्मे भिन्न भिन्न समयोंमें यूना- नियोंको पकड़ ले जाते थे। अतएव चैदेशिकोंके औरस,

  • रामायणाफे बान्नकापडमें "योनिदेशाच यवनाः शकृद्द शान्छ तथा यूनानी स्त्रियोंके गर्भसे उत्पन्न होनेवाले सन्तान

का स्मृतः" यह एक ही प्रसङ्गमें लिखा गया है। (बालकायड माताके नाम पर हो ग्रीक या यूनानी कहे जाने लगे। ५५ सर्ग ३७ श्लोक) राजकन्या 'यो' रमणियोंमें प्रधान थी। सम्भवतः उसीके यूनानी इतिहासमें भी यो (10) के गौका रूप धारण कर नामसे ही इन मिश्रित यूनानियोंका योनोय या यूनानी भौर उससे योनियोंकी उत्पत्ति होनेकी बात देखी जाती है। नाम हुआ होगा। कारण प्राचीन कालके हेलेन इन