पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५४८

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यवन ५४५ yunan , who divelt in an island in the midst | यथार्थमें क्या वे ही भारतवासी आर्य सन्तानों द्वारा यवन of the Western sea, at the distance of seven नामसे पुकारे गये थे? महाभारतकी नन्दिनीकी यवन- days from the Coast, and the name of whose सृष्टिको कथा और रोमायणके वालकाण्डमें विश्वामित्र country had never been heard by my ancestor, और वशिष्ठके विरोध कथामें शवला द्वारा यवनके साथ the kings of assyria and Chaldoea from the शकसैन्यकी सृष्टि कहानीका अनुसरण करने पर यूनानके remotest times, etc."t पुराणमें उल्लिखित गायरूपीयों के वंशघरोंकी वात याद __ इन यवनान् देशवासी यूनानियोंको वात जव असि- आती है । रामायणमें लिखा है, कि शवलाके हुङ्कारसे रोय और कालदीयवासियोंको मालूम न थी, तब मोजेस के शक और यवन-सैन्यकी सृष्टि हुई थी, वे पीले थे और समसामयिक हिब्रु ओंका उस विषयमें सम्पूर्णरूपसे | पीताम्वर धारण किये हुए थे। वे कौशिक (विश्वामित्र) अभिज्ञ रहना असम्भव नहीं प्रतीत होता। फिर भी के अस्त्रसे व्याकुल हो उठे थे। (वालकाण्ड ५६ सर्ग) केवल यहां तक कहा जा सकता है, कि उनके पीछेके महाभारत भीष्मपर्वके वें अध्यायमें और शान्ति- हिब्रु लेखकोंने एशियाके यूनानियोंको योनीय और पर्व के ६५वें अध्यायमें यवन नगर और वहां- यूरोपके युनानी सम्प्रदायको हेलेनीय कह कर उल्लेख के अधिवासियोंकी वात लिखी है। इस नगरमें किया होगा। क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, क्लेच्छ आदि नाना जातियोंका वास __ ऐतिहासिक युगमें हम ग्रीक या यूनान-साम्राज्यके | था । कहीं कहीं लिखा है, कि शक, यवन, कम्पोज, द्राविड़, एक भाग योन शब्दसे उल्लिखित देखते हैं। कुलिन्द, पुलिन्द, उशीनर, कोलिसर्प और महाशक, एस्काइलास ( Eschylos ) एतेसाने योनियोंके ध्वंसके । आदि जाति क्षत्रिय थे। पीछे ब्राह्मणके अभावमें वृपलत्व निर्मित उनके पुत्रका गमन-प्रसङ्ग उठाया है। वास्तवमें प्राप्त हुए । * कर्णपर्वमें कर्ण और शल्य संवादसें अङ्ग- योनदेश-प्रवासी यूनानियोंको फारसवाले यवन कहते राज कर्ण मद्रराजसे कहते हैं, कि यवन सर्वज्ञ तथा थे। अतएव यवन शब्दसे पहले वैदेशिक और पीछे महापराक्रान्त । शान्तिपर्वमें भीष्मदेवने 'युद्धप्रिय महा- एशिया और युरोपीयोंके संसर्गसे उत्पन्न जातिका ही | वीाशालि जातियोंका उल्लेख करते समय युधिष्ठिरसे वोध होता है। एशिया माइनरके खण्डमें वैदे- यवनोंकी भी प्रशंसा की थी। पद्मपुराणमें लिखा है, कि शिक युनानियोंने उपनिवेश स्थापित किया था और सगर राजाके पिता बाहु है, यह यवन आदि पीछे वहां उनके संमिश्रणसे जिस सङ्कर जातिकी म्लेच्छ जातियों द्वारा हृतराज्य हो कर वनमें चले गये। उत्पत्ति हुई थी, फारसवाले उसीको योन या यवन कहते ( पद्मपुराण स्वर्गखण्ड १५वां अध्याय ) वेटा सगरने थे। पीछे वे श्लेषार्थमें उपनिवेशिक सङ्कर यवनोंके बड़े हो कर यवनोंको पराजित किया और गुरु- नामसे यथार्थ युनानियोंको पुकारनेमें कुण्ठित नहीं की आज्ञासे यवनोंका शिर मुण्डन करा कर होते थे। सर्वधर्मोंका त्याग कराया था। ( हरिवंश १४ अध्याय ) ____ ऊपर पाश्चात्य पुराण, इतिहास और दन्तकथाओं- सिवा इनके मन्वादि स्मृतिमें भो 'यवन' शब्दका प्रयोग के जो प्रमाण उद्धृत किये गये, उनसे अच्छी तरह जाना जाता है, कि यवन और योन एक जातिके ही सन्तान ___यह स्पष्ट कहा जा नहीं सकता, कि हिन्दुशास्त्र र हैं और उन्होंने ऐतिहासिक युगसे भी वहुत पहलेसे | वर्णित ये यवन यथार्शमें यूनानी जाति है या नहीं। विद्यमान रह कर जगत्में प्रतिष्ठा लाभको थी। पाश्चात्य 'योन' यवन शब्दसे अभिहित होने पर भी * Muir's Sanskrit Text, 2nd, I. P, 482 और मनुसंहिता १०४३-४५। + Rawlinsou's Herodotus, I, p. 7. ___ "सर्वशा यवनाः ०० शूराश्चैव विशेषतः" (महाभारत ४६ अ०) Vol. XVIII, 137