पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५५०

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यवन उपयुक ग्रीक-शाखाके मध्यमें दोरीय और योनीयों तक जाना जा सकता है, कि वह भारतके उत्तर- के यत्नसे प्राचीन ग्रीक जातिको समृद्धि तथा प्रभाव पश्चिम प्रान्तसीमासे तथा सिन्धु नदीके दूसरे यथेष्ट वर्द्धित हुआ है। इन योनियोंने सिरियाके निम्न पारसे बहुत दूर पर अवस्थित था। रामायणमें भूमिवासी कानानोंकी वाणिज्य-समृद्धिसे ईर्षान्वित हो लिखा है, कि यवन आदि देश हिमालयके समीप उत्तर- कर अपनो उन्नतिका पथ उन्मुक्त किया था। यूनानी । देशमें विद्यमान थे * महाभारतके मतसे नकुल समन भाषामें फिनिकीय कानान शब्दसे पुका पञ्चनद या पञ्जादको पार कर धीरे-धीरे अपनी शासक- मिस्रदेशके प्राचीन स्मृतिस्तम्भोंसे मालूम होता है, कि | शक्तिका विस्तार करते हुए समुद्र गर्भस्थ दारुण म्लेच्छों- कि केफा या फिनिकीय ईसासे पहले ५६ वीं शताब्दीमें ! को एवं पह लव, यवन, वर्वट, किरात, शक और पार्थिवों- वाणिज्यके प्रभावसे विशेष समुन्नत हुए थे। इस को स्वदेश लाये थे। समयले पश्चिम समुद्रके साइप्रेस द्वीपमें फिनिकीय यह कहने में अत्युक्ति नहीं, कि एशियावासी ये यूनानी प्रभाव जोरोंसे फैला था। इसोसे हम यहां प्राचीन : ही यरोपीय प्रोस या यूनानकी उन्नतिके मुख्य कारण सेमितिक जातिके साथ इण्डो-युरोपियन औपनिवे | हैं। इन्होंने कभी कारीय नामसे, कभी लेलेजिस या षिक समाजका समावेश देखते हैं। इस तरह यूनान कभी बयान नामले परिचित हो युद्धविद्या तथा वाण- और फिनिकीय जातियोंने आपसमे वाणिज्यसूत्रमे आवद्ध ज्यादि सब विपोंमें यथेष्ठ उन्नति की थी। पूर्व के समुद्र- हो कारीय, सोल्यमि आदि सङ्कर यूनानियोंकी सृष्टि को | विहारी जलडाकुओंकी तरह इन योनों या यवनोंने अपने थी। ईसाके पहले हवीं शताब्दीमें मिस्रकी चिनलिपि नामसे ही समग्र ग्रोक जातिको परिचित कराया था। को अनुकृत फिनिकीय वर्णमाला यूनानियोंके यहां जारी हिनु धर्मग्रन्थमें इसी कारण हम प्रोक या यूनानियाँको हुई थी। यवनपुत्र के नामसे अभिहित देखते हैं। किन्तु यूरोपीय पहले हो कह आये हैं, कि वाणिज्य-प्रतिद्वन्द्वी हेलेनो- यूनानी उस प्राचीन युगमें अपने एशियाकी भ्रातृमण्डली- ने अपनी जन्म-भूमि यूनानको छोड़ विभिन्न स्थानों में | को 'योन' (यवन ) शब्दसे ही अभिहित करते थे या जा कर उपनिवेश स्थापित किया था। इस स्थानीय | नहीं इसका विशेष प्रमाण नहीं मिलता। फिर भी, शालाने भो उस प्राचीन समयमें वर्तमान एशिया माइ- | यूनानी ग्रन्थों में लिखे Iasion, Iason, lasian, Argo नरके पश्चिम किनारे आ वहां अपना एक उपनिवेश | आदि नामों के अनुसरण करनेसे स्पष्ट ही अनुमान होता स्थापित किया। इतिहासमें इसका पता नहीं लगता, है, कि एशिया माइनरसे जो सभ्यताका स्रोत प्रोकराज्य कि किस समय और किस घटनाचक्रमें पड़ कर योनीय दल एशिया महादेशमें आया था। एशिया माइनरके जिस * रामायण किष्किन्ध्याकाण्ड ४३ सर्ग ४-१३ श्लोक। स्थानमें स्थानीय शाखाने आ कर वास किया था. उस महाभारत समापर्व ३२ अध्याय । दिग्विजय प्रकरणके इस स्थानमें भी पीछे उनके नामानुसार योन या यवन नाम | अध्यायको पढ़नेसे यवनों के भारतका पश्चिम प्रान्त और समुद्र हो गया। भारतीय पुराणों में यह योन या यवन नगर किनारेके प्रदेशोंमें रहना साबित होता है। अतएव यवन कहनेसे भारतवर्षको पश्चिमी सीमा पर निर्दिष्ट किया गया है।* अस्त्र, फारस या योनराज्यवासी यूनानियोंको समझ लेनेसे कोई हिन्दूशास्त्रमे लिखी इस यवन जातिकी वासभूमि | दोष दिखाई नहीं देता। यूनानी इसी यवन नगरके अधिवासी या अधिकृत राज्य कहां था, उसका स्पष्ट कोई सीमा होनेके कारया यवन नामसे परिचित हुए हैं। आसीरीयराज सल्म- निर्देश पुराणों में नहीं हुआ है। आलोचनाओंसे जहां ! नेसरके राजत्वकाल (७२६-७२५ ईसाके पूर्व)-में खोर्साबादके राजमहलकी खुदी हुई शिलालिपिमें योनोंको Jaounin या यवन

  • विष्णुपुराण २१३ अध्याय, तथा ब्रह्माण्डपुराण अनुषन । नामसे ही अभिहित किया गया है।

पाद ४८।१६ श्लोक। (See Rev. Archeologique for 1850: Parest