पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५५१

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५४८ यवन या यूनानमें वह आया था, उसके साथ योन (Ionia) का अन्तिम राजा कद्रु स ( Vodrus )के पुत्रोंके अधिनाय- सम्बन्ध था ।* कत्वमें परिचालित हो कर समुद्रयात्रा को। यही इस योन ( यवन ) जातिको उत्पत्तिका इतिहास | यूनानी इतिहासमें यवनोंकी देशान्तर-यात्रा ( Greak गभीर स्मृति-सलिलमें निमग्न हो गया है। महाकवि | Tonian migration ) लिखी है । होमर-लिखित इलियडग्रन्थ laones ( N, ६८५) शब्दमें उस यात्रिदलके साथ आटिकावासी और पिलोप- केवल एक बार यवन शब्द उल्लेख दिखाई देता है । द्रय- | निसस्से भाग कर यवन और यूनानके कई स्थानोंके यद्धावसानके बाद यवनोंने आटिका, पिलोपनिसाससके छोटे छोटे दलोंने एक साथ ही यात्रा की थी। (Herod. उत्तर और कोरन्थियन उपसागरके किनारे आ कर | | 1, 146) यात्रियों जो नेलेउसके ( Neleus) अधीन हो बास किया था। हिरोदोतस का (viii, 44 ) कहना है, एसियाके किनारे अग्रसर हुए थे, उन्होंने हो कारियोंको कि एथेन्सवासी पहले पलास्गी नामसे विख्यात थे। वासभूमि मिलेतस पर अधिकार जमाया। एथेन्सवासी क्सुथास (Xuthus )के पुत्र और एथेन्स-सैन्य दलके योनीयदल ( Athenian ionians) के भाग्यक्रमसे अधिनायक योन (lon)से ही एथेन्सवासो योनीय या सम्भवतः मिलेतस अधिकृत हुआ था। क्योंकि हमें पीछे- यवनके नामसे पुकारे जाते थे। इस योनीय शाखाकी | के फिनिकीय उपाख्यानसे मालूम होता है, कि यहां उत्पत्तिकी ऐतिहासिक भित्ति चाहे जैसी हो, किन्तु | यवनप्रभाव ही विस्तृत था और दोनों जातियां यहां मूलमे एथेन्सवासी और योनीय ( यवन) एक ही थे;} विशेष समृद्धिके साथ आपसमें मिल कर वाणिज्य इसमें कोई सन्देह नहीं। किया करती थी। योनियोंने मोरिया प्रायोद्वीपके पिलोपनिसस्-विभाग- उसी प्राचीन युगके प्रशाके अनुसार योनों- का उत्तरी किनारा जीत लिया था। यहां उन्होंने अपना ने मिलेतस्वासो पुरुषोंको हत्या कर वहांकी प्रभुत्व विस्तार किया। यह प्रान्त उस समय योन, स्त्रियोंको पत्नी बना लिया था। यहांसे उन्होंने क्रमशः या 'इजिया-लिय योनीय नामसे विख्यात् हुआ था। मियान्दर (Haeander) नदीके किनारेके मयूस (Myus) इटलीके दक्षिण पिलोपनिसस्के मध्य भागमें जो समुद्र और प्रियेन (Priene) नगरोमे उपनिवेश स्थापित किया भाग फैल हुआ है। वह भी 'योनीय समुद्रके नामसे था। विख्यात था और तो क्या यूनानके पश्चिम किनारे जो दूसरे एक दलने कद्र सके अन्यतम पुत्र आन्द्रक्लुस द्वीपपुञ्ज मौजूद है, वह आज भी lonian islands या ( Androclus) के अधीन जा इफेसुस् ( Bphesus) यवनद्वीपके नामसे प्रसिद्ध है। पर कब्जा कर कारोय और पलासगीको वहांसे भग़ा ईसाके पूर्व ११०० ई में दोरीयोंने जब पिलोपनिसस दिया। इसके बाद उसने लैविदस और फोलोफन नामक पर चढ़ाई फी थी, तब अकियाइयोंने ( Achaci ) वहाँसे | स्थान पर अधिकार कर लिया। इस शेषोक्त स्थानमें भाग उत्तर ओर जा कर योनीय पर अधिकार जमा लिया। तानगण रहते थे। यवनोंके यहां उपनिवेश स्थापित उसी समयसे उस प्रदेशका नाम एकिया हुआ। पिलोप- करनेके बाद दोनों जातियां एकमें मिल गई। यहांसे निससवासी योन दूसरा उपाय न देख आटिकामें चले कुछ दूर उत्तर यूलियोंके तिउस ( Teos ) नगरमें और गये। यहां भी स्थानका कमरा देख व समुद्रपार जा किओस (Chios) द्वीपके दूसरे किनारे इरिथी (Ery. कर अपने भाग्यका आजमान पर दृढ़प्रतिज्ञ हुए। इसके } thrac) के.किनारे उनका एक और उपनिवेश स्थापित अनुसार उन्होंने भिन्न भिन्न दलमें विभक हो कर हुआ। इसके बाद कोलोफनसे और एक उपनिवेशिक ईसासे पूर्व १०४४वें वर्षके निकट किसी समयमें एथेन्सके | दल एशिया-माइनरके उत्तरी किनारके क्लाजोमणि (Clazomanae) नामक स्थानमें जा कर रहने लगा। इसके बहुत समय बाद भाटिकासे दूसरा एक दल यवन

  • Ency. Brit, th ed. Volx1. p. 91