पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५५५

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५५२ यवेन परिवर्तन हुआ। कोरिन्थीय रण-प्राङ्गणमें पारसी और। स्वीकार नहीं की। पीछे उसने निपल हो कर मात्म- स्पार्टानोंका छः वर्ष तक युद्ध होने के बाद ईसासे पूर्ण समर्पण किया था। प्रथम और द्वितीय युद्धमें जयलाम ३८७३ वर्ष में अन्तलिकिदस्को सन्धि हुई । इस सन्धि कर सिकन्दर स्पर्द्धित नहीं हुआ। उसने य नानके की शर्तों के अनुसार साइप्रस होप और एशियाके य नान निर्वाचित सेनापति हो कर ही देशमें वीरत्वगौरव नगर पारस्यराजके हाथ आये। पारस्यराजने इस विस्तार कर सारे य नानको पारस्वकी अधीनता पाशसे समृद्धिशाली नगरोंकी विशेष क्षति नहींको थी । छुड़ाया। किंतु तोसरीवारके युद्धमें जयलाभ कर उसको क्योंकि आलेकसन्दर या सिकन्दरकी यात्राके समय इन विजयवासनाने नया रूप धारण किया। वह उस समय सव स्थानोंमें विशेष सम्पत्ति मौजूद थी। किन्तु | हेलेन या माकिदनके आधिपत्यसे सन्तुष्ट न हो कर पारस्य विप्लवोंमें योनराज्यका जो ध्वंस हुआ था, पारस्य साम्राज्यके अधीश्वरपदका अमिलापो हुआ। उसकी पूर्ति फिर न हो सको। पारस्थ-सिंहासन पर बैठनेके बाद उसके दिल में घमण्ड- ईसासे ४०४से २६२ पहले तक य नानके अन्य का चिह्न लक्षित हुआ। स्थानों में स्पार्टान् और थेविसदलका प्रादुर्भाव दिखाई सिकन्दर देशों पर विजय प्राप्त करते हुए जितने ही देता है। अन्तिम वर्ष में स्पार्टीन थेविस-सेनापति थपि- एशियाके वोचमें अग्रसर होने लगा, उतने ही मिनोन्दसके हाथ पराजित हुआ था सही; किंतु रणक्षेत्र- योनों ने पूर्वाञ्चलमें आ कर उपनिवेशो का विस्तार में सेनापतिकी मृत्यु होनेसे फिर युनानीराज्यमें विश्ट-, किया। इस समय हेलेनके इतिहासमें एक नये युगका डाला फैल गई। जेनोफोनने लिखा है.कि पिलोपनि । प्रारम्भ दिखाई देता है। इस समयसे हेलेनवासियों- सस् युद्धके वोदसे जो शासन-विष्टकला और युद्ध की प्रकृति दो तरहसे गठित हुई । १ आदि य नानी और विग्रह य नानको रात दिन उत्पीड़ित कर रहा था। एशियायो यूनानो या यवन । वे निःसन्देह हेलेनिक शाखा एपिमिनोन्दसकी मृत्युके वाद वह और भी सौ गुना बढ़ समुद्भुत हैं और रक्तमिश्रणसे एक जाति होने पर भी गया। दोनों दलों में स्वभाव-जनित अनेक वैलक्षण दिखाई इसके ३ वर्ष बाद माकिदनपति फिलिप पितृसिंहा- दिये थे। उनके राजा, भाषा और सभ्यतारुचि प्रायः सन पर बैठा । वीरवर फिलिप और उसके पुत्र दिग्वि- हो एक थी, किन्तु क्रमशः उनके शरीरमें विशुद्ध हेलेनिक जयी सिकन्दरके वीर्यावलसे माकिदन-शक्तिका सम्यक् रक्तस्रोत प्रवाहित न हो सका। जितने ही वे मध्य अभ्युत्थान हुआ। महावीर सिकन्दरके समयमें यनान। एशिया में प्रवेश करते जाते थे, उतने ही वे उनको विभिन्न राज्यमें जो राजनीतिक सङ्घर्ष उपस्थित हुआ था, जातियोंका सम्बन्ध होता जाता था। इस समय उनकी यं नानके इतिहास पढ़नेसे वह जाना जा सकता है। । प्रकृति आधी यनानो और आधी वर्वरकी तरह हो सिकन्दर और ग्रीस देखो। गई थी। सिकन्दरके इस विजय-समयको तीन भागोंमें विभक्त पूर्वोक्त लिविय-राजवंशके अधीन योनराज्यमें यथेष्ट किया जा सकता है। ईसासे ३३४ वर्ष पहले पानीकसके श्रीवृद्धि हुआ था। दीर्घकालव्यापी पारस्यके युद्धमें जीत लेने पर उसने समन एशिया माइनर राज्यों पर कब्जा योन-राज्यकी जो क्षति हुई, माकिदन वंशके अभ्युदयसे कर लिया था। इसके एक वर्ण वाद इसूस रणक्षेत्रमें | उसका बहुत कुछ संस्कार हो गया था । रोमकोंके अधोन विजय प्राप्त कर उसने सिरिया और मिस्रराज्यमें प्रवेश योनोंका वाणिज्य अक्षण्ण तथा साहित्यचर्चा विशेषरूप- करनेको पथ साफ किया। इसके दो वर्ण वाद आर्वे- से आदत थी, किन्तु उनके राजनीतिक जीयनप्रदीप ला रणक्षेत्रमें जयी हो वह कुछ सरायके लिये यफ्रेटस | निस्तेज तथा निर्वाणप्रायः हो आया था। उस समय नदी तक समन पश्चिम एशियाका अधीश्वर बन गया। उस विख्यात १२ नगर और राजधानी सामान्य प्रादेशिक था। योनराज मिलेतसने पहले उसकी अधोनता नगरके रूपमें परिगणित हुई थी, उस विगत समृद्धिका