पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५६

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मुद्रातत्त्व (भारतीय) |गलगिटके उत्तर, सिन्धुनदके पश्चिम तथा काश्मीरके | drachm ) पाई गई है। यह मुद्रा बुधगुप्तकी मोहरादि पूर्वमे प्रचार हुआ था। किदारवंशका प्रभाव काश्मीर के ढंग पर बनी है। तोरमाणका नाम और मुख उल्टा को मदा पर देखा जाता है। हूणोंके अभ्युदयसे किदार- कर बैठाया गया है। तोरमाणके पुत मिहिरकुलके वंश शक्तिहीन हो गया। हूणाधिप मिहिरकुलके वाद | रजतखण्डमें शासनीय गढ़न रहने पर भी पिता पुत्रके किदारवंशने फिरसे मस्तक उठाया। पीछे स्वीं सदो | ताम्रखण्डमें शासनीय और गुप्त दोनों मुद्राको गढ़न तक इस वंशने गान्धारका शासन किया था! इसके | देखो जाती है। वाद किदारराज्य ब्राह्मणवंशके अधिकारमुक्त हुआ । युक्तप्रदेश, राजपूताना और मालधके नाना स्थानोंसे किदारराजाओंकी मुहरादि पर एक ओर इस वंशके प्रति- अनेक प्रकारको हूणमुद्रा आविष्कृत हुई है। इनमेसे किसी छाता 'किदार'का नाम और दूसरो ओर उस शके मुद्रामे नाम है और किसीमें मिट गया है। ये सब मुद्रा अन्यान्य राजाओंके नाम अङ्कित हैं। ५४४ ई०सन्के पहलेको होने पर भी किस हूंणवंश द्वारा हूणमुद्रा । उनका प्रचार हुआ वह आज तक भी किसोको नहीं बहुत पहलेसे भारतवर्ष हणजातिका वास होने मालूम । पर हां, प्रनतत्त्वविदोंका अनुमान है, कि पर भी श्वेत-हूण वा हारहूण इस देशमे बहुत पोछे आये। तोरमाण, मिाहरकुल आदि पराक्रान्त हूण राजाओके श्वेत-हूण अक्षुजनपदवासो तातार-वंशके थे । ५वीं सदी । आधिपत्यकालमे भारतके नाना स्थानोंमे उन लोगोंके में इस जातिने प्रवल हो पारस्यके शासनराजाओं के साथ हूण सामन्त लोग राज्य करते थे। अनिर्दिष्ट हूण तुमुल संग्राम ठान दिया। २य यजदेगादके शासनकाल मुद्राएं उन्हो लोगोंके द्वारा प्रचलित हुई होगा। ( ४३८-४५७ ई० )-में शासन लोग श्वेत-हूणोंसे परास्त । हुए। उसके साथ साथ भारत-सीमान्तका उनका' युक्तप्रदेशसे कुछ मिश्र मुद्राए वाहर हुई हैं। उनकी शासनाधिकार श्वेत-हणोंके हाथ लगा। जिस हूण- वनावट शासन मुद्रा-सी है, फिर भी वह शासनीय अधिनायकने किदार-कुशनोंके हाथसे गान्धारराज्य । पहवी, भारतीय, पूर्वानागरी और अज्ञात* एक प्रकार छीन कर शाकलमे राजधानी बसाई, वे हणमुदामे लिपियुक्त है। प्रत्नतत्त्वविद् कनिहमने उन सव मदाओं- 'राजा लखन उदयादित्य' और चीन प्रन्थमे 'लिए-लिह' ! को श्वेत हूण वतलाया है। , किन्तु रापसन नामसे प्रसिद्ध है। आदि मुद्राविद्गण यह स्वीकार नहीं करते । हूण मुद्रामें कोई विशेषता नहीं है। वह शासन | वे लोग उन्हें शासन (Sas-anian ) राजवंशको वत- कुशन अथवा गुप्त मुद्राके अनुकरण पर वनी है। उस ! लाते हैं। इस मुद्राके एक ओर श्रावासुदेवका नाम मुद्रासे कव और किस किस देशमे उन लोगोंका आधि प्राचीन नागरी लिपिम और दूसरी ओर शासनीय पहवी पत्य फैला था, उसका बहुत कुछ पता लगता है। भाषामे अङ्कित देखा जाता है। उसकी गठन पारस्या- श्वेत इणोंको सबसे प्राचीन मुद्रा शासन मुद्राको जैसी धिप श्य खुशह परवोजकी मुद्रा जैसी है। इन सव है। उसके एक ओर 'शाहि जावल" नामक हूण नायक वासुदेव मुद्राके पहवी अंशमे वे 'वहमन (ब्राह्मणवासी), का नाम और मुख तथा दूसरी ओर शासनीय अग्नि 'भूलतान', 'तकान', 'जवुलिस्तान' और 'सपादलक्षान्' वेदो अङ्कित है। आख्याओंसे विभूषित है। इन सब कारणोंसे उन्हें लखन उदयादित्यके पुत्र तोरमाणने राजपूताना और मालव तक आधकार किया था। मारवाड़-

  • इस अज्ञात लिपिको कोई कोई शकशासनीय मुद्रामें

अञ्चलसे उनको वहुत-सो मोहरें पाई गई हैं। तोरण- व्यवहृत ग्रीक लिपिका परिवर्दित रूप बतलाते हैं । (Rapson's माणने पूर्व मालवमे गुप्ताधिकार तकको भी अपना Indian coins. p. 30) "लिया था। मालवसे उनकी चांदीको अठन्नी (Hemi N umismatie chronicle, 1894, p, 269, 289, Voin xVIII, 14