पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५६०

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यवन परोपनिसास को पार कर कात्रुल, कन्दहार और गजनीके। चना करने पर मालूम होता है, कि यवनराजाओं का समीप देशोंमें आ उपस्थित हुआ। ऐतिहासिकोंने इसी प्रभाव अभी हीन था, तब तक भारतमें शकों का समयको हर्मयसके राज्यावसान कालको कल्पना को है। प्रादुर्भाव हो गया। यद्यपि हेलियालसके वंशधरोंने हर्मयसके सिक्के में महरजस' तदरस एसयस या 'इरमयस' ईसासे २० वर्ष पूर्ण तक भारतका शासन किया था, नाम अङ्कित दिखाई देता है। सिवा इसके 'महरजस तथापि ऐसा अनुमान नहीं होता, कि उन्होंने सम्पूर्ण अपतिहतस पिलसिनस' और 'थिउफिलस' नामक रूपसे निर्विवाद शासन किया होगा। हेलियक्लयसके दो राजाओंके नामके सिक्के मिले हैं। शासनकालसे यवनशक्तिका ह्रास होने लगा धर्मयसके ___ हर्मयसके बाद यवनवंशका विलकुल ही लोप नहीं शासनकाल मध्यका है। इस तरह धोरे धीरे गिरते हो गया था, वरं क्रमशः शकराजाओं के हाथ जोते जा कर ! गिरते ईसासे २० वर्ष पूर्वके वर्पमें इस यवनराजकी यवन सामन्तराजा रूपमें मनमार कर रहने लगे। हतश्री हो गई। अपनी पहली शक्तिको पुनः लौटाने में समर्थ नहीं हो ईसाकी पहली ही शताब्दी उत्तर-भारतके इतिहासा- सके। क्यों कि इस समय खोज करनेवालों के गहरी , में ऐसा दिखाई नहीं देता, कि एकमात्र यवनराज वंशने खोजसे जो ऐतिहासिक तत्व प्राप्त हुआ उससे स्पष्ट । हो राजत्व किया हो । क्योंकि, हम रौप्य और ताम्रमुद्राके मालूम होता है, कि यवन हिन्दूप्रधान भारतमें आ कर प्रमाणसे जान सके हैं, कि उस समय शकवंश-सम्भूत क्रमशः हिन्दू भावापन्न हो उठे। आज भी उनके ग्राचीन । दो राजवंश, देशीय हिन्दूराजे और शकप्रभावसे प्रभा- सिक्के उसका साक्षा प्रदान कर रहे हैं। सांची, भरहुत न्वित दूसरा एक राजा द्वारा पश्चिमोत्तर भारत शासित आदि स्तूपोसे, ईसाको पहली शताब्दिको शिलालिपिमें, हो रहा था। उपरोक्त अन्तिम राजा यवन थे या शक ? 'धर्मयवन' नाम रहनेसे प्रनतत्वविद् समझते हैं, कि बहु-। प्रत्नतत्त्वविदोंने मुद्रा देख कर इसका निपटारा करने में तेरे यवन तो वौद्धधर्म ग्रहण कर भारतीय हो चुके थे।। अपनी असमर्थता प्रकट की है। इन सब राजाओंके शफराजाओंने भी यवनोंके अनुकरणसे हो या भारतीय सिकोंमें यवनप्रभाव प्रचुर प्रमाणसे परिलक्षित हो रहा प्रज्ञा मनोरञ्जनके लिये हो,सिक्के ढालनेके विषयमें ' है। किन्तु इन पर खुदे राजासोंके नाम शक-सम्बन्ध हिंदृपद्धतिका अनुसरण किया था । और तो क्या, ये अत्रि-। बतला रहे हैं । इससे अनुमान होता है, कि यवनराजाओं- चलित चित्तसे यवनराजाओंकी प्रतिकृति अहित करती ने विजेता शकोंके अधीन हो राजाकी सन्तुएताके लिये हुई सिक प्रचलित कर गये है। इससे यवन और शक शकभाव धारण किया होगा। यह भी हो सकता है, राजाओंमें पार्थाश्य दिखाई नहीं देता। इससे शकराजा कि प्रवल शक उत्तर-भारतमें अपने प्रभावको धीरे धीरे ओं की सूची तय्यार करनेमें बड़ी कठिनता आ गई है। | कायम करनेके लिये पहले पश्चिम-भारतके पूर्व प्रचलित मुद्रातत्त्व देखो। यवन भावका अनुसरण किया हो। फिर उन्होंने यह भी ऊपर जिन ववन राजाओं के नाम और उनके शासन देखा होगा, कि ऐसा करनेसे शान्तिके साथ प्रजाचित्त- काल लिख गये, वे सर्वमतसे सन्द हरहित और युक्ति रञ्जन होगा। जो हो, इस समय जो सिक्के मिले हैं, साधित हैं, ऐसा किसी तरह नहीं कहा जा सकता। उनसे पता चलता है, कि उस समय यवन और शकोंका पूर्वतन प्रत्नतत्त्वविद् सिक्कों के साहाय्यसे और वैदेशिक एक अभूतपूर्व संमिश्रण हो गया था। इतिहांसोंको देख कर इसा यवन जातिके राज्यविस्तारके यवन-राजाओंके अभ्युदयकालमें हो शक भारतमें आ संबंध जिस.एक काल्पकिसिद्धान्त पर पहुंचे थे, इस समय गये थे। इसका चीन इतिहाससे हम प्रमाण पाते हैं। वह वात परिवर्तित हुई है। वर्तमान प्रत्नतत्वविदों और बहुत समय तक शक-यवन-संस्पर्शसे एक जातीय सम- ऐतिहासिकों के अनुसंधानके फलसे उत्तर भारतके | न्वय सम्पादित हो गया था। इतिहासको आलोचना यवन संसवका जो इतिहास प्रकट हुमा है, उसे आलो- करने पर उसका विशेष विवरण मिल सकता है। चीनके Vol, AVIII, 140