पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५६४

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यवनद्विष्ट-यवफला यवनद्विष्ट ( स० पु० ) यवनैटिः हिन्दुप्रियत्वात् । यवन देशसे आये हुए कपड़े से बनते थे; इसीलिये तथात्वं गुग्गुल। इनको यवनिका कहते हैं। यवनद्वीप-भारतमहासागरके एक द्वीपका नाम, यमद्वीप यवनी (सं० स्त्री०).यूयते पच्यते भुक्तमनया यु-ट्युट, या यवद्वीप । यवद्वीप देखो। डोप। १ यवानी नामक एक औषध । २ यवनकी यवनपुर ( स० क्ली०) यवनोंकी राजधानी, अलेकसन्द्रिया या यवन जातिकी स्त्री। ३ यवनदेश जो उत्तरमें अव- नगरी। | स्थित है। (जैनहरि० १३६१३३) यवनप्रिय ( स० क्ली० ) यवतानां प्रियं। मरिच, मिर्च । यवनेट ( स० क्ली०) यवनानामिष्ट । १ सीसक, सीसा। यवनभोजन (संपु०) मरिच, मिर्च। २ मरिच, मिर्च। ३गृजन, गाजर । (पु.) ४ लशुन, यवनमुण्ड (सं० पु०) १ मुण्डित शिर यवन । २ यवनों- | लहसुन । ५निम्ब, नीम । ६ पलाण्डु, प्याज । ७ राज- की तरह मुड़ा मस्तक। पलाण्डु, शलगम। यवनाचार्य ( स० पु०) यवनो नाम आचार्य। यवन | यवपटोल (सं० पु०) ज्वररोगमें प्रयोज्य कपायभेद । जातिका एक ज्योतिपाचार्य। इन्होंने अष्टकवर्गविन्दु- प्रस्तुत प्रणाली-पटोलपत्र १ तोला और यवका दाना फल, ताजिकशास्त्र, मीनराजजातक, यवनसार, यवन- १ तोला, पाकार्थ जल ३२ तोला, शेष ८ तोला। इसके होरा, रमलामृत, लग्नचन्द्रिका, वृद्धयवनजातक और ठंडा होने पर मधु आधा तोला मिला कर सेवन करे। . स्त्रीजातककी रचना की। इसका उल्लेख वराहमिहिर, इसके सेवन करनेसे तीव्र पित्तज्वर, दाह और तृष्णा आदिने किया है। इनका दूसरा नाम यवनेश्वर भी था। अति शीघ्र जाती रहती है। (भैषन्यरत्ना० ज्वराधिक) विद्वानोंका अनुमान है, कि ये सम्भवतः टलेभी थे। 'यवपल्ल (सं० पु०) यवपलाल, जौका रूखा डंठल । यवनानी ( सं स्त्रो०) यवनानां लिपिः ( यवनाल्लियां । , यवपिष्ट (स' क्ली०) १ यवचूर्ण, यवका आटा। ३ यवकी पा। १२१४६) इति वाति कोफ्त्या ङीष, आनुगागमश्च ।। पिठालो। १य नानकी लिपि। २ यूनानको भाषा। (नि.) यवप्रख्या (सं० स्त्री०) यव इति प्रख्या यस्याः। क्षुद्र- ३ यवन सम्बन्धी, यू नानका। । रोगविशेष। इसका लक्षण- यवनारि (स० पु०) यवनस्य कालयवनस्य अरिः शनु । "यवाकारा सुकठिना प्रथिता मांसमिश्रिता। १श्रीकृष्ण जिनकी कालयवनसे कई लड़ाइयां हुई थी। पीड़का श्लेष्मवाताभ्यां यवप्रत्येति सोच्यते ॥" २ यवन जातिके शनु । (भावप्र० क्षुद्ररोगाधि०) यवनाल (संपु०) यवानां नाला इव नाला यस्य । १. इस रोगमें वायु और कफका प्रकोपप्रयुक्त यवकी धान्यविशेष, जुआर। पर्याय-योनाल, पूर्णाह्वय, देवधान्य, तरह वोचमें मोटा और वगलमें कृश अथच अतिशय जोन्ताला, वीजपुष्पिका। २ जुआरका पौधा । ३ यव- । कठिन और मांसस'श्रित पीड़ा होती है। दएड, जौके डंठल जो सूखने पर चौपायोंको खिलाये। इसकी चिकित्सा-इस रोगमें पहले खेद दे कर जाते है। पोछे उसमें मैनसिल, देवदारु और कुट पीस कर लेप यवनालज (सपु० ) यवानां नालेभ्यो जायते इति जन- देनेसे अति शीघ्र जाता रहता है। इस पीड़काके पक . ड) यवक्षार, जवाखार। जानेसे व्रणरोगकी तरह चिकित्सा करनी चाहिए। यवनाश्व (सपु०) मिथिला देशके एक प्राचीन राजा। इनके पिताका नाम था वहुलाश्व । (भावप्र० क्षुद्ररोगाधि०) । यवनिका (स० स्त्री० ) पुनात्यावृणोत्यनया, युच्युट । २ जटामांसी, जटामासी । ३ कुटज । ४ पलाण्ड, यवफल (सं० पु०) यववत् फलमस्य । १ वंश, बांस । । डोप स्वाथै कन्, राप्। १ यवनिका, कनात । २/ प्याज । ५ इन्द्रयव, इन्द्रजौ। ७ प्लक्षवृक्ष, पाकड़का पेड़। नाटकका परदा । प्राचीनकालमें नाटकके परदे सम्भवतः | यवफला (सं० सी० ) यवफल देखो। Vol. xVIII, 141