पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५६८

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यवासक-यव्यावती जाता है, उसे शरीरमें लगानेसे वातध्याधिमें बहुत लाभ रहते हैं। ये कृषिजीवी हैं। रेशम उत्पन्न करना पहुंचाता है। ही इनका प्रधान व्यवसाय हैं। ये सभी बौद्धधर्माव- इसकी डालसे दूधके समान गोंद निकलता है। मध्य लम्वी हैं। एशियामें उसे 'तरञ्जवीन' और अङ्ग्रेजी में Manna कहने यविष्ट (सं० लि०) अयमेषामतिशयेन युवा इति युवन् हैं। उस गोंदके सुखने पर सागूदानेकी तरह गोल दाने | इछन् यवादेशश्च ।.१ अतिशय युवा, बहुत बडा । (पु०) दिखाई देते हैं। भारतमें उत्पन्न होनेवाले यवासमें यह २ कनिष्ठ भ्राता, छोटा भाई । मीठा निर्यास प्राय नहीं देखने में आता। खोरासन, ____ "भ्रातुर्यविष्ठस्य सुतानविवन्धून प्रवेश्य लाक्षाभवने ददाह।" कुर्दिस्तान, हामदान, पेशावर, पारस्य और वोखारा | ( भागवत ॥११५) आदि स्थानोंसे इसकी आमदनी होती है। ग्रीष्मकालमें ३ अग्नि । ४ ऋषिभेद, ऋग्वेदके एक मन्त्रके द्रष्टा जव सभी तृणगुल्मादि सूख जाते, तब इसके पत्ते एक- ऋपिका नाम । इन्हें अग्नियविष्ठ भी कहते हैं। मात्र ऊटोंके भोजन होते हैं। उत्तरभारतमें इसकी यविष्ठयत् (स० वि०) युवासदृश, बड़े के समान । टहनियोंसे एक प्रकारकी शीतलपाटी बनाई जाती है। यविष्ठ्य वद् वृद्धतमोऽपि राजा ।" ( भट्टि) २ खदिरभेद, एक प्रकार खैर । सारा यविष्ठ्य (स० त्रि०) अतिशय युवा, बहुत बड़ा । यवासक (सपु० ) श्वास-स्वार्थे फन् । दुरालभा, । यवीनर (० पु०) १ पुराणानुसार अजमीढके एक पुत्रका जवासा नामक कांटेदार क्षुप। नाम । २ भागवतके अनुसार द्विमोढ़के एक पुत्रका नाम । यवासशर्करा (सं० स्त्री० ) यवासेन तद्रसेन कृता शारा, ३ भर्माश्वका पुत्र । ४ वाह्याश्व । शाकपार्थिववत् समासः। यवास-रसघटित शारा, वह यगोयस् ( स० वि० ) अयमनयोरति शयेन युवा युवन् शकर जो जवासाके रससे तैयार की गई हो। पर्याय-! (द्विवचनविभन्योपपदे तरवीयसुनौ। पा ५॥३६५७ ) इति ईय- सुधामोदक, मोदक, तवराज, खण्डसर, खण्डज, खण्ड- सुन् । १ अतिशय युवा, बहुत बड़ा। २ कनिष्ठ, सबसे • मोदक। वैधकमें इसे अत्यन्त मधुर, पित्तश्रम और छोटा। (मनु २११२८) तृष्णानाशक माना है। यवीयुध (सं० त्रि०) रणप्रिय । यवासा (सं० स्त्री०) यवास-टाप् । गुण्डासिनीतृण, यवु-कावुलका छोटा घोड़ा। जवोसा नामक घास। | यवोत्थ (सं० क्ली० ) यवेभ्य उत्तिष्ठतीति उत्-स्था क। यवासिनी (सं० स्त्री०) यवास क्षुपपूर्णक्षेत्र वा देश, सौवीरक, जौकी कांजी। वह खेत या देश जो जवासा नामक क्षु पसे भरा हो। यवोदर (सं० क्ली० ) जौका मध्यभाग। यवाहर-दाक्षिणात्यके अमदावाद जिलान्तर्गत एक यवोद्भव (सं० पु० ) यवक्षार, जवाखार। सामन्तराज्य । यहाँके सामन्त-सरदार कोलिवंश- यवोद्भता (सं० स्रो०) यवशर्करा, जौका मांड। यवोर्वरा (सं० स्त्री०) यवक्षेत्र, जीका खेत । यवाहार (स० लि.) यवान्नजीवी, जौ खानेवाला। यध्य (सं० त्रि०) यवानां भवनं क्षेत्र । यव ( यवयवकर्षाः यवाह (सं० पु०) यवमाह्वयति खकारणत्वादिति आहे क ।। ष्टकाद् यत् । पा ५।२६३) इति यत् । १ यवादिभवनोचित- १ यवक्षार, यवाखार। स्त्रियां टाप। २ यवानी, अज- | क्षेत्र, वह खेत जहां जौकी फसल होती हो। पर्याय- वायन । ३ दुरालभा, जवासा नामक क्षुप। यवक्य, यटिका, यवोचित, यवकोचित । २ यवहित, जौ यविक (०नि०) यवोऽस्यास्तीति (तुन्दादिभ्य इलच्।। चाहनेवाला। (पु०) ३ मास, महीना। (स्त्रो०)। पा ॥२११७) इति ठन् । यवयुक्त, यवविशिष्ट । । एक नदीका नाम। यविन-ब्रह्मके तेनासेरिम विभागके तौङ्ग-नगुवासी एक यव्यावती (सं० स्रो०) १ वैदिककालको एक नदो। २ जाति। इस जातिके लोग पेगुयोमा पर्णतके ढालूदेशमें | वैदिककालकी एक नगरी। Vol xVIII, 142