पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५६९

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- - - यश-यशदान यश (सं०क्ली०) यशस देखो। । शोधन-विधि-जस्तेको आगको गरमीले गला कर यशःकर्ण ( स० पु. ) गढ़ा देशके एक राजपुत्रका तेल, मट्ठा, काजी, गोमूत्र, कुलथी, फलायका काढा और नाम। अकवनका दूध प्रत्येक द्रव्यमें यथाक्रम तीन तीन बार यशःकर्णदेव-चेदिराज्यके एक राजा । कलरिवंशीय । निक्षेप करनेसे यह शोधित होता है। .. १४वे राजाके शिलाफलकले मालूम होता है, कि उन्होने माणरविधि-एक मट्टीके वरतनमें जस्ता गला कर आन्ध्रराजको हरा कर चम्पारण लूट लिया था । कन्नौज- उसके चौथाई भागके वरावर इमली और पीपल के पेड़की पंति गोविन्दचन्द्रने उनका राज्य जीता था। ११२२ छालको चूर्ण कर उसमें डाल दे और लोहेके हत्थेसे ई में मौजूद थे। चलाये। इस प्रकार दो पहर तक करते रहने- यशाकेतु स० पु०) राजपुत्रभेद । ( कथासरित्सा०८०४) से जस्ता भस्म हो जाता है। पीछे उस भस्म- यशःपटह (सं० पु० ) यशासूचका पटहः शाफपार्थिववत् | मैं उतनी ही हरताल डाल कर तथा अम्ल द्वारा समासः। ढका, ढाका मर्दन कर गजपुटमें पाक करना होगा। अनन्तर उसे यशपाल (संपु०)१ कौशाम्बमण्डलका एक राजपुत्र ।' फिर अम्ल द्वारा मर्दन कर उसके दशांश हरितालके २ मोहराजपराजयके प्रणेता। ये राजा अजयदेवके साथ एक पहर तक पुट-पाक करे। इसी नियमसे जाते. मन्त्री थे। इनके पिता दागदेव भी प्रधान मन्त्री थे। का मारण करना होता हैं। शोधित जस्ता कपाय, तिक- पे मोढ़वंशीय थे। । रस, शीतवीर्या, चक्षु का अत्यन्तहितकारक तथा कफ, यशद (सक्लो०) धातुविशेष, जस्ता। यह कालापन पित्त, मेह, पाण्डु और श्वासरोगनाशक है। (भावप्र० ) लिये सफेद या खाकी रंगका होता है। इसमें गधा यशद आयुष्मत-वौद्ध-अहं त्भेद। महावोधिनिर्वाणके मश बहुत रहता है। इसका व्यवहार अनेक प्रकारके, ११० वर्ण वाद ये कोशलराज्यमें अवस्थित थे। कार्यों में विशेषतः लोहेकी चादरों पर, उन्हें मोरवेसे , यशदान-१ वम्बईप्रदेशके काठियावाड पोलिटिकल ऐजे-. बचानेके लिये कलई करने बैटरोमें विजलो उत्पन्न करने न्सीके गोहेलवाड़ विभागके अन्तर्गत एक देशीय सामन्त तथा वरतन आदि बनाने में होता है। भारतमें इसकी राज्य। भूपरिमाण ६८३ वर्गमील है। १८०७ ई०में सुराहियाँ बनती हैं जिनमें रखनेसं पानी बहुत जल्दी और वृटिश गवर्मे एटके साथ इस राजवंशको मित्रता स्थापित खूब 'ढा हो जाता है। इसे तविमें मिलानसे पीतल । हुई। बड़ौदाके गायकवाड़, जूनागढ़के नवाव और वनता है। जर्मन सिलबर वनानेमें भी इसका उपयोग वृटिश सरकारको यहांके सामन्त १०६६० रु० कर देते होता है। विशेष रासायनिक प्रक्रियाले इसका क्षार) हैं। सैन्यसख्या ३४१ है। भी बनाया जाता है। उस क्षारको सफेदा कहते हैं। २ उक्त सामन्तराज्यका प्रधान नगर। यह अक्षा० औपधों तथा रंगों आदिमें उसका व्यवहार होता है।। २२५० तथा देशा० ७१२८ पू०के मध्य अवस्थित पहले यह धातु भारतवर्ण और चीनमें ही मिलती थी, है। यह नगर बहुत पुराना है। पूर्वतन क्षत्रप-राज- परन्तु आज कल वेलजियम तथा प्रशियामें भी इसकी वशसम्भूत खामी चटनके नामानुसार इस नगरका यश- बहुतसो खाने हैं। यूरोपवालोको इसका पता बहुत | दान नाम हुआ है। जूनागढ़के घोरी वंशके शासन- हालमें लगा है। कालमें यहां एक दुर्ग बनाया गया था। वह दुर्ग आज भी इस धातुका शोधन और मारण करके औपधादिमें घोरपड़ कहलाता है। यहांके सरदारों को गोद लेनेका . प्रयोग करना होता है, विना शोधा हुआ जस्ता विपके अधिकार नहीं है। बड़े भाई अधिक मोहताप (वेतन) समान नुकसान करता है। इसके शोधन और मारण- पा कर राज्याधिकारी होते हैं तथा दूसरे दूसरे भाई का विषय भावप्रकाशमें इस प्रकार लिखा है:- | विषयक अंश भागो हुआ करते है।