पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५७०

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यशपुर-यशंस यशपुर- छोटानागपुर जिलान्तर्गत एक सामन्तराज्य! । नायक एक उकैत सरदारसे वनाया गया है। उसने भूपरिमाण १९६३ वर्गमील है । इसके उत्तर और पश्चिम १८वों सदीमें बहुत दलवल संग्रह कर अपनेको राजा में सरगुजा राज्य, दक्षिणमें गाङ्गपुर और उदयपुर तथा घोषित किया था । केननदीकी नहर इसीके यत्न और पूर्वमें लोहरडंगा जिला है। खर्चसे निकालो गई थी। आज भो उसी नहरसे आस. ____ यह छोटा राज्य पहाड़ी अधित्यका और उपत्यका पासके गावों में जल जाता है। से परिपूर्ण है। पूर्वदिशाकी उपरघाटा अधित्यका क्रमशः यशव ( अ० पु०) एक प्रकारका पत्थर । यह हरा-सा पश्चिममें हेटघाट अधित्यका तक विस्तृत है और विल- होता है। यह वोन और लंका में बहुत होता है। इसकी कुल ढालू हो कर नीची भूमिमें मिल गई है। इस हेट- नादली पनती है जिसे लोग छाती पर पहनते हैं। घाटके दक्षिण यशपुरका शस्य और श्यामलतृणमण्डित कलेजे, मेदे और दिमागको वीमारियोंको दूर करनेका इस समतलक्षेत्र है। उपरघाट अधित्यकासे उत्तरपश्चिम पत्थरमें विलक्षण प्रभाव माना जाता है। यह भी कुछ ऊंची खुरिया नामक अधित्यका है। इन दोनों कहा जाता है, कि जिसके पास यह पत्थर होता है उस अधित्यकाके मध्यवत्ती निन्न देश हो शोन नदीकी इव पर विजलीका कुछ प्रभाव नहीं होता। इसे 'संगे- और कनहार शाखा वहती है। राणिजुला, कोहियार यशव' भी कहते है। और भरमूरि भी यहाँका सर्वोच्च शृङ्ग है। | यशम (२० पु० ) यशव देखो। १८१८ ई०में माधोजी भोसले (अप्पा साहव ) ने यशरोता-काश्मीरराजाके अन्तर्गत एक नगर । यह इस राज्यको सरगुजा समेत अङ्ग्रेजोंके हाथ सपुर्द अक्षा० ३२.२६ उ० तथा देशा० ७५ २७ पूश्के मध्य किया। सरगुजाके अधीन होने पर भी इस राजाके विस्तृत है। पहले यह एक सामन्तराज्य था। राजा इसरदारों को किसी प्रकारका कर नहीं देना पड़ता। सर. रणजिसिंहने अंतिम राजाको राज्यच्युत करके सिंहा- दार केवल वृटिश सरकारको वार्षिक ७७५ रु० कर दिया सन अपनाया था। करते हैं। यशवन्तराव~यशोवन्तराव देखो। . यहां लोहा और सोना पाया जाता है । राजा यशवन्तसिंह बघेले-तिरवा जिला कानपुरके रहनेवाले जगदीशपुरमें रहते हैं। एक प्रन्थकार। इनका जन्म सं० १८५५में हुआ था। यशपुर-छोटोनागपुरके अन्तर्गत एक शैलमाला। यह ये संस्कृत, भाषा और पारसीके वर्ड पण्डित थे ! इन्होंने अक्षा० २२५६४५ उ० तथा देशा० ८३ ३८ पू०के मध्य नायिकाभेदका ङ्गारशिरोमणि नामक मंथ, अलंकारका विस्तृत है। इस पर्वतका सर्वप्रधान शृङ्ग राणिजुला भाषाभूपण योर अश्वचिकित्साका शालिहोत नामक समुद्रपृष्ठसे ३५७२ फुट, भरमुरि ३३६० फुट, चिल्लो ३३०, तीन ग्रन्थ बनाये हैं। सम्बत् १८७१ में इनका स्वर्ग- फुट, लिङ्गवी ३२६३ फुट, भुससङ्गा ३२८५ फुट, तलोरा वास हुआ। ३२५८ फुट, दुलुम ३२४८ फुट, गड़ ३२२६ फुट और | यशचन्द्र ( स०ए० ) राजिष्मतिप्रबोध नामक नाटकके . घासमा ३२२ फुट ऊंचा है। इससे भी और कितने प्रणेता। तीर्थडूर नेमीनाथ इस ग्रन्थके नायक थे। छोटे छोटे गिरिश्रङ्ग हैं। सभी शृङ्ग वनमालासे यशश्चन्द्राढादेशके एक अधिपति । आच्छन्न है। यशःशेष (सं० पु०) १ मरण, मृत्यु । (त्रि०) यश यशपुर-युक्तप्रदेशको तराई जिलान्तर्गत एक नगर। यह एव शेषोऽस्य । २ मृत, मरा हुआ। अक्षा० २६ १६ ४५”उ० तथा देशा० ७८ ५२३०४ यशःसागर-समाशोभा नामक व्याकरणके प्रणेता। पू०के मध्य विस्तूत है। यशस्वामिन-एक प्राचीन कवि। ये ब्रह्मयशःस्वामिन यशपुर-युक्तप्रदेशके वन्दाजिलान्तर्गत एक बड़ा गांव । नामसे जनसाधारणमें परिचित थे। इस प्रामकी सीमा पर अवस्थित अभयपुर दुर्ग हुमायू यशस. (स० क्ली० ) अश्नुते व्याप्नोतीति अश ( अशे.