पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यशोद - यशोधर्मन् यशाद (सं० नि० ) यशो ददातीति दा-क। १ यशदाता, यशोदामन् (२य)-एक पश्चिम क्षत्रप तथा २य सिंहके यश देनेवाला। २ पारद, पारा। पुन। ३१८ ई०में ये विद्यमान थे। यशोदा (सं० स्त्री०) नन्दकी स्त्री जिन्होंने नन्दको पाला' यशोदेव (सं० पु०) १ वौद्धयतिभेद । २ रामचन्द्रके पुत्र । था। योगमायाने यशोदाके गर्भसे जन्मग्रहण किया। यशोदेव-एक कवि। इन्होंने कच्छपधातवंशीय राजा वसुदेव कृष्णको नन्दालयमें रख इस कन्याको ले गौ महीपाल देवकी शिलालिपिकी रचना की। थे। कृष्णा देखो। यशोदेव-नेपालके एक राजा। । महाभागवतपुराणके मतसे-शिवको निन्दा सुत यशोदेवसूरि-पाक्षिकसूत्रवृत्तिके रचयिता, चन्द्रसूरिके कर सतीने जव देहात्याग किया तव दक्ष और प्रसूति शिष्य । इन्होंने मनहिलवाड़में रह कर १९८० सम्वत्में दोनों ही बड़े दुःखित हुए थे। भगवतीको फिरसे पानेकै उक्त ग्रन्थ लिखा। ११७४ सम्वत्में उक्त नगरमें देव- लिये दक्षने हिमाद्विपस्थमें जो सौ वर्ण शक देवोकी गुप्तके शिष्य यशोदेवने नवतत्त्वप्रकरणकी टीका लिखी। आराधना की थी। उनकी सो प्रसूतिने भी परमेश्वरोक सम्भवतः ये दोनों यशोदेव एक व्यक्ति ही थे। निकट जा कर प्रार्थना की थी। उनकी आराधनासे यशोदेवो (सं० स्त्री०) वैनतेयकी कन्या और वृहन्मनाकी संतुष्ट हो देवीने दर्शन दे कर कहा था, 'द्वापरके अन्त पत्नी। पृथिवी पर जा कर तुम्हारी कन्यारूपमें जन्म लूगी, यशोदेवी-बङ्गालके सेनवंशीय राजा हेमन्तसेनकी लेकिन कन्यारूपमें तुम्हारे घर रह नहीं सकती।' यह महिपी । वर दे कर देवो अन्तर्हित हो गई। यथासमय दक्षी यशोधन (स० त्रि०) यश एवं धनं येपां। १ यश ही नन्दरूपमें और प्रसूतिने यशोदारूपमें जन्म ग्रहण किया। जिसका एकमात्र धन है। (पु०) २ एक राजाका नाम । (महाभागवतपु० ५०) यशोधन-धनञ्जयविजयव्यायोगके प्रणेता। ब्रह्मवैवत्त पुराणके श्रीकृष्ण जन्मखण्डमे इस प्रकार यशोधर (सं० पु०) १ कर्म अथवा सावनमासका पांचवां लिखा है,-वसुओंके मध्या द्रोण नामक एक नसु श्रे। दिन । २ उत्सर्पिणीके एक अर्हत्का नाम । (जैन)३ थे। धरा उनको साध्वी सहधर्मिणी थी। एक समय । रुक्मिणीके गर्भसे उत्पन्न कृष्णके एक पुत्रका नाम । धरा और द्रोणने कृष्णको पानेके लिये गन्धमादन पति ' त्रि०) ४ यशस्खो, कीर्तिमान । पर गौतमाश्रमके निकट सुप्रभा-तट पर हजार वर्ष तक यशोधर-१ वात्स्यायन-कामसूत्रको जयमाला टीकाके कठोर तपस्या की। जब इतने पर भी कृष्णके दर्शन न | प्रणेता। २ निवन्धचूडामणिके प्रणेता। ३रसप्रकाश- हुए तव दोनों अग्निकुण्डमें कूद पड़नेके लिये तैयार | सुधाकरके रचयिता। हो गये। इसी समय दैववाणी हुई, 'हे वसुश्रेष्ठ ! दूसरे । यशोधर-एक राजाका नाम । जन्ममें तुम श्रीकृष्णके दर्शन पाओगे।' अनन्तर द्रोणने | यशोधरभट्ट-प्रायश्चित्तविनिर्णयके रचयिता । नन्दरूपमें और धराने यशोदारूपमें जन्मग्रहण किया। यशोधरमिश्र-एक विख्यात जयोतिर्विद तथा कंसारी (श्रीकृष्णाजन्मख० ६०)| मिश्रके पुत्र । इन्होंने दैवज्ञ-चिन्तामणि और फल- २ दिलीपको माता। (हरिवंश १८६०) ३ एक चन्द्रिका नामक दो ग्रन्थ लिखा। पाचात्य वैदिक देखो। वर्णवृत्त । इसके प्रत्येक चरणमें एक जगण और दो गुरु- यशोधरा (सं० स्त्रो०) १ वुद्धदेवकी पत्नी और राहुलकी वर्ण होते हैं। माता। बुद्ध देखो। २ कर्म अथवा सावनमासकी चौथा यशोदानन्द-एक भापा-कवि । १८२८ संवत्में इनका | रात । जन्म हुआ था। इन्होंने एक भापाका ग्रन्थ बनाया है | यशोधरेय (सं० पु०) यशोधराका पुन, राहुल। जिसका नाम 'बरवै नायिकाभेद' है। यह ग्रन्थ वरदै | यशोधर्मन्-मालवके एक प्रवल पराक्रान्त शैव नृपति । छन्दोंमें ही लिखा गया है। | मन्दसोर-शिलालेखमें इनका वर्णन मिलता है जो यों है,- Vol. XVIII, 143