पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५७४

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यशोवन्तनगर-यशोवन्तराव ५७१ वीचोबीच हो कर वह चली है। इस उपत्यकाके वीच, वाजीरावने इन्हें सेनापति बनाया था। इस समय ये उना नगर समुद्रपीठसे १०४ फुट ऊंचा है। बहुत पहले नाबालिग थे, इसलिये माता उमावाई इनकी अभिभा- यहां एक राजपूत सामन्तराज्य प्रतिष्ठित था। वहांके | विका हुई। चालक सेनापतिको अपना कार्य चलानेमें राजपूत लोग यशोवनवासी कह कर 'यशोवान' पज- असमर्थ देख कर पेशवाने पिलाजी गायकवाड़को सेना पूत नामसे खतन्त श्रेणीमुक्त हैं। खासखेलकी उपाधि दे कर उस पद पर नियुक्त किया। यशोवन्तनगर-युक्तप्रदेशके इटावा जिलान्तर्गत एक पीछे १७५० ई० यशोवन्तने पेशवा बालाजीरावसे आधा नगर। यह अक्षा० २६.५२ ५० उ० तथा देशा० गुजरात राजा पाया था। ७८५६३० पू०के मध्य विस्तृत है । १७१५ ई में यशोवन्त यशोवन्तराव (भट्टि) सिन्देराजका एक सेनापति । इस- राय नामक एक मैनपुरी कायस्थने यहां आ कर वास ने १८१८ ईमें पिण्डारी सरदार चीतूको आश्रय दिया किया। वे ही इस नगरके स्थापनकर्ता माने जाते हैं, | था । इसलिये राज-शत्रु जान कर माश्विस गाव अतः उन्हीं के नाम पर इस शहरका नामकरण हुआ। हेप्टिसने इसे दण्ड देनेके लिये जेनरल घ्राउलको ससैन्य यह वाणिज्यप्रधान स्थान है, इस कारण बड़े बड़े धनी । भेजा। उस सेनादलने २८वी जनवरीको इसे पराजित बणिक और महाजन यहां आ कर बस गये हैं। उन्हीं कर जावूर नगर तापसे उड़ा दिया और उसको अधि- लोगोंके यत्नसे यह शहर मन्दिरों, पुष्करिणियों तथा कृत प्रदेश छीन लिया। घाटोंसे सुशोभित है। २८५७ ई०को १६वीं मईको ३ | यशोवन्तराव (होलकर)-इन्दोरराज्यके होलकर-वंशीय नम्बरके देशी घुड़सवार-सेनादलने यहांके एक छोटे छोटे | महाराष्ट्रराज। इनके पिताका नाम तुकाजी राव होल- मन्दिरमें आश्रय ग्रहण किया था । विद्रोहियोंका । कर था । १७६७ ई०में तुकाजो रावके मरने पर दमन करनेमें अङ्रेजोसेनाके साथ उनका एक युद्ध | राजसिंहासन ले कर उनके चारों लड़के झगड़ने लगे। हुआ था। आखिर उनकी प्रधान रानीके गर्भसे उत्पन्न काशीराव ____ शहरमें अनाज और मवेशी आदिके सिवा नील,घी सिंहासन पर बैठे। किन्तु छोटे मलहार रावको सिंहा- और सूती कपड़े का भी कारवार चलता है। सन पर विठानेके लिये कामपत्नी गर्भजात पुत्र यशो- यशीवन्तराव-एक हिन्दू कवि। फारसी भाषामें इनकी | वन्तराव और विट्ठोजी वदंपरिकर हुए। इस झगड़े में अच्छी व्युत्पत्ति थो। इनका बनाया हुआ 'दीवान' नामक नाना फड़नवीशने मलहाररावका और सिन्देराज प्रन्थ मिलता है। दौलतरावने दुर्घत्त काशीरावका पक्ष लिया। दोनों यशोवन्तराव (घोड़पड़े)-एक महाराष्ट्र-सरदार । ये पक्षके घमासान युद्ध में मलहारराव मारे गये । १८०३ ई०में महाराष्ट्र-पक्षसे सन्धिविषयक प्रस्ताव ले कर | यशोवन्त राव नागपुर में और विट्ठोजी कोल्हापुरमें जान अंगरेज सेनापति जेनरल वेलेस्लीके शिविरमें गये थे। ले कर भागे। इन्हों के यत्नसे सिन्देराजके साथ अंगरेजोंका युद्ध वंद| युद्ध में जयलाभ करके दौलतरावने मलहारके नांवा- हुआ था । अंगरेजप्रतिनिधि एलफिन्ष्टनके साथ इनकी | लिग पुत्र खण्डरावको कड़े पहरे में रखा और काशीराव- मित्रता थी। ये अंगरेजोंको अपने प्रति प्रसन्न रखने | ने सिन्दराजका अनुग्रह पा कर उनको अधीनता खीकार के लिये वाजीरावका गुप्त परामर्श उन्हें कह दिया | कर ली। अतएव नानाफड़नवीशकी राजनैतिक शक्ति करते थे। सच पूछिये, तो इन्हीं को विश्वासघात | धूलमें मिल गई। इस समय सिन्दराजने महाराष्ट्र- कतासे दाक्षिणात्यकी महाराष्ट्रशक्ति अगरेजोंके हाथ | शक्तिमें ऊचा स्थान अधिकार कर लिया था। लगी थी। ___१८०० ई०में नाना-फड़नवीसको मृत्यु हुई। इस यशोवन्तराव (धवाड़े)-एक महाराष्ट्र-सेनापति । १७३१ | समग्र यशोवन्तराव अपने दलको पुष्ट कर रहे थे । नाग- ई०के गुजरात-युद्ध में इनके पिताके मारे जाने पर पेशवा | पुरसे भाग कर वे धार राज्य आये। यहांके अधिपति