पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५७२ यशोवन्तराव . ओनन्दरावने पेशवा और सिन्दराजके भयसे उन्हें आश्रय| उज्जयिनीके समीप डट गये। उज्जयिनी नगरको लट तो नहीं दिया, पर उनको प्राण-रक्षाके लिये कुछ अश्वा करना यशवन्तका उद्देश था, किन्तु सिन्देराजने बुर्हान- रोही सेना और कुछ रुपये दे कर विदा किया। यशो पुरसे कर्नल जान हेसिंस और माइण्टायरके अधीन एक वन्तने इस मुट्ठी भर सेना ले कर नाना स्थानों में आक दल सेना भेजी जिससे उनका मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ। मण किया और लूटा, जिसमें इन्हें मोटी रकम हाथ अव यशोवन्तने कोई उपाय न देख दोनोंको भिन्न भिन्न लगी। इस समय अर्थलोलुप बहुतसे डकैत इनके दल स्थानमें आक्रमण करना ही अच्छा समझा। तदनुसार में मिल गये। सौभाग्य वशतः अमीर खाँ नामक एक न्युरी नामक स्थानमें माइण्टायरको और उज्जयिनीके पठान सरदार भी उनके दलमें मिल गया। इस पठान समोप हेसिसको दलवल के साथ परास्त किया। पीछे वीरकी वीरता और साहस देख कर यशोवन्तराव बड़े उज्जयिनीको लूट कर इन्होंने सिन्देराजके घुड़सवार प्रसन्न हुए और उन्होंने समझ लिया, कि इसकी सहा- सेनादलको नर्मदाके किनारे हराया। इस युद्ध में सिंदे. यतासे वे होलकर राज्यका उद्धार आसानोसे कर पक्ष सेनापति देवजी गोखले, लेफ्टनाएट रोवोथम और सकेंगे। ३०० सेना मारी गई तथा होलकरके पक्षमें इससे तिगुनी इसके बाद यशोवन्तने अपनेको फिर वन्दोभावमे क्षति हुई थी। पीछे सिन्दे-दलपति ब्राउनरिंग भी हार रहना तथा खण्डेरावके प्रतिनिधि होना घोषित कर दिया ' खा कर भागे। यह घटना १८०१ ई०में घटी। केवल यही नहीं, वे होलकर-वंशके मान और गौरव तथा | मालव और उजयिनीमें यशोघन्तका दौरात्म्य और दौलतराव सिन्देकी अधीनतासे होलकरराज्यको उद्धार | नर्मदाके किनारे सिन्दे-सैन्यका पराभव सुन कर सिदे करने के लिये राज्यके अनुगत सभी व्यक्तियोंको उत्तेजित | राज बहुत मर्माहत हुए और इस अत्याचारोके हाथसे करने लगे। पेशवाको कण्टकशून्य करनेके लिये सूर्यरावसे सहायता इस प्रकार अपने पक्षको मजबूत कर यशोवन्त नर्मदा मांगी। तदनुसार सूर्यरावको परिचालित १० हजार नदी पार गये और सिन्देराजके अधिकृत प्रामोंको लूट घुड़सवार सेना तथा कर्नल सादरलण्डको सेनाने कर वहांकी प्रजासे कर उगाहने लगे । इस समय उन्होंने नर्मदा पार कर इन्दोर राजधानी पर चढ़ाई कर दी। जो सिभेलिपर कुँद्रेनेक द्वारा परिचालित काशोरावके युद्ध में यशोवन्त पराजित हुए सही, पर उनकी भाग्य- सेनादलको परास्त कर दिया था, उससे उनकी ख्याति | लक्ष्मीने उन्हें छोड़ा नहीं। फिरसे लुण्ठनप्रिय सेना. चारों ओर फैल गई। सेनापति कुँद्रेनेक दलवल के साथ दलने आ कर जावूदमें उनका साथ दिया। आ कर इनसे मिल गये। इसके पास रकम काफो अनन्तर इन्होंने पेशवाके अधिकृत राज्योंको लूटनेके थी, सभी सेनाओंका वेतन समय पर चुका दिया करते | लिये फतेसिंहके अधीन एक सेनादल दाक्षिणात्यमें थे। यह देख कर बहुतसे लोग इनकी सेनामें भी भेजा और आप राजपूताना जीतने अग्रसर हुए। इन्होंने होने लगे। इस प्रकार वलदर्पित हो यशोवन्तने सिन्दे- सोचा था, कि सिन्देराज उनका पोछा करेंगे और राजके अधिकृत मालवराज्यको तहस नहस कर दिया। दाक्षिणात्यकी उनकी चढ़ाई सिद्ध होगी। किन्तु जव इस प्रकार वार वार यशोवन्तके उपद्रवसे तंग आ इन्होंने देखा, कि सिन्देपति उत्तरको ओर न बढ़े, तब कर सिन्देराज उनका दमन करनेके लिये आगे बढ़े, पर | इन्होंने उत्तर में ही प्रचुर धन जमा लिया। इधर दक्षिणा- यशोवन्तकी दुद्ध लुण्ठन-प्रवृत्तिका कुछ भी ह्रास न पथमें फतेसिंह और शाहअह्मद खाँ नामक यशोवन्तके कर सके । इस समय मालवराजा यशोवन्तके वार वार | दो सेनापति पेशवाके अधिकृत प्रदेशके प्रायः सभी पीडनसे परेशान था। ग्रामोंको लूटने लगे। इस प्रकार उन्होंने पेशवाकी राज- इधर सिन्देराज बहुत-सी सेना ले कर उत्तरदेशमें धानी तक धावा बोल दिया था। राहमें बिलचूड़के आ रहे हैं, सुन कर यशोवन्त अपने दलालके साथ | जागीरदार नरसिंह खण्डेरावने डेढ़ हजार घुड़सवारसेना