पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५८०

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५७७ . यशोवन्त राव थे। स्थिरभावसे सभी सह लेते थे, यहां तक, कि इस | करते हैं, अपने कार्यकी ओर विलकुल ध्यान नहीं देते। सम्वन्धमें माता पितासे भी कुछ नहीं कहते थे। उप- किस उद्देशसे वे सब मनुष्य इनके विरुद्ध हो गये थे, नयन-संस्कारके वाद ब्राह्मणके आवश्यकीय नित्य कर्मों- | मालूम नहीं। जो कुछ हो, गवर्मेण्टने इन्हें नौकरीसे का नियमपूर्वक पालन तथा कुलदेवताको पूजा करना हो | हटा दी। इस विषयमें इन्होंने गवर्मेण्टके पास कुछ भी उनका प्रात्यहिक कार्य था। लिखा पढ़ी न की। किन्तु कुछ दिन बाद कमिश्नरको इसके बाद यशोवंतके मामा इन्हें कोपरगञ्जमें लाये।। मालूम हो गया, कि यशोवंत राव निर्दोष हैं, लोगोंने इन- कुछ दिन बाद पहले यहांके मामलेदार और पीछे कल के नाम मिथ्या अभियोग लगाया है। अव उन्होंने इन कृरके अधीन दश रुपयेकी एक नौकरी मिली। दक्षताके | महापुरुषके प्रति अनुग्रह प्रकट किया और इन्हें फिरसे साथ वे अपना कार्य करते थे, इस कारण बहुत जल्द | पूर्वपद पर प्रतिष्ठित कर सहदा-तालुकमें भेज दिया। इनकी पदोन्नति हुई। आखिर १८५१ ई०में ८० रु० इसके बाद हो इनके माता-पिता एक एक कर स्वर्गको मासिक पर चालीसगांव तालुकके मामलेदार नियुक्त सिधारे। पिता और माताको ये विशेष भक्ति करते हुए। धीरे धीरे नाना स्थानों में प्रतिष्ठा लाभ फर १८५७ / थे। कार्यालय अथवा किसी दूसरी जगह जानेके पहले ई० में १७५ रुपये वेतन पर नियुक्त हो एकण्डल तालुक अथवा किसी विशेषकार्यमें प्रवृत्त होनेके समय ये उनके गये। इसी साल सिपाही-विद्रोह हुआ। राजपुरुषोंको चरणोंको बन्दना कर अनुमति ले लिया करते थे। अभी इन्होंने विशेषरूपसे सहायता पहुचाई थ, इस कारण | उन सजोच देवदेवीको खो कर वे बड़े दुखित हुए। गवर्मेण्टके बड़े खैरखाह हो गये। १८६६ ई० में इन्हें साटना तालुकमें जाना पड़ा। इनकी ___एफण्डल तालुकसे ये फिर आमड़न गये। यहां कई | ख्याति चारों ओर इस प्रकार फैल गई, कि दूर दूर देशसे वर्षों तक इन्होंने सपरिवार वास किया था। इस समय | भी लोग इनके दर्शनार्थ आने लगे। जिस प्रकार एकादशी- इनको धार्मिकता बढ़ रही थी। किसी व्यक्तिका कष्ट के उपलक्षमें लोग पण्ढरपुरमें जमा होते हैं उसी प्रकार देखनेसे वह स्थिर रह नहीं सकते थे, जहां तक हो साटनामें भी यात्रियोंकी भीड़ लग जाया करती थी। सकता था उसका दुःख दूर करते थे। इन सब कारणों- बहुत रे तो बिना इनके दर्शनके भोजन तक भी नहीं से इनकी ख्याति चारों ओर फैल गई। इनकी सहायता करते थे। जिस रास्ते से ये अपना कार्यालय जाते पानेकी आशासे दूर दूर देशके लोग इनके निकट आने | थे वह रास्ता साफ सुथरा रहता थो। इसका कारण लगे। इनकी स्त्री सुन्दराबाई भी नाना गुणोंसे विभू- यह था, कि गृहस्थ लोग अपने अपने घरके सामने परि- षित थी। वे सचमुच उनकी सहधर्मिणीकी तरह काम कार कर रखते थे तथा स्त्रियां यत्नपूर्वक अलपना देती करती थीं। अतिथि-सत्कारमें उनका विशेष यत्न था। थी। कार्यालयसे शामको लौटते समय एक अपूर्व यशोवतकी दयाका परिचय पा कर दलके दल दीनदुःखी दृश्य दिखाई देता था। गृहस्थ अपने अपने घरके सामने उनके घर पर आया करते थे। इतने लोगोंके भोजन- रोशनी वाल कर शोभा करते थे। का इन्तजाम करना उनके जैले व्यक्तिके लिये सहज नहीं ___यशोवंतकी सुख्याति सुन कर सिन्दिया महाराजकी था, इसलिये इन्हें ऋणग्रस्त होना पड़ा था। इस समय इनके दर्शनकी इच्छा हुई। उन्होंने गवर्मेण्टको अनु- सभी इन्हें देवताके समान पूजने लगे। इस समयसे लोग मति ले कर यशोवंतके पास निमंत्रण पत्र भेजा। यशो- इन्हें 'देवमामलेदार' कह कर पुकारते थे। | वंत निमंत्रणको स्वीकार कर वम्बई नगर भाये। • सुख किसीके भाग्यमें चिरस्थायी नहीं होता । यशो- सिन्दियाके महाराजने इनका अच्छी तरह स्वागत किया। वन्त राव दुष्ट लोगोंके चक्रोन्तमें पड़ गये। कुछ लोगोंने अतिथि सत्कार-निबंधन यशोवंत ऋणी हो गये थे, यह . इनके विरुद्ध गवर्मेण्टके निकट शिकायत पेश की, कि यशो- पहले ही कहा जा चुका है। सिदियाके महाराजने जव वंत दिन भर लोगोंसे सम्भाषण और उनका पूजा प्रहण | उनका ऋण परिशोध करना चाहा, तव उन्होंने यह कह Val, xvII, 145