पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५८१

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५७८ यशोवन्त राव कर वह दान लेना अस्वीकार कर दिया कि वे अङ्ग्रेजके ग्रस्त लोग रहते थे उनकी वे यत्नपूर्वक सेवा करते तथा कर्मचारी हैं। औषध और पथ्यका इंतजाम कर देते थे। इसके बाद यशोवन्तके साथ महाराजका नाना एक दिन इन्दोरके महाराज होलकर तीर्थदर्शनार्थ जेजुरी प्रकारका धर्मालाप हुआ। इनसे उच्चभायकी दातें सुन आये। राहमें यशवंतरावको प्रशंसा सुन कर उनसे कर महाराजके आनन्दका पारावार न रहा। यशोवत- मिलने के लिये मानमाड़ स्टेशनमें उतरे । वहां तीन दिन रावके सम्मानके लिये महाराजने बड़ी तैयारीको थो, रह कर महाराज यशवंतके साथ सदाला करते रहे। पांच दिन नगरवासियोंको निमत्रण कर फल और यशोवंतराव कुछ समय सङ्गमनेर नामक स्थानमें मिष्ठान्न खिलाया था तथा सवोंके आनन्द वर्द्धनके लिये अपने भाईके यहां ठहरे थे। यहां दो नदियोंका सङ्कम गाने वजानेको व्यवस्था भी की थी । महोत्सवके बाद है। ग्राम बहुतसे उद्यानोंसे सुशोभित है। यशोवंत बड़े महाराज यशोवतरावको नासिक तक पहुंचा कर लौटे। आनन्दसे यहां रहने लगे। गवर्मेण्टसे इन्हें जो वृत्ति मिलती थी उससे उनका केवल सांसारिक खर्च चलता अव सभी साधु यशोवन्तका सम्मान करने लगे। था। किंतु जो इतने दिनोंसे अन्नहोनको अन्न, वस्त्रहीन और तो क्या. एक दिन वम्बईके गवर्नर महोदय Sir Wm को वस्त्र और रोगोके औषध तथा पथ्य देते आये हैं, obt Seymour Fitzerald ने इन्हें निमलित कर जिन्होंने अभ्यागतोंके सत्कार्यमें प्रचुर धन खर्चा किया अपने प्रासादमें बुलाया और उच्च आसन पर बैठा कर हैं। क्या कभी निश्चित रह सकते थे ? वर्तमान अवस्था गलेमें माला पहनाई और इतर गुलाव छिड़का था । इस ' में भी वे इन सब सत्कायों में धन खर्च करनेसे उपलक्षमें पूनाके बड़े बड़े लोग निमन्त्रित हुए थे। । वाज नहीं आये। आमदनी थोड़ी, पर खर्च बहुत, . कुछ दिन बाद कमिश्नर साहब साटना आये। इससे वे ऋणी हे। जायंगे । इस आशङ्कासे प्रामवासियों. लोगोंको जब मालूम हुआ कि यशोवतराव जब उनसे । ने ऐसी व्यवस्था कर दो, कि प्रत्येक धनी व्यक्ति उनके मिलने जायंगे, तब वहां उनके दर्शनाभिलापी असंख्य एक एक दिनका खर्च चला। लोगोंको भीड़ लग गई थी। लोगोंकी अपार भीड़ देख अन्तमें वे सङ्गमनेरसे साटना जा कर रहने लगे। कर कमिश्नर साहव विस्मयान्वित हो गये और कलकर , १८७७ ई० में बहुत भारी अकाल पड़ा। लोगोंके कष्टकी साहवको इसका कारण पूछा। उत्तरमें कलकर साहवने | सीमा न रहो । अन्नाभावसे लोग हाहाकार करने लगे। कहा. "यशोवंतरावको देखनेके लिये ये सब लोग आये। कुछ तो करालकालके शिकार भी वन गये। इस समय हैं। इन्हें लोग देवताके समान पूजते हैं तथा सभी इनके , यशवंत वीरको तरह कार्य करने लगे। किस प्रकार दोन दर्शनप्राधी हैं। यह बात सुन कर कमिश्नर साहब बोले, । व्यक्तियोंकी जीवनरक्षा होगी, इस चिन्ताने इन्हें वेचैन कर कि इस अवस्थामें यशोवंतरावके द्वारा गवर्मेण्टका कार्य दिया । वे मुक्तहस्तसे अन्नदान करने लगे। इस कार्य में नहीं चल सकता है । अतएव इन्हें कार्यसे छुटकारा देना | उनकी सहधर्मिणी अन्नपूर्णाकी तरह लोगोंको अन्न हो उचित है। यशोवंतरावको १८७३ ई०के मार्च माससे | परोसती थीं। अन्न जितना वितरण होने लगा, लोगोंको नशन मिला। संख्या उतनी ही बढ़ने लगी। यह घटना देख कर अब फिर विषयचिन्ता इन्हे' व्याकुल न कर सकी। यशोवंतराव अपने द्रव्यादिको वेवने लगे । उनको स्त्रीने भगवानकी आराधना तथा परोपकारमें इन्होंने अपना प्रकृत सहधर्मिणीकी तरह अपने अङ्गका भूषण उतार पवित जीवन उत्सर्ग कर दिया। परहितके लिये क्या कर खामीको उसे बेच लाने दे दिया। किंतु इतने रुपयेसे हिंदू, क्या मुसलमान, क्या ईसाई, सवोंकी ये शुश्रूषा | हो ही क्या सकता था, कितना दिन चलता? कोई करते थे। देवमन्दिरमें, धर्मशालामें तथा मसजिदमें | उपाय न देख वे घूम घूम कर लोगोंसे भीख मांगने लगे। जाना इनका दैनिक कार्य था। वहां जो सब ध्याधि- । उनको ख्याति चारों ओर फैल गई। सवोंकी इनके प्रति