पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५८४

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- ५८१ यशोवन्त सिंह-यशोवमदेव कावुल भेजा। यशोवन्तको वीरता और चेप्टासे अफ-, यशोवन्तसिंह (कुमार)-राजा वेणीवहादुरके पुत्र । यह गानवासीने शान्तभाव धारण किया । औरङ्गजेबने एक सुकवि थे। समझा था, कि यशोवत अफगानोंके हाथ मारे जायंगे, यशोवर-रुक्मिणीके गर्मसे उत्पन्न कृष्णके एक पुत्रका किन्तु उनकी सफलता देख कर वह दाँतों उंगली काटने | नाम । लगा। इस समय सम्राट्ने यशोवन्तके वीरपुत्र पृथ्वी- यशोवर्धन-प्रतिहारवंशीय एक राजपूत राजा । सिंहको दिल्ली बुलाया और विषपूर्ण परिच्छद पहना यशोवर्द्धन-वरिकवंशीय एक राजा, विष्णुवर्द्धनके पिता । कर उसका प्राण ले लिया। इधर कावुलमें यशोवत | यशोवर्द्धन दिविर-एक प्राचीन कवि । के द्वितीय और तृतीय पुत्र भी कराल कालके गाल में यशोवर्मदेव-कन्नोजके एक प्रसिद्ध हिंदू राजा । वे काश्मीर पतित हुए। यशोवत पुत्रशोकसे विह्वल हो गये । | राज ललितादित्य मुक्तापीड़के समसामयिक थे । कवि- इसी मौकेमें औरङ्गजेवने विष खिला कर उनका प्राण ले वर. हर्षदेवके पुत्र वाक्पतिराज और भवभूति इन्हींके लिया। इस प्रकार १६८१ ई०को ४२ वर्षकी अवस्थामें आश्रयमें प्रतिपालित हुए थे। अद्वितीय राजपूत वीर यशोवन्तसिंह इस लोकसे चल ___ कवि वाक्पतिने स्वरचित 'गौड़वध' काव्यमें समु- वसे । उनके जैसे वीर पुरुपने मारवाड़में फिर कभी जन्म ज्ज्वल भाषामें यशोवर्माका चरित्र वर्णन किया है । राजा नहीं लिया। उनको मृत्युके बाद उनके परिवारवर्ग यशोवर्मको गौड़विजययात्रा पढ़नेसे हम लोगोंको महा- जव मारवाड़से लौट रहे थे उसी समय औरङ्गजेवने उन्हें । कवि कालिदासके रघुवंशमें अजराजकी दिग्विजययात्रा दिल्ली में कैद करनेकी कोशिश की। किंतु राठोर सैन्यकी की याद आ जाती है। शारदीय शोभासंकुल प्रान्तर- वीरतासे वह उनका कुछ भी अनिष्ट न कर सका। भूमिका अपूर्ण सौन्दर्य देखते हुए वे शान-नदीकी उपत्यका यशोवतके मृत्युकालमें उनकी एक स्त्री गर्भवतो थी भूमिमें आये। यहांसे दलवलके साथ विन्ध्यपर्वत जिससे अजितसिंहका जन्म हुआ ! यशोवंतके और भी जा कर इन्होंने विन्ध्यवासिनी (काली) देवीको पूजा दो पत्नी और सात उपपत्नी थी, जिन्होंने यशोवंतके और अर्चना की। इस प्रकार नाना स्थानोंमें घूमते हुए चितानलमें कूद कर आत्मविसर्जन किया। इन्होंने हेमन्त, शीत और वसंतकाल विताया। ग्रीष्मकी यशोवन्तसिंह (बुन्देला)-बुन्देला जातिका एक मुगल प्रखर किरणोंसे इनकी सेना बहुत कष्ट झेलती हुई गौड़ सेनापति, राजा इंद्रमणिका पुत्र, यह सम्राट् आलमगीर राज्य पहुंची। के शासनकालमें अपने वीर्यवलसे ऊंचा सम्मान पाया | ___ उनके आगमनसे भयभीत हो गौड़ीय सामन्त और था। यह वुदेलखण्डके एक अशमें राज्य करता था। सेनापतिवर्ग जान ले कर भागे। किंतु कापुरुषकी तरह उसके आश्रयमें रह कर राजकवि हरिभास्करने 'यशो- रणमें पीठ दिखाना अच्छा न समझ कर वे लोग फिरसे वंत-भास्कर' की रचना की थी। १६८७ ई० में उसकी कन्नोजाधिपतिके साथ युद्ध में प्रवृत्त हुए। गौड़ीय सेनाके मृत्यु हुई। पीछे सम्राट्ने उसके नाबालिग लड़के रक्तसे रणक्षेत्र तरावोर हो गया था। गौड़राज भागे जा भगवंतसिंहको राजोपाधिके साथ उ» जमींदारी प्रदान | रहे थे, पर यशोवर्मने उन्हें पकड़ा और मार डाला |* की थी। . इसके बाद कन्नोजाधिपति वङ्गेश्वरको पराभव और वश- यशोवन्तसिंह-योधपुरके एक राजा। ये १८७३ ईमें ] में ला कर समुद्रोपकूलकी वनशोभा देखते हुए मलय- पिता तखत्सिंहके मरने पर राजसिंहासन पर बैठे थे। । पर्वतकी ओर चल दिये । वहां भी इन्होंने दाक्षिणात्यपति- यशोवन्तसिंह-भरतपुरके एक महाराज, वलवंतसिंहके पुत्र । १८५३में जव इनकी उमर सिर्फ दो वर्णको थी, तव | * इस ग्रन्थमें गौड़राजके नाम, धाम और उनकी निधनवार्ताक ये पितृसिंहासन पर अधिरूढ़ हुए। कोई विशेष कारण नहीं लिखा है। Vol. XVIII, 146