पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५८८

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यशोवर्मन्-यशोसिंह यशोवर्मन्-रामाभ्युदय नाटकके प्रणेता एक कवि ।। पूर्व नामका परित्याग कर 'रामगडोया' कहलाने लगे . क्षेमेन्द्रकृत सुवृत्ततिलकमें इनके श्लोक हैं। थे। यशोवर्मन्-चालुक्यवंशीय एक नरपति। मल्लसिंह और तारासिंह नामक दो भाइयों के साथ यशोवर्मन-चन्द्रालेयचंशीय पक राजा, राजा हर्षदेवके यशोसिंहने अदीना वेग खाँकी ओरसे अवदालो सर- पुत्र । खजुराहुको शिलालिपिसे जाना जाता है, कि दार अह्मदशाहके विरुद्ध युद्ध किया था। अफगान उन्होंने गौड़, खस, कोशल, काश्मोर, मिथिला, मालव, सेनादलके भीषण आक्रमणसे जव अदीना खाँ भाग गया, चेदि, कुरु, गुर्जर आदि राज्यवासियोंको लड़ाई में जीता तब यशोसिंहने कहिया सरदार जयसिंह और काइडा- था। चेदिराजको जीतनेके बाद उन्होंने कालार पहाड़| धिपति अमरसिंहके साथ मिल कर पठानके विरुद्ध युद्ध अपने कब्जे में किया । वे वैकुण्ठनाथका मन्दिर बना| ठान दिया। इस युद्ध में सिख-गौरव बहुत दूर तक फैल ‘गये हैं। यह देवमूर्ति उन्होंने कनोजराज देवपालसे गया था। अपमानित और लाञ्छित मदीनावेगने इस .ई. सन् १४८में पाई थी। देवपाल के पिता स्वपाल- सूत्रसे मुसलमानविद्वपो सिख-सम्प्रदायका उच्छेद करने. को यह मूर्ति कीर-राजशाहीसे मिली थी। के लिये सङ्कल्प किया। यशोचम --चन्द्रानेय-वंशीय दूसरे एक राजा । इनके १७५७ ई०में अबदालीके स्वराज्यमें लौटने पर अदीना पिताका नाम मदनवर्मा और पुत्र का नाम परमर्दिदेव खां महाराष्ट्रोंसे लाहोरका शासनकर्ता बनाया गया। था। उसने रोहिला-सरदार कुतवशाह और मीर आजीज यशोवर्मन-मालवके परमार वंशीय एक राजा और वक्सीसे मिल कर बवालामें घेरा डाला और सिखोंको 'जयवर्माके पिता । ये चालुक्यराज जयसिंह सिद्धराजसे: कर देने प्रवृत्त हो गया। यशोसिंह आदिने रामरौनी. हारे थे। के मृदुदुर्गमें भाग कर आश्रय लिया। यहांसे भागनेके यशोवर्मन्-मौखरी वंशीय एक राजा। बाद वे लोग 'रामगड़ीया' नामसे प्रसिद्ध हुए। यशोधमपुर-कनोजराज यशोवर्मदेव द्वारा प्रतिष्ठित १७५८ ई०में यशोसिंहने मिस्लका अधिनेतृत्व ग्रहण मगधराज्यके अन्तर्गत एक नगर । कर दोन नगर, वताला, कालानौर श्रीहरगोविन्दपुर आदि यशोविग्रह-नोजके राठोरवंशीय राजा तथा चंद्रदेवके मुसलमान अधिकृत नगरोंको लटा और अधिकार किया। पितामह । . दुरानो सरदार अह्मदशाह यह संवाद पा कर बड़ा यशोविजय-ज्ञानविंदुप्रकरण नामक जैन थके रचयिता। बगड़ा और सिखोंका दमन करने अग्रसर हुआ। पे सुतीर्शतिलक पण्डितके शिष्य पद्मविजयके भाई थे। गुल्लूघाडाकी लड़ाईमें सिखोंने ही शौर्यवीर्य दिख- 'महावीरस्तवन' नामक ग्रंथ इन्होंका लिखा है। लाया था। यशोसिंह--एक सिख सरदार । यह जातिका बढ़ई था। नोधसिंहकी मृत्युके वाद यशोसिंह मिसलका सर- इसका पिता भगवान् गियाणो लाहोर जिलेके सरसङ्ग दार हुआ। उसने नाना स्थानोंको लूट कर काफी मौजेमें रह कर जातीय व्यवसाय करता था। यशोसिंहने रकम इकट्ठी की। लाहोरके शासनकर्ता खाजा ओवेद- अपने जातीय व्यवसायका परित्याग कर सैनिकवृत्ति ने जब गुजरानवालाका सिखदुर्ग आक्रमण किया, तब अबलम्वन की। यह खोसलसिंह-प्रवर्तित सिख मिस्लमें | रामगड़िया और कनहिया लोगोंने एकत्र हो कर उसे 'शामिल हो कर नोधसिंहके अधीन चोरी डकैती करने युद्ध में हराया। मुसलमान लोग रणक्षेत्रसे भाग चले। लगा। धीरे धीरे वह अपने वीर्यावल और असीम इसके बाद यशोसिंहने वताला और कालानौर जीत कर साहससे एक सिख-योद्धा गिना जाने लगा। इसने अफगान-शासनकर्ता ख्वाजा ओवेदको मार भगाया तथा अपने प्रतिभावलसे सिखसमाजमें ऐसी प्रतिपत्ति जमा आस पासके सभी भूभागोंको अपने दखलमें कर लिया। लो थी, कि रामरौनी मिस्लके सिख लोग उसके यत्नसे। अहमद शाहके सहयोगी धमन्द चौद और पहाड़ी राज- Vol. XVII. 147