पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५८९

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५८६ यशोहन-यशोहर .पूत सरदारोंने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। दित्यके प्रसङ्गमें इस नगरका यथायथ विवरण दिया यशोसिंहने ३० फुट ऊंची और २१ फुट चौड़ी मजबूत गया है । राजाने जो सब गढ़प्रासाद, विचारगृह, कारा. ईटोंकी दीवारसे बताला नगरको घेरा था। इस समय गार, शासनोपयोगो मकान बनवाये थे, वे अभी खंडहरमें रामगड़िया और कनहिया दलमें घमसान युद्ध चलता | पड़े हैं। प्रतापादित्य देखो। • था। दोनों दलके हजार हजार सिख-योद्धा मारे गये | यशोहर-बङ्गालके छोटे लाटके शासनाधीन एक जिला। थे। आखिर कनहिया सरदार जयसिंहसे हार खा कर इसके उत्तर और पश्चिममें नदिया जिला, दक्षिणमै खुलना यशोसिंह शतदु नदी पार कर भाग चला। यहां फिर और पूर्वमें खरिदपुर जिला है। १८८१ ई०को मदुम- चोरी डकैतीले प्रचुर धन जमा कर फुलकिया-सरदार शुमारोमें यहांका भूपरिमाण २२७६ वर्गमील था। उस अमरसिंहको सहायतासे हिसार जिलेमें अधिष्ठित हुमा 1 ) समय यशोहर, नडाइल, मागुरा, खुलना, बागेरहाट यहांसे दिल्ली राजधानीको प्राचीर सीमा तक इसने | और मिनाईदह नामक ६ उपविभाग ले कर यह जिला धावा बोल दिया। इसके बाद मीरटके नवाबसे इसने | संगठित था। पीछे १८८४ ई० में यशोहरसे खुलना और वार्षिक १० हजार रुपया वसूल किया। इस समय वागेरहाट उपविभागको अलग कर खुलना नामसे एक हिसारका शासनकर्ता दो ब्राह्मणकनग्राको चुरा ले गया स्वतंत्र जिला स्थापित हुआ। इधर नदिया जिलेसे था, इससे यशोवत उसे दण्ड देने के लिये रवाना हुआ। वनग्रामका अलग कर यशोहरमें मिला लिया गया। पीछे हिसार नगर लूट कर दोनों कनप्राओंको उनके १८८५ ई०के मई मासमें सर्भेयर जेनरलको पैमाइशीके पिताके पास पहुंचा दिया। अनुसार उसका परिमाण २९२५ वर्गमील कायम हुआ। . इसके कुछ समय बाद ही जयसिंहके साथ सुकर अभी यह अक्षा० २२४७ से २३ ४७ उ० तथा देशा चकिया-सरदार महासिंहका विवाद खड़ा हुआ। यशा-८८४० से ८६५० पू०के मध्य विस्तृत है। भूपरि- सिंहने पहले शव जयसिंहका पक्ष लिया। इस युद्धमें | माण २९२५ वर्गमील है। यशोहर नगर ही इस जिलेका जयसिंहके पुत्र गुरुवक्स मारा गया और कनहिया मिस्ल | विचार-सदर है। स्थानीय लोग इसे कसबा कहते हैं। बुरी तरहसे परास्त हुई। युद्धमै जय पा कर इसने भैरव नदो इसकी वगल हो कर वहती है। अपनी नष्ट सम्पत्तिका पुनरुद्धार किया। भाई मल्ल भागीरथी तथा गङ्गा और ब्रह्मपुत्रसङ्गम डेल्टाका सिंह और तारासिंहको मृत्युके बाद यह विपाशातीर मध्यभाग ले कर हो यह जिला गठित है। यह विस्तीर्ण वत्तीं खेला नगरमें आ कर रहने लगा। १७८६ ई०में | दलदल समतल भूभाग नदी और जलस्रोत द्वारा चारों यशोसिंहका देहान्त हुआ। पीछे उसके लड़के योध- ओरसे घिरा है। जमीनको अवस्थाके अनुसार यह सिंहने पितृपदको सुशोभित किया था। जिला दो भागोंमें विभक्त है । केशवपुरसे महम्मदपुर पर्यन्त पशोहन (सं० वि०) यशः हन्ति हन-क्विप् । यशोनाशक, नैतसे ईशानकोनमें एक रेखा खींचनेसे उत्तर और कीर्तिको नाश करनेवाला। पश्चिममें जो जमीन पड़ती है वह अपेक्षाकृत सूखी है। वह पशोहर (सं० त्रि०) हरतीति हु-अच-हरः, यशसः हरः। जमीन कभी भी वाढते नहीं इवतो उस रेखाके दक्षिण यशोहरणकारी, कीर्तिनाशक। अर्थात् जिलेके पूर्व और दक्षिण सीमा तक जो यशोहर-खुलना जिलेके सातक्षोरा उपविभागके अंतर्गत भूगोग पड़ता है, वह प्रायः जलमय है। शीतकालको एक प्राचीन नगर। यह यमुना और कदमतली नदीके | छोड़ कर और दूसरे समयमे इस जमीन हो कर पैदल सङ्गम-स्थल पर अवस्थित है। वङ्गके अन्तिम कायस्थ जाना मुश्किल है। शीतकालको छोड़ कर और सभी वीर महाराज.प्रतापादित्यने यहां यशोहरेश्वरी नामसे ऋतु में जल रहता है। कालीमूर्तिकी प्रतिष्ठा को थी। तभीसे यह स्थान यशो- उक्त दो विभागको छोड़ कर यशोहरके दक्षिण- हरेश्वरोपुर वो ईश्वरीपुर नामसे प्रसिद्ध है। प्रतापा- पूर्वमें जो जलशून्य विभाग था वह सुन्दरवन कहलाता