पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५९६ यशोहर सुदरवनका परित्याग कर इसी स्थानमें नया स्थान, लमानी उक्त. सम्पत्तिकी अधिकारिणी हुई । १८१४ ई. में वसाया हो। प्रतापादित्य देखो। उसका भाई हाजी महम्मद महसिन उस सम्पत्तिको इस जिलेके मध्य और भी कितने प्राचीन राजवंश ) हुगलीके इमामवाड़ाके खर्च वर्चके लिये दान कर गया। देखे जाते हैं। उनमेंसे चांचड़ाका राजवंश ही बहुत कुछ उक्त चिरस्थायी बन्दोवस्तके समय युसुफपुर प्रसिद्ध है। बहुतेरे इन्हें यशोरके राजा कहा करते है। तालुकका अधिकारो राजा श्रीकान्तराय अपने कर्मदोषसे मुगल-सेनापति खान-इ आजमके एक विश्वस्त अनुबर एक एक कर सभी परगना खो बैठा। आखिर उसे अंग- भवेश्वर रायसे इस वंशकी उत्पत्ति है। भवेश्वर उक्त रेज-गवर्मेण्टके निकट भिक्षाप्रार्थी होना पड़ा था। सेनापतिके अधीन सैनिकका काम करते थे। उनको श्रीकान्तके बाद वाणोकान्त और उसका लडका 'कार्यकारिता देख कर सेनापति खान-इ आजमने प्रतापके | बरदाकान्त सम्पत्तिका अधिकारी हुआ । वरदा- अधिकृत कुछ ग्रामोंको जीत कर उन्हें दे दिया। कान्तकी नाबालिगीमें १८१७ ई०को कोर्ट आव ' १५८८.ई० में भवेश्वरकी मृत्यु होने पर उनके लड़के | वार्डस्की देखरेखमें वह सम्पत्ति छोड़ दो गई.। उस महाताव राम राय (१५८३-१६६० ई०) पितृसम्पत्तिके समयसे उक्त सम्पत्तिको आय बहुत बढ़ गई। १८२३ अधिकारी हुए । पतायादित्यके साथ जव मानसिंहका ई में गवर्मेण्टने साहस परगना अर्पण कर उत्तराधि. युद्ध होता था, उस समय महातावरायने मुगलोंका पक्ष कारियोंको 'राजा वहादुर'को उपाधि दी। सिपाही लिया था। इस प्रत्युपकारमें मानसिंहने उन्हें अपनी | विद्रोहके समय इस राजवंशने अंगरेजोंको काफी सहा. पैतुक लब्ध सम्पत्तिका भोग करनेके लिये एक स्वतन्त्र यता पहुचाई थी, इस कारण राजोपाधि वंशपरम्परा- दान-पत्र दिया था। १६१६-१६४६ ई० तक कन्दर्पराय- गत हो गई है.। १८८० ई०में राजा वरदाकान्तकी मृत्यु. ने अपनी जमींदारीका अच्छी तरह शासन किया था। के बाद उनके बड़े लड़के ज्ञानदाकान्त पैतृकसम्पत्ति पीछे १७०५ ई० तक मनोहरराय पैतृक सम्पत्तिके अधिः, और उपाधिके अधिकारी हुप । पीछे ऋणजालमें कारी रहे, उन्होंने थोड़े ही वर्षों में राज्यका कलेवर दूना फंस जानेके कारण चाँचड़ाकी अधिकांश सम्पत्ति बढ़ा दिया। इसी कारण वहुतेरे मनोहरको ही इस दूसरेके हाथ चली गई । विस्तृत विवरण चाचड़ा राजवंशके प्रकृत स्थापयिता मानते हैं। मनोहरके वाद शब्दमें देखो। १७०५:२६ ई० तक कृष्णराम और १७२६ ४५ तक शुकदेव नलडङ्गाके राजोपाधिधारी प्रसिद्ध देवराय' वंशीय राय उक्त सम्पत्तिक अधिकारी रहे। शुकदेवरायने सारी जमींदार बहुत पहलेसे यहां प्रसिद्ध हो गये हैं। वे लोग जयदादको वारह आने और चार आनेमें बांट दिया.।। ढाका जिलेके भानासुरा प्रामवासी हलधर भट्टाचार्य के बारह मानेका हिस्सा युसुफपुर और चार आनेका | सन्तान हैं। . हलधरसे प्रांच पीढ़ी नीचे विष्णुदास हिस्सा सैयदपुर कहलाया। हाजरा गृहधर्मका परित्याग कर नलडङ्गाके निकटवत्ती शुकदेवरायने यह चार आना हिस्सा अपने भाई हाजराहाटी प्राममें आये और साधुसेवा करने लगे। वे श्यामसुदरको दे दिया। श्यामसुंदरक मरने पर उस | योगबलसे किसी मुसलमान शासनकर्ताको भोजन • सम्पत्तिका कोई प्रकृत उत्तराधिकारी न रहने के कारण दिया करते थे। नवाबने, उन्हें पांच ग्राम दान दिये।

बंगालके नवाबने उसे एक दूसरे जमींदारके साथ उनके लड़के श्रीमतरायने अपने वीर्यवलसे निकटवत्ती

बंदोवस्त कर दिया। सुना जाता है, कि उस जमी- अफगान जमीदारोंको भगा र समस्त महमूदशाही दारने माननीय , इष्ट-इण्डिया कम्पनीको कलकत्तेके परगना अपने अधिकारमें कर लिया। उन्होंने अपनी निकट थोड़ी जान दे दी थी। इस पर , नवावने कद्ध वीरताके लिये 'रणवीर' को उपाधि पाई थी । हो कर उसकी सम्पत्ति छीन ली। लार्ड कार्नवालिसके। उनके लड़के गोपीनाथ. और पीछे गोपीनाथ चिरस्थाई वन्दोवस्तके समय मनु-जान नामकी एक मुस- लड़के चण्डीचरण देवराय राजा हुए । ४थ