पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६०२

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यहूदी तथा प्रकृतिगत सादृश्यमें अरववासियोंसे उनका विशेष कर कभी भोजन नहीं करते और न उनके सामने एक प्रभेद नहीं था। किन्तु अरवी इन्हें घृणाको दृष्टिसे | आसन पर बैठ ही सकते हैं। देखते थे। कुकेल केलू नायरका कहना है, कि यहांके ईसाइयों सन् ६२८ ईमें महम्मदने खैवरको अधिकार कर। और यहूदियोंके गिरजोंमें तीन ताम्रपत्र रखे हुए हैं। लिया। इस समय समय पारस्य, वोखारा और अफगान उनमें सन १८६ ई०के ताम्रशासन युसूफ बोरेनको अचू. प्रदेशमें यहूदी महाजन, कलाल अथवा सामान्य व्यव- वनम् और २३० ई०के ताम्रशासनमें इरानी कोर्टेनको सायीके रूपमें विचरण करते थे। अफगान इन लोगोंको मणिग्राम दिया गया। यह दोनों स्थान यहूदी और वन-इ-इसरायल और मुसलमानगण युदावासी होनेसे सीरीय ईसाइयोंके रहने के लिये दिये गये थे। तीसरा यहूदी नामसे प्रसिद्ध हुए। वम्बई प्रदेशमें ये देशी ताम्रशासन ३१६ ई में पेरुमलवंशके अन्तिम राजा द्वारा राजाभों के अधीन सेनाविभागमे अथवा सरकारी दिया गया। इससे अनुमान होता है, कि यहूदी और छोटो छोटी नौकरियों पर रखे गये थे। कोचीनराज्यके | सीरोय ईसाई सन् १८६ ई०में पूर्व-भारतमें आ कर पेरु- मध्यभागमें विशेषतः वित्तुर, परुर, चेनाहा और मालो | मल राजाके राजत्वकालमें यानी सन् ३१६ ई०के सम- नगरमें वहुतेरे काले यहूदी रहने हैं। कोचीनाधिपतिने | कालीन मालवाके किनारे फल गये। दुःखका विषय है, उनको जो ताम्रशासन लिख कर भूमिदान किया था, कि वे खाना पीना तथा वेशभूषाम भी खासा वह सन् ३८६ ई० में खोदा गया था। महाराज के मंडल- हिन्दू बन गये थे। कई जगह तो ये नोच वर्णके हिन्दुओं. . चेरी प्रासादके निकट ही उनके सिनागग या भजना की तरह कपिवाणिज्य करनेमें लगे थे। लयकी प्रतिष्ठा हुई। ____ अफगान जातिकी दन्तकथाओंसे जान पड़ता है, कि __ फरेष्टरके लिखे विवरणसे मालूम होता है, कि वे पहले यहूदी थे। जेरुसलेम ध्वस होनेके वाद नेधू- कलियुगके ३४८१वें वर्ष (सन् ४२६ ई० )-में मालवके कालेजाने जिन सब यहदियोंको जगह जगह स्थापित सम्राट् एरवीयन मार अपने राजत्वकालके ६९वें वर्णमें किया उनमें जो शाना बामियानके समीप कोरनगरमें इसूप रध्वियानको (Joseph Rabbi) प्रतिनिधित्व दान स्थापित हुई थी, उसी शाखासे. वर्तमान अफगान जाति- कर एक सनद प्रदान की थी। ये सब यहूदीक्रमशः देशीय की उत्पत्ति है। वे इस्लाम-अभ्युदयको पहली सदीमें (Black Jerv) हो गये थे। जो सव श्वेताङ्ग यहूदी भारत खलोदके शासनकाल तक अपने धर्ममें थे और एक वर्षमे हैं, उनके सम्बन्धमें जनसाधारणका विश्वास है, प्रवादसे मालूम होता है, कि इसरायलोंके राजा सलके कि उनके बाद वे यहां आ कर वसे थे। वंशधर अफगानसे ही उनकी उत्पत्ति हुई है । तुर्कि- मिष्टर उल्फ (Wolff ) जव कोचीन देखनेके लिये स्तानके रहनेवाले यहूदियोंको जेनेसिस-कथित गोमय- भाये, तव उन्होंने देशी और विदेशी यहूदियोंको एकत्र के पुत्र तोगार्मा ( Togarmah )का वंशधर कहते हैं। हो कर पास्कालका उत्सव करते देखा था। गोरे यहूदी बोखारेमें प्रायः बीस हजार यहूदियोंका वास था। काले यहूदियोंके साथ विवाह आदि नहीं करते थे। दोनों चज खाँके अभ्युदयके समय उसके अत्याचारसे उनके ही एक ही धर्मका मत मानते थे और यहां उनकी संख्या प्रन्थ आदि नष्ट भ्रष्ट हो गये। मुसलमानों के राज्य और भी कम न थी। काले यहूदी बोलते हैं, कि उन्होंने हमान- मुगलों के प्रादुर्भावके समय समरकन्द, वोखारा, वाहिक, का पतन हो जाने पर यहूदी धमकी दीक्षा ली थी और मरव आदि देशवासी बहुतेरे यहूदो इसलामधर्ममें दीक्षित . उनके बाद गोरे यहूदी भारतमें आ कर रहने लगे हैं। हुए थे। महम्मद और मुसलमान देखो। ये अपनेको गोरोंके गुलाम समझते हैं और तो क्या, यन इ-इसरायल या वेने-इसरायल । त्वक च्छेद या सुन्नत के लिये वे गोरे यहूदियोंको वार्षिक बहुत पहले कितने ही यहूदी दाक्षिणात्यके वबई- सलामी दिया करते हैं। ये गोरे यहूदियों के साथ वैठ प्रदेशमें रहते थे। उनके वंशधर इस समय बेने इसरायल