पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६०४

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६०० फिर भी मराठियों की तरह ये 'दिवेकर नौगांवकर' थल- | अन्तमें सभी अपने अपने घर चले आते हैं। इसके बाद कर' और 'जिरादकर' इत्यादि नामों को छोड़ नहीं। दो दिनसे आठ दिनो, 'साकरपुड़ा' या शर्करा भोजो- .. सके हैं। . त्सव होता है। इसी दिन प्रातःकाल आत्मीय स्त्री-पुरुष गोरों के आकार प्रकार उच्च श्रेणीके मराठियों की तरह वरके घर आते हैं। क्योवृद्धोंके उपस्थित होने पर वरका है। साज-सजा भी उन्हीं के अनुरूप हैं। इनकी रमणियां | पिता एक पातमें चीनी रख उसमें सोनेकी एक अंगुठी भी वहुत सुन्दरी होती हैं, सभी घंघरापहरती हैंऔर हिन्दू छिपा ऊपरसे एक शानदार रूमाल ओढ़ा कर उन लोगों- रमणियोंकी तरहये सभी जुड़ा या वेणी वांधती हैं। पुरुषों के सामने लाता है । घर नाना वेशभूषासे सुसजित हो ने बहुत कुछ हि चालको अपना लिया है सही, किन्तु, कर घोड़े पर चढ़ कर आता है। इसके साथ दोनों बगल रमणियां यहांकी स्त्रियोचित चालढालको छोड़ न सकी दो लड़के प्रदीप्त दो दीये लिये हुए हिव मन्त्रपाठ करते हैं। विवाह, जातकर्म, त्वकच्छेद या सुन्नत, रजस्वलो. आते हैं। त्सव और अन्स्योष्टिये ही इनके संस्कार हैं। इस तरहके समारोह और कई तरहके पाजों के साथ । विवाह-विवाहके पहले ही वस्कन्याका निर्वाचन सभी कन्याके घर आते हैं। हाजान कन्याको सबके हो जाता है। वरपक्षसे एक आत्मीय और आत्मीया कन्या- सामने सुसज्जित कर लाते और हि मन्त्रपाठ किया के घर भेजो जाती हैं। पुरुष वाहर जा कर बैठता है और करते हैं । अन्तमें हाजानके आज्ञानुसार वर कन्याके और रमणी-भीतर जा कर विवाहका प्रस्ताव करती है। कन्या-1 पीछे कन्या वरके मुंहमें चीनी या गुड़ डालते हैं। यह के अभिभावक अपनी स्त्रीसे परामर्श कर उसे उचित उत्तर कार्य हो जाने पर कन्याको भीतर ले जाते हैं। इसके दिया करते हैं। दोनों ओर वात पक्की हो जाने पर बाद सभी चीनीका शरवत, नारियल या मद मांस- "विवाहका दिन धरा जाता है, नहीं तो वरपक्षको उलटे मुह मिश्रित अन्न खानेको पाते हैं। कन्याके पिताके घरसे लौट आना पड़ता है। इस तरह दोनों पक्षधात पक्की विदा हो कर वरके घर आ फर भी वे इसी तरह पेट- हो जाने पर वरका पिता या अभिभाषक मुकादम' या पूजा करते हैं। 'प्रामके प्रधानके पास जा कर विवाहका प्रस्ताव करता विवाहके दो दिन पहले वर-कन्या दोनों घर पांच है और कन्याक पिताको विवाइ स्थिर करनेके लिये 'करवली' पहुंचते हैं और एक एक टोकरी चांवल ले 'उससे अनुरोध करता है। कन्याक पिताके आने पर कर निकटके एक कुएं पर उपस्थित होते हैं और जलसे उस दिन सन्ध्याको प्रधानके घर दोनों पक्षके कुछ। उसे धो धो कर 'चावल' घोआका रश्म अदा करते हैं। आत्मीय कुटुम्ब एकत्र होते हैं दोनों पक्षमें कोई आपत्ति न इसके लिये वे पान, सुपारी, गुड़ और तम्बाकू पाते हैं। हने पर विवाहका दिन स्थिर हो जाता है। ऐसा ही | विवाहके १ दिन पहले हल्दी लगाई जाती है। इस दिन दिन सोच कर रख जायेगा, जिससे शनिवारको सन्ध्या | सवेरे वरके माता पिता अथवा अन्य कोई भात्मीय को या शुक्रवारके मध्याहमें ये शुभकार्यावली सम्पन्न हो । बाजेके साथ इस रश्मको पूरा करनेमें सम्मिलित होनेके जाये। उसी समय यह भी स्थिर होता है, कि कितने लिये आत्मीय कुटुम्बको सूचित करनेके लिये जाते हैं। आदमियोंको विवाहमें भोजन कराना होगा और भजना- दोपहरको सभी आ कर एकत्र हो जाते हैं। इन लोगों के लयको कितना रुपया दिया जायगा । अन्तमें वरका | आने पर एक चौकी पर वर आ कर बैठता है। सात पिता कुछ पचान और मद्य ला देता है। पहले मन्त- सधवायें अथवा अनूढ़ा कुमारियां वड़े कौतुकके साथ पाठकारी आचार्य या 'हाजान' शरावका प्याला उठा करके शरीरमें हल्दी लगाती हैं। हल्दी लग जाने पर वर कर मन्तपाठ कर पी डालता है। इसके बाद | अव घरसे बाहर नहीं निकलने पाता। उस समय वह 'मुकारम' या प्रधान, वर और कन्याके पिता उसे पीते हैं। खुदाईनूर या भगवान्की ज्योति कहा जाता है। दो इसके बाद अभ्यागत सभी थोड़ी बहुत शराब पीते हैं। बालक सदा उसके पास रहते हैं। वह कभी अकेला Vol. xVIII, 151