पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६०८

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गण आमन्त्रित किये जाते हैं। दोपहरको गर्मिणीको है। चौथे दिन चरोवरी नामक भूतकी तुष्टिके लिये स्नान करा कर वेणीवन्धन और वरण आदि शेष होने तिखोपडी और पांचवें दिन पांचवों क्रिया होती है। पर चीनी देनी पड़ती है। आमन्त्रित लोग समयोपयोगी पांचवें दिन शेज भरणी या प्रसूतिको धान दे कर आशी- गान गाते हैं । अन्त में पान सुपारी ले कर दिदा हो जाते दि और वरण तथा अति भरणी या चावल देकर हैं। साधभक्षणके बाद गर्भिणीको उसको माताके यहां प्रसूतिकी गोद भरा जाता है। इस समय भी गाना उसे भेज दिया जाता है। यहां भी गर्भवतो अच्छा कपड़ा। बजाना तथा कई तरह कौतुक हुआ करते हैं। ६ दिन और अच्छा भोजन पाती हैं। शिशुके पिता आत्मीय स्वजनको आमन्त्रित करता है। . जातकर्म-प्रसवका समय उपस्थित होने पर गर्म-, रातको ६ वजेके भीतर ही सभी आ जाते हैं, भोजनोप- घरमें ले जाना पड़ता है। दो एक बुढ़िया हो उसके रान्त सभी ढोल पीट कर रात भर जागते हैं। घोच. · समीप रहने पाती है। पुत्र होते ही थाली बजाई जाती बीचमें सुरापान भी होता जाता है । ७ दिन प्रसूति उस है । उण्डा जलका शिशुको देह पर छोटा सारा जाता घरको छोड़ कर शिशुको वाहर ले आती है । आत्मीय है। प्रसूतिक स्नान तथा शय्याशयन तक शिशुको कुटुम्ब आ कर शिशुको आशीर्वाद देते हैं और मराठी "कुला" या किसी चीज पर सोलाते हैं। दाई गर्म भाषामें सभी कहते हैं- "हे चन्द्र, हे सूर्य ! हमारा जलसे शिशुको स्नान कराती और उसका नाल काट लड़का वाहर आया है, उसे देखो।" आउ दिन.लड़के. देती है। इसके बाद दाई शिशुके नाक कान ; को भजनालयमें ले जा कर सुक्षत करा देते हैं। भजः .शिर आदिको मल-मल करके सीधा करती है। नालय समोप न होनेसे शिशुके वासस्थानमें ही यह प्रसूतिको सन्तान यदि जन्मते ही मर जाती है, तो शिशु- काम किया जाता है। भजनालयमें इस क्रियाके लिये के होते ही दाई उसका नाक छेद देती है। पुत्र हो, तो सुन्नत करनेको जगह वो कुर्सियां रखो रहती हैं। एक दाहना और कन्या हो, तो वांया नाक छेइनेकी प्रथा है। पैगम्बर एलिजा और दूसरी सुन्नत करनेवाले के लिये। इसके बाद गर्म कपड़ा ओढ़ा कर प्रसूतीके दाहनी तरफ आत्मीय स्वजन आ कर सम्मिलित होने पर शिशुका सोला देती है। फिर कुग्रह और कुदेवकी दृष्टिसे बचाने- : मामा शिशुको गोदमें ले कर "सलाम वालेकम्' अर्थात् के लिये तकियाके नीचे एक लोहेके चाकू रख दिया जाता भगवान् के नामकी जय हो' बैठे हुए सभो.लोगोंके सामने है। कई चांदीके पात्रमें आदम और हवाका नाम खुदा उपस्थित होता है। वे भो 'वालेका सलाम' कह कर कर शिशुके गले में डाल दिया जाता है। पीछे शिशुके जवाव देते हैं। जो बुड्ढा एलिजाकी कुसी पर बैठते हैं, पिताको खवर दी जाती है । दाई नगद एक रुपया, आध उन्हाँको गोदमें शिशुको दिण जाता है। सुन्नत करने- सेर चावल और एक नारियल विदाई पाती है। शिशुके वाला भी दूसरी कुसी पर बैठ कर इस कार्यका समा. मुखके सामने एक दीया जला दिया जाता है। धान किया करता है। उस समय समागत व्यक्ति हिव प्रसूति कई खजूर, कुछ नारियलका गुदा और अल्प गान गाया करते हैं। शिशुके पिता एक कपड़ा ओढ़ शराब पी कर धरित्रीके लिये उपवास करती है। तोन कर भगवानका नाम लेने लगते हैं। इस समय भजनालय- दिनों तक वह गुड़ रोटी खानेको पाती है। इथे दिन के बाहर एक मुरगी जवह को जाती है। शिशुको ठण्ढा उसको जूस और सामान्य भात खानेको दिया जाता है। करने लिये तीन बार मुखमें कई वूद शराब चुत्राई जाती चालीस दिनों तक गर्म जल ही पोया करती है । शिशुको और थोड़ा सा दूध दिया जाता है। इस कर्मके बाद माताके स्तन दो तीन दिन तक पिलाये नहीं जाते। शिशुको नामकरण संस्कार होता । हाजान हिब्रु मन्त्र पहले दिन शिशुको एक कपड़े में धनियाका क्वाथ और पाठ कर शिशुके शिर पर हाथ रख नामकरण संस्कार मधु लपेट कर उसे चूसने के लिये दिया जाता है। दूसरे करत हैं। इसके लिये वह कुछ दक्षिणा और एक दिन पकरीका दूध और तीसरे दिनसे माताका दूध पाता। मुगीं पाता है। आमन्त्रित लोगोंको चीनी और नारियल ___Vol. xviI, 152