पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यहूदी खानेको दिया जाता है। नामकरण रातको घरमें हुआ। तथा मृतपुरुषकी स्त्री अपनी चूड़ो और विवाह के समय- करता है। यह रात भी गानेवजानेमें ही व्यतीत का कंण्ठहार तोड़ देती है। सफेद कपड़े से मृतदेह ढांक होती है। दी जाती है। मृतपुरुषके दोनों वृद्धांगुष्ठ या अंगूठे बांध बारहवें दिन सबेरें स्नान करनेके बाद शिशुका दिये जाते हैं। सभी उनके चारों ओर बैठ कर रोत भूलोत्सव होता है। कई आत्मीय 'वसिसआदोनिया' । चिल्लाते हैं। इसके बाद उसके अन्दाजसे एक कन्न खोदो इस हिव्र नामको उच्चारण वर शिशुको भूले पर सुला । जाती है, शवको क्व्रके निकट ले आनेके पहले नारियल कर झलान ,गाना गाते हैं। प्रथम पुत्र होने पर १३वे के जल और साबुनसे धोते हैं। इसके बाद हाजान आ दिन शिशुका पिता भजनालयमें आ कर कहता या अनु- कर शवके पास खड़ा होता है। उसकी माहासे सात ष्ठानिक आचार्यको सम्बोधन कर बहता है, कि मैं अपने घड़े जल मृत देह पर ढाला जाता है। इसके बाद घड. इस प्रथम पुत्रको ले कर उत्सर्ग करने आया हूं, फोड़ दिये जाते है। इसके बाद शव स्थानान्तरित कर प्रहण करें। 'कोहेन' शिशुको गोदमे ले कर उसका उसके मिगे हुए कपड़े को वदलवा देते हैं। फिर चटाई मुंह देखते हैं और २ ले कर शिशुको आशीर्वाद दे। के ऊपर सफेद कपड़ा बिछा कर उस पर शवको सुला मुक्तिदान देते हैं। देते हैं। इस समय नया वस्त्र और इजार टोपी पहनाई पुत्र होने पर ४० दिन और कन्या होने पर ८० 'दन | जाती है। शिरके नीचे तकिया दे कर उसे सजा दिया पर सूतिकाकी शुद्धि होती है। इस अवसर पर हाजान जाता है। दाहिने हाथमें एक गुच्छा सजा और एक भाता है। वह एक गुच्छा सवजी लेकर जलपात्रमें डुवाता रुमाल धर दिया जाता है। इसके बाद उसक आत्मायों है और मन्त्रपूत कर पिता, माता और शिशुके शरीरमें | को अन्तिम मुख देखने के लिये मृतकका केवल मुख खोल पवित्र जलका छोटा देते हैं। प्रसूति और शिशुको गर्म दिया जाता है और सारी देहमें कपड़ा लपेट दिया जाता जलमें स्नान करा कर शुद्ध होते हैं। शुद्धिके बाद शिशु- है। इस समय हाजान आ कर उपस्थित होता है और का शिर मुण्डन होता है। तीन या चार मासके होने पर कहता है, कि मृतकने कुछ तुम लोगोंसे अपराध किया शिशु माताके साथ अपने पिताके घर लाया जाता है। हो, तो माफ करना। इस पर सभी कहत हैं, कि मैंने इस समय कुग्रहकी शान्तिके लिये कुछ अनुष्ठान किया | माफ किया। इसके बाद शवकी आंखों पर रुई लपेट कर जाता है। तीन मासके बाद शिशुका कर्णवेध संस्कार आंखें रुमालसे बांध दी जाती हैं। अनन्तर चद्दर भोढ़ा होता है। शिशुले टोका और चेचक्रके समय कर शवको तोप दिया जाता है। इस समय भजनालय- विलकुल छिपे तौर पर शीतलादेवीका पूजन किया | से एक आदमी दोलारे' या कफन ले आते हैं। हाजान जाता है। कोई पन्द्रह मिनट तक हिब्र मन्त्र उच्चारण करते हैं। ___ मृतानुष्ठान-पुरुषको मृत्यु होने के कुछ देर पहले | अनन्तर शवको बाहर निकाल कफन पर रखते हैं। तद- नाई आ कर उसका शिर मुण्डन कर जाता है। इसके बाद | नन्तर उसे फेमसे दवा कर उस पर फूल और हरे कोई आत्मीय उसके सारे वदनको कमा देता है। इसके | | पत्तियोंसे तोप देते हैं। इसके बाद पहले आचार्य फिर बाद उसे स्नान करा, नया वस्त्र पहना, नई शय्या | आत्मीयस्व जन उसे कन्धे पर उठा कर हिब्रु मन्त्र पाठ पर सुला देते हैं। जब तक ज्ञान रहता है, तब तक हाजान | करते करते कब्रस्थानकी यात्रा करते हैं। बीच-बीच में धर्मशास्त्र पढ़ कर सुनाता रहता है। मृत्युके समय अपने कन्धे बदलते जाते हैं। कब्रस्थानके निकट मा मुमुर्दा के मुंहमें चोनीका रस और अंगूरका शरवत कर सभी जरा ठहरते हैं। इस समय हाजान बड़े डाल देते हैं और उसके आत्मीयोंसे इस तरहका सान्तना- जोरसे हि मन्त्र पढ़ता है। पीछे शववाहक शवाधार वाक्य कहते हैं। जिससे उन्हें उसके वियोगमें कष्ट न हो। ला कर कनके निकट रखते हैं। दो आदमी कनके प्राण निकलने पर शीघ्र ही पुत्र अपना पहना हुआ वस्त्र भीतर जाते हैं और बाकी तीन आदमियोंमें एक आदमी