पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६१

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५६ मुद्रातत्त्व ( भारतोय) ___ आराकानके निकटवत्तों चेदुवाद्वोपसे चोलुक्यचन्द्र चन्द्रात्रेय या चन्देल (१०६३-१२८२ ई० ) शक्तिवर्मा (१०००-१०१२ ई०) तथा श्य राजराज । उत्तरमें यमुना, दक्षिणमें कियान, पूर्नमें विन्ध्य और ( १०२१-१०६२ ई० ) राजाको नामाङ्कित और वराह- दशान नदीके मध्यवत्ती जनपद (जेजाहुति वा महोव चिह्नयुक्त वहुत सी मुद्रा वाहर हुई हैं। इन्हें बहुतोंने । नामक स्थान )-में चन्द्रानेयगण ई० सन् हवीं सदीके चालुक्य मुद्रा स्थिर किया है। पहलेसे ही राज्य करते थे। पहले उन्होंने कलचुरि कादम्ब। राजाओंकी अधीनता स्वीकार की। इस वंशके महा- दाक्षिणात्यके उत्तर-पश्चिम और महिसुरके उत्तरांशसे राज कीर्तिवर्मा चेदिपतिने कर्णदेवको परास्त कर कल बहुत-सी कादम्व-राजाओंको मुद्रा मिली हैं। इनकी चुरियोंका अधीनता-पाश तोड़ दिया। चन्द्रोत्र यवंशमें गढ़न प्राचीन चालुक्य मुद्रा-सी है। इनके वीच पद्म ' कोतिवर्माने ही सबसे पहले अपने नामको मुद्रा चलाई। चिह्न रहने के कारण इनका 'पद्मटङ्क' नाम पड़ा है । कोई । उनके नीचे नौ पोढ़ी वीरवर्मा तझके राजा ने अपने कोई पद्मटङ्कका प्रचार-काल ई०सन् ५वीं वा ६ठी सदी अपने नामसे मुद्राङ्कित किया था । यहाँको मुद्रा वतलाते हैं, किन्तु इन सब मुद्राओंकी संस्कृतलिपि कलचुरि मुद्रा सी है। देखनेसे उतनो पुरानी नहीं मालूम होती। चाहमान या चौहान । रघुवंशी (८५०-६०० ई० ) अजमेरके चौहानवंशने तोमरोंसे दिल्ली ले ली। कान्यकुब्जसे रघुवंशीय राजाओंकी मुद्रा संग्रह की बादमें जेजाहुतिने अपना अधिकार जमाया। इसी वंशके गई हैं। इनमें से बहुतों पर 'ह' अक्षर रहनेके कारण कुछ | अन्तिम दो राजे सोमेश्वर और पृथ्वीराजकी मुद्रा मिली लोग इन्हें हर्षदेवके समयको मुद्रा मानते हैं। इस मुद्रा है। इनकी मुद्रा में वैल और घुड़सवारका चिह्न है। को देख कर कन्नोजपति भोजदेवका (८५० ६०० ई०), १९९२ ई में दिल्ली पृथ्वीराजके हाथसे निकल कर मुसल- "श्रीमदादिवराह" द्रम्म बनाया गया है। मानोंके हाथ लगी। दिल्लीके प्रथम मुसलमान राजाओं तोमर (१७८-११२८ ई.) को मुद्रा भी पूर्वोक्त हिन्दूमुद्राको अनुरूप है। बिगत पहले तोमरवश कन्नोज और दिल्ली दोनों जगह | या कांगड़ाके राजपूत राजे भो १३३० से १६१० ई० तक आधिपत्य करते थे। इस वंशके सल्लक्षणपाल, अजयपाल | उसी चौहानके आदर्श पर अपनी अपनी मुद्रा चला और कुमारपालदेवकी मुद्राए दिल्ली और कन्नोज दोनों गये हैं। जगहोंसे आविष्कृत हुई हैं। २०५० ई०में राठोरपति | पाल । चन्द्रदेवके कन्नोज जीतने पर तोमरपति मगधौ पाल राजवंशका प्रभाव विस्तार होनेके साथ अनंगपाल दिल्ली जा कर राज्य करते थे। दिल्लीसे साथ अनेक प्रकारकी मुद्रा प्रचलित हुई थी उनमें केवल अनंगपाल और महीपालकी मुद्रा पाई गई है। तोमरों- विग्रहपालका रुपया बाहर हुआ है। यह मुद्रा शास- की मोहर फिर बहुत कुछ डाहलकी कलचुरि मुद्रासे, नीय मुहरकी जैसी है। इसके ऊपर "श्रीविग्रह”. नाम और धातव ( Billon ) मुद्रा बहुत कुछ गान्धारके | खोदा हुआ है। बहुतोंका विश्वास है, कि सायडोनिके ब्राह्मणशाहि राजाओंकी मुद्रासे मिलती जुलती है। शिलालेखमें विग्रहपालद्रम्म नामक जिस मुद्राका राठोर (गाहड़वाल, १०५०-११२८ ई.) उल्लेख है वही उक्त मगधपति विप्रहपालका रुपया है। कन्नोजविजेता राठोरपति चन्द्रदेवकी कोई मुद्रा उपरोक्त विभिन्न राजवंशको मुद्राके सिवा काश्मीर नहीं पाई जाने पर भी उनके लड़के मदनपाल, मदनपाल नेपाल आदि सोमान्त प्रदेशसे भी देशीय राजाओंकी के लड़के गोविन्दचन्द्र और गोविन्दचन्द्रके लड़के अन्तिम अनेक प्रकारको मुद्रा आविष्कृत हुई है। काश्मीर। राजा जयचन्द्र या अजयचन्द्रकी मुद्रा संगृहीत हुई है। काश्मोरमें बहुत पहलेसे हो मुद्रा प्रचलित थो, परंतु . यह मुद्रा तोमरमुद्राके अनुकरण पर बनी है।