पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६१९

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याजेपुर . मणिकर्णिका नामक घाट है, जहां महाविषुव-संक्रांतिमें | करनेकी इच्छासे हिन्दूकी बड़ी बड़ी देवमूर्तियोंको न यात्रा होती है। करनेके लिये तय्यार हुआ। उसके बाद भी प्रायः तीन यह स्थान पार्वतीका पवित्र विरजाक्षेत्र कह कर सदी तक मुसलमान-सम्प्रदाय हिन्दूकोर्तिका विलोप प्राचीन पुराणादिमें कीर्शित है। भुवनेश्वरका एकाम्रक्षेत्र करता रहा था। असंख्य देवालय मसजिद वनाये गये शैवसंप्रदायके निकट जैसा पुण्यस्थान है तथा पुरुषो | थे। १६८१ ई०में नवाब आबू नाशिरने हिन्दू-मन्दिरके त्तमक्षेत्र जैसा वैष्णवोंके निकट मोक्षभूमि समझा जाता प्रस्तरादिको तोड़ फोड़ कर एक सुन्दर मस्जिद वन- है, यह विरजाक्षेत्र भी बैसा ही परम पुण्यप्रद तीर्थ मोना वाई थी। वचा खुचा मन्दिर भी अगरेजोंके पवलिक जाता है। शैव ब्राह्मण (पुरोहित ) सांप्रदायका यहां वर्कसके अज्ञ कर्मचारियों द्वारा मलियामेट कर दिया गया। अधिष्ठान होनेके कारण स्थानीय माहात्म्य दूना बढ़ गया | उन्होंने याजपुरके राजप्रासाद और देवमन्दिरके वाको है। उनके कोर्शिखरूप आज भी यहां नाना शिवमन्दिर प्रस्तरादि द्रांकरोडके पुल बनानेमें लगे थे। और प्रस्तरप्रतिमूर्ति देखी जाती है। अभी उनका अधि | इस प्रकार वैदेशिकका कठोर अत्याचार रहते हुए कांश प्रायः भग्नावस्थामें पड़ा है। मुसलमान आक्र- | भो उड़ीसाके हिन्दूराजवंशको कीर्ति विलकुल विलुप्त न .मणकारियों के बार बार आक्रमणसे वे सब तहस नहस हुई। उनको शिल्पसमृद्धिके अत्युत्कृष्ट निदर्शन आज तथा विलुप्त हो गये हैं। भो याजपुरमें जगह जगह देखी जाती है। वहांके जङ्गलमें पाठान लोग यहां अपना आधिपत्य फैला कर धीरे जो एक सुगठित चण्डेश्वरस्तम्भ मस्तक उठाये खड़ा है, धीरे हिन्दुकीर्शिका लोप करने अग्रसर हुए। राजा उसे देखनेसे मालूम होता है, कि उस समय मुसलमान ययातिदेव बड़े यत्न और अर्थव्यय करके जो समृद्धशाली सेनादलका हिन्दूविद्वेषभाव शिथिल हो गया था । अफ- महानगरी स्थापन कर गये थे,-शैव ब्राह्मणोंने देव- गानोंने उस स्तम्भको लोहेकी जंजोरमें बांध कर हाथोसे देवीकी प्रतिमूत्ति स्थापन कर जिस तीर्थकी शोभावृद्धि खिंचवानेकी चेष्टा की, किन्तु सौभाग्यकमसे वह टससे की थी, हिन्दुधर्मकी श्रीबृद्धि और मङ्गलाकांक्षी उदार-1 मस नहीं हुआ। १०वीं शताब्दीमें प्रतिष्ठित हिन्दुको राजगण जिसको रक्षामें हमेशा लगे रहते थे, दुर्वृत्त यह गौरवकीर्ति १६वीं सदीके मुसलमान-विजेता द्वारा पठानोंके अत्याचारसे उनकी बुनियाद भी रहने न पाई। नष्ट भ्रष्ट नहीं हुई। उन्होंने केवल इसके ऊपर जो गरुड़ उस धर्मद्वेषी है मुसलमान-सम्प्रदायने हिन्दूकी लाखों | मूर्ति थी, उसे तोड़ डाली थी। देवप्रतिमाको नाक, हाथ, पैर छेनोसे काट डाले थे। इस समय इस्लाम धर्मावलम्बियोंका हिन्दूविद्वेष कितने देवमन्दिर तो मुसलमानोंके समाधिमन्दिर में परिणत आपे आप घटता आ रहा था। याजपुरका सर्वप्रधान हुए थे । प्राचीन राजप्रासादमे मुसल मान शासनकर्ताओं- स्मृतिसमूह उनके कठोर हाथोंसे छुटकारा पा कर अचल को अश्वशाला खोली गई थी। प्रधान प्रधान मन्दिरों के । अरलभावमें खड़ा रहा। माल मसालेसे मुसलमान उमरावों के वासभवन बनाये १८६६ ईमें भी जो तीन देवीकी मूर्तियाँ वैतरणीके गये थे। किनारे स्थापित थों, वे अभो महकमेको कचहरीके सामने ___उड़ीसाको देवकी कीर्ति मुसलमानोंकी दृष्टि पर चढ़ | | ला कर रखी गई हैं। गई थी। वे लोग इस हिन्दूतीर्थका लोप करनेकी इच्छा वे सभी मुसलमानके अत्याचार तथा उनके स्पर्श से वद्धपरिकर हो वहांको कोर्तियों को ध्वंस करनेके दोषसे पतित हो कर नदीमें फेंक दी गई थीं । एक वाराही इच्छासे कई बार अग्रसर हुए थे। विख्यात हिन्दूविद्वषो मूर्ति है जिसको गोदमें एक बच्चा है, समूचे शरीरमें पठानसेनापति कालापहाडका सहयोगी अफगानसेनापति आभरण है और वह एक नीले पत्थर पर खोदित है। अलीबखर अपनी वासभूमि मध्यएशियाका परित्याग हाथमें कङ्कण है, गलेमें हार है, कानों में कर्णफूल है, पैरमें कर भारतवर्ष आया । यहाँ वह इस्लाम धर्मका प्रचार कड़ा है तथा बाएं हाथमें अंगूठी आदि सभी प्रकारके