पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६२०

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याजपुर भूषण हैं। दूसरो मूर्ति चामुण्डाको जो शव पर चढो; पाप नष्ट होते हैं। इसके बाद शैवराजाओंके प्रादुर्भावसे है और जिसके एक हाथमें नरकपालमें अमृत और दूसरे में : यहाँ शाक्त और शैवकीर्शिको प्रधानता सूचित हुई। खड्ग शोभता है। नरमुण्ड उसके गलेमें लटक रहा। शैवराजाओंके वैभवसे यह स्थान नाना अट्टालिकायें है। तीनों मूर्तियोंकी ऊंचाई ८ फुट और मोटाई ४ | और देवमन्दिरोंसे सुशोभित हो गया था। फुट होगी। इन-सव प्रतिमूर्तियाँका पत्थर गाढ़ा नीला पीउमालाके मतसे, दक्षयज्ञमें सतीने जव देहत्याग और मजबूत है । इन्द्राणी हाथीकी पीठ पर बैठी है, उनके किया, तव देवादिदेव महादेव उस देहको कंधे पर लिये चार हाथ हैं तथा सव प्रकारके अलङ्कार हैं। पृथिवी पर परिभ्रमण करने लगे। देवताओंने शिवजी- वाराही मूर्ति ८ फुट ऊंची है, पुत्रको गोदमें लिये की वह अवस्था देख कर विष्णुको शरण ली। विष्णुके महिष पर बैठी है। सर्गसंहारकारिणी सर्पाभरण- | सुदर्शनचकसे सतीको देह ५२ खण्डोंमें विभक्त हो भूषिता चामुण्डा वा कालीको कृशोदरीमूर्ति शवके भारतवर्णके नाना स्थानों पर जा गिरो। वे सब स्थान ऊपर बैठी है, शिव पनके ऊपर सोये हैं। ऐसो कङ्काल- देवोके पीठस्थान कहलाते हैं। श्रीक्षेत्रमें जहां सतीका सार विलोलितचर्मा देवीकी मूर्ति भारतमें और कहीं। अङ्ग गिरा था, वहां विमलादेवी और याजपुरमें विरजा- भो देखनेमें नहीं आती। इसको गढन देखनेसे मालूम देवो विराजित हुई। तभीसे देवीका यह पवित्र स्थान होता है, कि उस समय इस देशके भास्कर शिल्पविद्या-। उनके विरजा नामानुसार ही विरजाक्षेत्र नामसे प्रसिद्ध के साथ साथ शारीरविद्यासे भो अच्छी तरह जान- । हुआ। •कार थे। प्रायः १००२ शकाव्दमें सोमराजवंशका अधापतन • • इसके बाद यहां और भी एक मूर्ति लाई गई है। वह, हुआ। पीछे इस शाक्तपुरमें वैष्णवोंकी तूती बोलने लगी। चौथी मूर्ति शान्तमाधवकी है। इसे तोड़ फोड़ कर तोन | इस वैष्णव गङ्गवंशने कई सदी तक यहां शासन किया खण्ड किया गया था, पर केवल दो ही खण्ड आज तक | था। वैष्णव प्रधानताके समय यहां असंख्य विष्णुमूर्ति मिले हैं। इस मूर्त्तिके दो पैर नहीं हैं। पहले यह याज. और विष्णुदास गरुड़की मूर्ति आदि खोदी गई थी। पुरसे ११ मील पश्चिम पड़ी हुई थी । पीछे वहांसे उठा ऊपरमें गरुडस्तम्भकी गरुड़मूर्तिका विषय लिखा जा 'कर लाई गई। ये चारों मूर्ति देखने योग्य हैं। चुका है। यहां तक, कि सप्तमातृका चित्रस्तवकके समीप सूखी नदीको एक बगल में एक प्रस्तरफलक है जिस जगन्नाथदेवका मन्दिर भी स्थापित हुआ था। कहनेका पर इन्द्राणी, वाराहो, वैष्णवी, कुमारी, यममातृका, कालो तात्पर्य यह कि वैष्णवधर्मके सभी विषयोंका चित्र और रुद्राणी इन सप्तमातृकाओंका चित्र खोदित है। संग्रह करनेमें वैष्णवराजने कोई भी कसर उठान • मन्दिर में जो सव भास्करखोदित प्रस्तरफलक हैं, रखी थी। सभी तरह तरहके चित्रोंसे चित्रित है। उन्हें देखनेले | | निकटकत्ती एक उपवनके मध्य सूर्योपासनाका भी मालूम होता है, कि विभिन्न समयमें यहां विभिन्न धर्म- निदर्शन देखनेमें आता है। यहां कितने सूर्योपासक की प्रतिष्ठा हुई थी । वैतरणी तीरस्थ दशाश्वमेधघारसे | पवित्र अग्निके रक्षाकार्यामें हमेशा लगे रहते हैं। मन्दिर सीढ़ी द्वारा वराह मन्दिर जाने पर वैदिकयुगके अश्वमेघ- के प्राङ्गणमें जगह जगह सात घोड़ों पर बैठे सूर्यदेवकी यक्षका चित्र अङ्कित देखा जाता है। । मूर्ति भी अङ्कित नजर आती है। कोणार्कका विख्यात "ब्रह्माके यक्षस्थल में आये हुए देवताओंके मध्य गङ्गा- सूर्यामन्दिर इस स्वतन्त्र उपासक-सम्पदायकी विगत देवोकी भी मूर्ति खोदित है । स्थानीय लोगोंका विश्वास कीर्तिका निदर्शन है। वह अभी भग्नावस्था में पड़ा है। है, कि यक्षके समय गङ्गामाताके शुभागमनसे. गडाका पवित्र जल भूगर्भ में सञ्चालित हो चैतरणीके जलमें मिल | ___ कोणार्क देखो। जिस समय.सूर्योपासना उड़ीसामें प्रवल हो उठा, गया है। इस कारण वैतरणीमें स्नान करनेखे सभी ठोक उसी समयं गङ्गवंशीय राजाओंका अभ्युदय हुआ। Vol. XVIII. 155