पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६२२

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. एक हिन्दूतीर्थ हो गया। उस समयसे लगायत १६वीं | सोमवंशीय राजाओं के समय बनाया गया है । भीतर- सदी तक यह नगर उड़ोसाकी दूसरी राजधानीरूपमें गिना में अष्टभुजा अठारह उगली ऊंची भीषण आकंतिकी ‘जाने लगा। विरजादेवी-मूर्ति विराजमान है । सम्मुखस्थ जगन्मोहन "हिन्दुओंने बौद्धोंको भगा कर जिस प्रकार उनके पवित्र | मण्डपमें एक होमकुण्ड है । उसके बाहरमें पत्थरक 'देवस्थानों में हिन्दूका देवमन्दिर स्थापित किया था। चबूतरेमें गड़ा हुआ एक यूपंकाष्ठ हैं। उस यूपकाष्ठमें प्रति उधर मुसलमानों ने भी उसी प्रकार हिन्दूके मन्दिरादिमै दिन पशुबलि होती है । याजपुरनिवासी ब्राह्मण पञ्चदेवो- मसजिद आदिको प्रतिष्ठा की । १५५८ ई०में इतिहास- पासक हैं। अतः पशवलिमें उन्हें कोई बाधा नहीं है। प्रसिद्ध कालापहाड़ने याजपुर पर आक्रमण किया। महाष्टमीके दिन देवीको यात्रा होती हैं। विरजादेवी- मुसलमान सेनापति कालापहाड़ने राजा मुकुन्ददेव- मन्दिरके :उत्तरी भागमें ५ फुट ध्यासका पक्के का एक को समरमें मार कर याजपुरकी हिन्दू देवदेवीको नष्ट कृप है। वही कूप नाभिगया कहलाता है। वहां पिता- करते समय उन स्तम्भों को नष्ट करनेके लिये बहुत माता आदिक उद्देशसे पिण्डदान कर उसे नाभिकुण्ड- 'कोशिश की थी। किन्तु जव उसमें कामयाव न हो सका, में फेंकना होता है । विरजादेवीके मन्दिरके पास हो तब उसके ऊपरकी गरुड़मूर्तिको हो नष्ट कर डाला। दानेदार पत्थरके चबूतरेके ऊपर एक क्लोराइट पत्थर- पुराविदोन स्थिर किया है, कि १०वीं सदीमें सोम- का ध्वजस्तम्भ दण्डायमान है। कोई कोई उसे ब्रह्माके वंशीय राजाओं ने इसे विजयस्तम्भरूपमें स्थापित किया अश्वमेधयज्ञका और कोई सोमराजवंशका कीतिस्तम्भ था। ऐसा बड़ा और भारी पत्थर किस प्रकार सैकड़ों वतलाते हैं। वह स्तम्भ प्रायः ३७ फुट ऊंचा है। स्तम्भ- मील दूरसे यहां लाया गया था, वह हमारी समझमें के ऊपर पहले एक गरुड़मूर्ति रहती थी। नहीं आता ....: - याजपुरके भलीवुखारीका समाधिमन्दिर देखने लायक याजपुरसे २ कोस उत्तर-पूर्व गहर-तिकरी नामक | है। एक, हिन्दमन्दिरके नीच' पर मुसलमानोंका यह स्थान है जहां हिन्दू मुसलमानोके वीच युद्ध हुआ था। समाधिस्तम्भ खड़ा किया गया है। इस स्थानकी गठन इस युद्ध में उड़ीसावासीने केवल अपनी स्वाधीनता ही | देखनेसे वह किसी मन्दिरका मुक्ति-मण्डपं-सा प्रतीत नहीं खो दी थी, वरन् उसके साथ साथ हिन्दुके हृदयरन होता है। किन्तु वह मन्दिर किस देवताके उद्देशसे देवमन्दिर और देवमूर्तियां अपहृत, ध्वस्त और चूर चूर | बनाया गया था उसका कोई पता नहीं चलता। भी हुई थी। पूर्वाकथित स्तम्भोंको छोड़ कर याजपुरको .. आलं.बुखारीक समाधिस्तम्भमें वाराही, इन्द्राणी पूर्वसमृद्धि और पूर्णकीर्त्तिका और कोई चिह्न नहीं है। • वैतरणी तीरवती दशाश्वमेधघाट वहाँकी प्राची- और चामुण्डाकी मूर्ति खोदित थो । ऐतिहासिक ष्टालि 'नताको एक निदर्शन है । यहाँसे नगरके दक्षिण जो उस प्रस्तरखण्डको वहांसे उठा लाये थे। मुसलमानों- 'रास्ता गया है, वही सीधे विरजादेवीके मन्दिर में पहुंचा ने उस पत्थरको तोड़ कर वैतरिणी जलमें फेक दिया है। उस मन्दिरके प्राङ्गणमें नाभिंगयाके निदर्शनस्वरूप था। उस पत्थरके आधेमें अन्य पञ्च मातृकाकी प्रति- 'एक कूप है। ". .. ... ... ... कृति खोदित थी, ऐसी बहुतो की धारणा है। ‘दशाश्वमेधघाटसे ढाई मीलकी दूरी पर विरजादेवी... दशाश्वमेघघाटके दूसरे किनारे पुरोके जगन्नाथदेव- का मन्दिर है, उसके पश्चाद्भागमें १०० फुट लम्बी,.90 मन्दिरके अनुकरण पर एक छोटा मन्दिर अवस्थित है। 'फुट चौड़ी चारों ओर पत्थरकी सीढ़ोसे सुशोभित एक | एक सदी पहले किसी वस्त्रव्यवसायीने उसे बनवाया पुरानी पुष्करिणी है। यह पुरुकरिणीः ब्रह्मकुण्ड वा| था।. नगरसे १ मीलके अन्दर गौराङ्गदेवरी . नामक विरजोकुएंड नामसे प्रसिद्ध है। विरजादेवीका मन्दिर- गोविन्दजीका एक मन्दिर है। . .प्राङ्गण लम्बाई और चौड़ाई में 800 सौ फुट है। मन्दिर | ... याजपूरसे.१ मोलकी दूरी पर चण्डे श्वर नामका एक