पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६२४

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६२९ याजपुर- विधानानुसार पूजन किया जाय, तो वह सव पापोंसे , गोलोकधामको प्राप्ति होती है। चन्द्रप्रतिष्ठित सोम- विमुक्त हो दिव्यरथ पर आरोहण कर गन्धर्वो के साथ | तीर्थ भी यहां विद्यमान है। यहां स्नान करनेसे चन्द्र- नाच गान करते हुए ब्रह्मलोकको जाता है। इस विरज- ' लोक प्राप्त होता है। इस विरजाक्षेत्रमें अल्पाम्वुतीर्थ क्षेत्रमें जो व्यक्ति पिण्डदान करता उसके पितर हमेशा है। यहांका थोड़ा भी पुण्यमेरुके समान है, इसमें संदेह तृप्त रहते हैं । इसलोकमे जिसका देहान्त होता नही । देवताओंसे वन्दित मृत्युञ्जयतीर्थ है। यहां है, वह निश्चय ही मोक्ष पाता है।' | मार्कण्डेय ऋषि स्नान कर अमर हो गये हैं । फिर यहां (ब्रह्मपु० ४२ अ० १-१० श्लाक) । परम पवित्र क्रोड़तीर्थ है । यहां कोड़रूपी जगन्नाथ तीर्थ कपिलसंहितामें इस विरजाक्षेत्रका परिचय इस प्रकार ! रूपमें अवस्थान करते हैं । यहांके विष्णुपदप्रदायक श्री- दिया गया है- वासुदेवतीर्थामे स्नान करनेसे भी दिव्यलोककी गति होती 'विप्रगण ! विरजाख्या क्षेत्रमें विरजःप्रद विरजादेवोके | है। सिद्धोंने जिसका मात्रय कर सिद्धत्व लाभ किया दर्शन करनेसे रजोगुणका क्षालन होता है। इस क्षेत्रकी है, वह सिद्धेश्वर नामक सिद्धिप्रद तीर्था यहां अवस्थित भक्तिमुक्तिप्रदायिनी विरजादेवी साधकों के हितके लिये । है। इसके अलावा यहां और भो कितने तीर्था तथा -ही उत्कल में प्रतिष्ठित हैं। दश हजार वर्ण काशीमें देवदेवियां हैं। चैत्र, वैशास्त्र और आश्विन मासमे जो पूजा करनेसे जो फल होता है, इन विरजाके दर्शन करने., इस विरजाक्षेत्रका दर्शन करने जाते हैं उनको निश्चय से मानव वही फल पाते हैं। इस क्षेत्रमें मुक्तिदायक सिद्धि होती है।' -वराहरूपी भगवान् अवस्थित है। उनके दर्शन करनेसे | इतिहास। .विष्णुलोककी प्राप्ति होती है। यहां आखण्डल नामक महाभारत और पुराणादिम याजपुरका क्षेत्रमाहात्म्य जगद्गुरु पानतीश हैं जिनका दर्शन करनेसे यमदण्डका। कहने पर भी इसका प्राचीन इतिहास नितान्त अस्पष्ट भय नहीं रहता। कोड़तीर्थ और आखण्डलके मध्य ' है। वुद्धजन्मके पहले यह स्थान किस वंशके अधिकारमें देवताओंका दुर्लभ स्थान है। यहां जव कीटादि पर्यन्त | था, वह मालूम नहीं । उस समय याजपुर उचर-कलिङ्ग, मुकि पाते हैं, तो मानवकी वात ही क्या ? यहां मुक्ति- उत्कलिङ्ग वा उत्कल कहलाता था तथा दन्तपुरमें उत्तर- दायक पापनाशन मुक्त श्वरलिङ्ग विद्यमान है। इस लिङ्ग- कलिङ्गकी राजधानो थो। मौर्य चन्द्रगुप्तके समय यह के दर्शनमात्रसे पुराकालमें विनोंने मुकिलाम किया था। स्थान मगध साम्राज्यमुक्त हुआ था। यहां मौर्यराजाओं- विरजादेवीके ईशानकोणमें पितरोके मुक्तिपद नाभिगया के अधीन कोई सामन्त वा कोई राजपुत्र आ कर शासन- नामक पुण्यधाम है। यहां पिण्डदान करनेसे सभी कार्य करते थे। खण्डगिरिस्थ हाथिगुम्फाको १६५ पाप नष्ट होते है तथा वह पितरोंको नरकसे उद्धार कर मौर्याव्दमें उत्कीर्ण सुवृहत् शिलालिपिसे मालूम होता है, उनके साथ विष्णुपदमें लीन होते हैं । यहां मुक्ति- कि ईसा जन्मसे प्रायः दो सौ वर्ष पहले चेतवंशीय क्षेम. प्रदायिनी वैतरणीदवी विद्यमान हैं जिन्हें गङ्गादेवी | राज और पीछे उनके लड़के वुधराज कलिङ्गका शासन कहनेमें, जरा भी अत्युक्ति नहीं । जो वैतरणोंमें | करते थे। बुधराजके वाद उनके लड़के प्रवलपराक्रान्त स्नान कर वराहरूपी हरिका दर्शन करता वह अपने . खारवेल या भिखुराज हुए। जैनधर्मावलम्बी होने पर करोड़पुरुषोंके साथ विष्णुपुरमें जाता है। यहां भी वे सभी सम्प्रदायका एक-सा सम्मान करते थे। भवपाशविमोचन त्रिलोचन नामक शिवलिङ्ग है। उनका अपने राज्याधिकारके २ वर्षमें उन्होंने अन्ध्रराज दर्शन करनेसे भी शिवत्व लाभ होता है। इस तीर्थमें |' शातकर्णि और कुसुम्ब क्षत्रियोंको परास्त किया था । कपिल नामक श्रेष्ठ तीर्थ है । यहां कृष्ण चतुर्दशीमे | वें वर्ष में वे राजगृहपतिके विरुद्ध खड़े हुए। राजगृह- स्नान करनेसे उनके प्रति शिवजी प्रसन्न होते हैं। इसके | पति मथुरा भाग चले । १श्व वर्णमें गङ्गाके किनारे वाद मुनोन्द्रसेवित गोगृहतीर्थ है, यहां स्नान करनेसे | उपस्थित हो उन्होंने मगधपतिको पराजय कर अपनी Vol. XVIII. 166 .