पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६२३ याजपुर मन्दार) पतिको गङ्गाके किनारे परास्त किया था।। नामसे उनके किसी आत्मीय चा पुत्रने दक्षिणकलिङ्गका इस समय गौड़ाधिप विजयसेनके साथ उनकी मित्रता | कुछ दिनके लिये बलपूर्वक शासन किया हो। कामा- हो गई। पुरीका सुप्रसिद्ध जगनाथमन्दिर इन्हों चोड़- र्णवके साथ उनका विरोध होना भी असम्भव नहीं ! गङ्गको कोत्ति है। इसके सिवा उन्होंने श्रीकूर्म, भुवने- मुखलिङ्गसे आविष्कृत कामार्णवकी उक्त शकको लिपिसे श्वर और याजपुरके नाना देवमन्दिरोंकी प्रतिष्ठा की थी। ऐसा मालूम होता है, कि अटेश्वरका अधिकार स्थायी न उनमें भुवनेश्वरके केदारगौरी मन्दिरके दरवाजे पर। रहा । १०७८ शक ( ११५६) पर्यन्त राज्यभोग करके उत्कीर्ण शिलालिपि और याजपुरका 'गङ्गेश्वर' नामक कामार्णव इस लोकसे चल बसे। पोछे उनके वैमात्रेय . देवमन्दिर आज भी उनके नामकी रक्षा करता है । इन्हों। भाई राधवने १०६२ शक (११७० ई० ) तक अर्थात् १५ ने ७० वर्ष तक प्रवल प्रतापसे राज्य किया था। केवल | वर्ष राज्य किया। उड़ीसा हो नहीं, सारे भारतवर्षमे किसी राजाने इस इसके बाद चोड़गङ्गके राजराज नामक एक दूसरे प्रकार दीर्घकाल तक राज्य किया था वा नहीं, संदेह है। पुत्र जो रानी चन्द्रलेखासे उत्पन्न हुए थे, राजसिहासन इन गङ्गेश्वर चोड़गङ्गके शासनकालमें वहुतसे कनोजः। पर वैठे। उन्होने १११२ शक तक राज्यभोग किया था। ब्राह्मण याजपुरमें आ कर वस गये। इसके पहले यहां । उन्होंने ही एकाम्रक्षेत्रके अन्तर्गत सुप्रसिद्ध मेघेश्वरमंदिर. सौरब्राह्मणोंका प्रभाव था। ब्रह्मपुराणमें जहां कोणा के प्रतिष्ठाता खप्नेश्वरदेवकी वहन सुरमाको व्याहा था। दित्य-माहात्म्यप्रसङ्ग आया है वहां इस सौरब्राह्मणकी वृद्धावस्थामें वे अपने कनिष्ठ अनियङ्कभीमको राज्य सौंप प्रशंसा देखो जाती है। चोड़गङ्गके अभ्युदय पर उत्कल गये । १११२ शकमे अनियङ्कभीम वा अनङ्गभीम सिंहासन महासमृद्धिशाली और विद्वजनमण्डलोपरिशोभित हो । पर थैठे। उनके ब्राह्मणमोका नाम गोविन्द था। गया था। विख्यात ज्योतिर्विद् भास्वतीकार शतानन्दने ! इन्हा अनियङ्कभीमके समय (६७१ हिजरोमे) जाजनगर उन्हींके समय पुरुषोत्तममें रह कर इस स्थानको केन्द्र . ( उत्कल ) के ऊपर मुसलमानोंका प्रथम दृष्टि पड़ी। वना अपना ज्योतिपिक फलाफल प्रकाश किया है। किन्तु मुसलमान लोग कुछ कर न सके । भनियक्ष- प्रसिद्ध भालङ्कारिक महिमभट्ट उनके लड़के उमा- के राज्यकालमे १९१५से ११२० शकके मध्य प्रसिद्ध मेधे. वल्लभका नाम दे कर 'व्यक्तिविवेक' नामसे अलङ्कारग्रन्थ | श्वरमन्दिर बनाया गया। पीछे उनके लड़के वालदेवीके लिख गये हैं। गर्भजात ३य राजराज वा राजेन्द्रनं ११२०से ११४३ हगडा पर कस्तरिकामोदिनीके गर्भजात | शक पर्यन्त राज्य किया । चालुक्यकुलसंभूता सद्ध- कामार्णव यद्यपि १०६४ शकमे अभिषिक्त हुए, पर गुण वा मकुणदेवीके साथ उनका विवाह हुआ था। यथार्थमें उन्होंने पिताके मरनेके वाद हो १०६६ शकमें | उन्हीं के गर्भसे प्रवल पराकान्त अनङ्गमीमदेव उत्पन्न राज्यलाभ किया। पिता चोड़गङ्गको तरह इनकी भी हुए। ११४३ शकसे ले कर १९६० शक पर्यन्त इनका 'अनन्तवर्मा मधुकामार्णव' उपाधि थी। इन्होंने निरा- राज्यकाल माना जाता है। इनके शासनकालमे गौड़ाधिप • पदसे राज्य किया था, ऐसा प्रतीत नहीं होता। मुख- गयासुद्दीन इवाजने जाजनगर पर आक्रमण किया तथा लिङ्गके १०७० शकमे उत्कीर्ण शिलालिपिमें 'जटेश्वरदेव' कर उगाहनेकी चेष्टा की। अनङ्गभीमके ब्राह्मण-मन्त्री नामक एक व्यक्तिका ३य वर्ष राज्याङ्क देखा जाता है। ने उस मुसलमान राजके साथ युद्ध में बड़ी वीरता दिखाई अधिक सम्भव है, कि चोड़गड़के एकदम वुढ़ापेमें उस। यो । महावीर चोड़गङ्ग जिस चेदिराज रत्नदेवले परास्त न आरामबागसे 5 मील पश्चिम प्राचीन गढ़ मन्दा- Major Rarerty's Tabakat-i-Nasiri, p. 513-4. रन (वत्त मान भीतरगढ़) नामक स्थानमें उक्त सरकारका Maior Rarertr's Tabakat-i-Nasiri. n. सदर था। 1587.8.