पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६३४

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यांचा

द्वितीया और दशमीको उत्तर दिशामें, अष्टमी और अमा-1 शनिवारमें प्रतिपद्, एकादशी और षष्ठी तिथि होनेसे

• वस्याको ईशानकोणमे योगिनी रहती है। जिस ओर अमृतयोग होता है। यात्रामें यह योग अमृतके समान यात्रा करनी होगी, उसके किसी दिशामें योगिना अवस्थित काम करता है, इसीसे इसका नाम अमृतयोग पड़ा है। है यह पहले स्थिर कर ले, पीछे उसे वाम और पृष्ठदेशमें | वारके साथ तिथिका योगविशेष जिस प्रकार शुभाशुभ- . रख कर यात्रा करे। जनक होता है, उसी प्रकार नक्षत्र के साथ भी चारविशेष- दिनको यात्रा करनेसे वारवेला और रातको यात्रा के योगमेशभाशुभ होता है। करनेसे कालराति देख कर यात्रा करनी होती है। इस ___ नक्षत्रामृतयोग-रविवारमें' यदि उत्तरफल्गुनी, चारवेला या कालरात्रिमें यात्रा करनेसे अशुभ होता है। उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद, रोहिणी, हस्ता, मूला और वारवेला और कालरात्रि इस प्रकार स्थिर करना होगा। रेवती; सोमवारमें श्रवणा, घनिष्ठा, रोहिणो, हस्ता, 'दिनमानको आठ भाग करनेसे उसे यामाद्ध' कहते हैं। मूला और रेवती : सोमवारमें श्रवणा, धनिष्ठा, रोहिणी, रविवारमे चतुर्थ और पञ्चम यामाई, सोमवारेमें सप्तम | मृगशिरा, पूर्वाफल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद्, उत्तरफल्गुनी, उत्तर- और द्वितीय यामाद्ध, मङ्गलवारमें षष्ठ और द्वितीय, बुध. भाद्रपद्, हस्ता और अश्विनी ; मङ्गलवार, पुष्या, वारमें पञ्चम और तृतीय, गृहस्पतिवार में सप्तम और अश्लेषा, कृत्तिका, स्वाती, उत्तरभाद्रपद और रेवती। अटम, शुक्रवारमें तृतीय और चतुर्थ यामाई, शनिबारमें वुधवारमें कृत्तिका, रोहिणी, शतभिषा और अनुराधा .प्रथम, शेष और पष्ठ यामार्द्ध वारवेला है। इस बारवेला वृहस्पतिवारमें खातो, पुनर्वासु, पुष्या और अनुराधा ; के समय कभी भी यात्रा न करे। शुक्रवार में पूर्व फल्गुनी, उत्तरफल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद्, उत्तर- कालरात्रि-रविवारमें पष्ठ यामाई, सोमवारमें भाद्रपद, अश्विनी, श्रवणा और अनुराधा; तथा शनि- चतुर्थ, मङ्गलवार, द्वितीय, बुधवारमें सप्तम, वृहस्पति- वारमें स्वाती और रोहिणी नक्षत्र होनेसे नक्षत्रामृतयोग 'धारमें पञ्चम, शुकवारमें तृतीय, शनिवार, आदि और होता है। यह योग यात्राके लिये बहुत शुभ है। इस 'अन्त यामाई कालरात्रि है। इस कालरातिमें भी यात्रा करना मना है। योगमें यदि सारा दिन विष्टि व्यतीपातादि दोष रहे, तो _ 'यातायां मरण काले' इस वचनके अनुसार वारवेला जिस प्रकार सूर्य के उदय होनेसे अन्धकार दूर होता है, वा कालरात्रिमें यात्रा करनेसे मृत्यु होती है। इसको उस उसो प्रकार वह दोष नष्ट होता है।* छोड़ कर सिद्धियोग, अमृतयोग, नक्षत्रामृतयोग और

  • "शुक्र नन्दा वुधे भद्रा शनौ रिक्ता कुजे जया।

वामृतयोग होनेसे यात्रा शुभ होता है। इन सब योगों गुरौ पूर्णा च संयुक्ता सिद्धियोगः प्रकीर्तितः ॥ का विषय ज्योतिष में इस प्रकार लिखा है। चन्द्रार्कयोर्भवेत् पूर्णा कुजे भद्रा जया गुरौ । सिद्धियोग-शुक्रवारमें प्रतिपद्, एकादशी वा षष्ठी । बुधमन्दौ च नन्दायां शुक्रे रिक्ताऽमृता तिथिः-॥ -तिथि होने, बुधवारमें द्वितीया, द्वादशी और सप्तमी, शनि ध्रुवगुरुकरमूलापौष्यणमान्यर्कवारे वारमें चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी, मङ्गलवारमें त्रयो हरियुगविधियुग्मे फल्गुनी भाद्रथुग्मे । .दशो, अष्टमी और तृतीया तथा बृहस्पतिवारमें. पञ्चमी, दिवसकरतुरङ्गौ शर्वरीनाथवारे ‘दशमी, अमावस्या वा पूर्णिमा तिथि होनेसे सिद्धियोग गुरुयुगनलवातोपान्त्यपौष्यानिकौने। होता है। इस सिद्धियोगमें यात्रा करनेसे कार्यकी सिद्धि दहनविधिशताख्यामैत्रमं सौम्यवारे होती है। इसीसे इस योगकामका नाम सिद्धियोग हुआ है। मरुददितिभयुध्या मैत्रभं जीववारे । अमृतयोग--रवि और सोमवारमें पञ्चमी, दशमी, भगयुगजयुगश्वो विष्णुमैत्रे सिताहे .अमावस्या और पूर्णिमा, मङ्गलवारमें द्वितीया, द्वादशी श्वसनकमलयोनी सौरिवारेऽमृतानि ।। और सप्तमी ; बृहस्पतिवारमें त्रयोदशी, अष्टमी और यदि विष्टिव्यतीपातौ दिन वाध्य शुभं भवेत् । - तृतीया शुक्रवारमें चतुर्थी, नवमी और दशमी, बुध और . हन्यतेऽमृतयोगेन भास्करेण तमो यथा।"