पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६३६

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यावा. धारी तथा मधुरभाषी पुरुष अथवा स्त्रीसे भेंट हो जाय, | रहने पर भी लौट आना चाहिये। ( शाकुनदीपिका) तो कार्य सिद्ध होता है। यात्राकालमें हर्षयुक्त ब्राह्मण, समयप्रदीपमें लिखा है, कि यात्राकालमें निम्नलिखित वेश्या, कुमारी, बंधु, सुकेश मनुष्य, अश्वारूढ़ वा वृषा-! मन्त्र पढ़ कर गमन करे, इससे कार्यको सिद्धि होगी। सढ इन सवका दर्शन करनेसे भो शुभ होता है। छत्र "धेनुर्वत्सप्रयुक्ता वृषगजतुरगा दक्षिणावर्त वह्नि- धारी, शुक्लवस्त्रपरिधारो, पुष्प और चन्दनादि द्वारा चर्चि दिव्यत्री पूर्ण कुम्भा द्विजनृपगयिकाः पुष्पमालापताका । सद्योमांस घृत वा दधिमधुरजत' काश्चन शुक्नधान्य ताङ्ग, भोजनकार्यमें नियुक्त और पाठनिरत ब्राह्मण यात्रा कालमें इन्हें देखनेसे सर्वार्थसिद्ध होता है। गमनकालमें। दृष्ट्वा श्रुत्वा पठित्वा फलमिह लभते मानवो गन्तुकामः॥" (समयप्रदीप) पुरुष अथवा स्त्रो हाथमें फल लिये सामने मिले, तो। अभिलषित कार्या अति शीघ्र सिद्ध होगा। सवत्साधेनु, वृष, गज, तुरग, दक्षिणावर्त्तवह्नि, दिध्य- ___ हतगर्ना, अपमानित, अशाहीन, नग्न, अन्त्यज, तैल- स्त्री, पूर्णकुम्भ, द्विज, नृप, वेश्या, पुष्पमाल्य, पताका; प्रलिप्त, रजस्वला स्त्री, गर्भवती, रोदनकारिणी, मलिन- सद्योमांस, घृत, दधि, मधु, रजत, काञ्चन और शुक्लधान्य वेशधारी, उन्मत्त, विधवा, दीन, पंगु, मुक्तकेश, उष्ट्रस्थित.। ये सव वस्तु देख कर वा इनका नाम सुन कर या साथ गद भस्थ, महिषस्थ, संन्यासी और क्लीव याताकालमें ले कर यात्रा करनेसे मनोरथ सिद्ध होता है। घे सब देखनेसे कार्यकी सिद्धि नहीं होती और उसे यात्राकालमें यदि सामने रजक और पीछे नापित क्लेश होता है। तथा आगे तेलका डध्वा दिखाई दे, तो यात्रा न करे । जिसके गमनकालमें पीछे या सामने खड़े कोई यदि वकरा जमीन पर लेटता हो, गाय डकरती हो, आदमी यदि 'जावो' ऐसा कहे, तो उसे सव प्रकारके मनुष्य छींकता हो अथवा सामने क्लीव दिखाई दे, मङ्गल और सन्तोषलाभ होता है। यात्राकालमें लाभ, वो यात्रा रोक देनी चाहिये। जय, मंगल और अमंगल इत्यादि सूचक वाक्य द्वारा मृग, सर्प, वानर, विडाल, कुक्कुर, शूकर, पक्षी, उन सब फलोंका शुभाशुभ स्थिर करना होगा। । नकुल और मूपिक यात्राकालमें दाहिनी ओर दिखाई देने. ___ याताके समय अप्रभागमें रोदनध्वनि सुनाई देनसे । से शुभ होता है। उपद्रव, अग्निकोणमें भय, नैतकोणमें सुनाई देनेसे: कपास, औपध, तेल, पङ्क, अङ्गार, भुजङ्गम, मुक्तकेश. युद्ध में पराजय और वायुकोणमें समृद्धिलाभ तथा पृष्ठ- व्यक्ति, रक्तमाल्य और नग्नादि ये सब देख कर यात्रा देशमे सुननेसे सन्तानकी हानि होती है। किन्तु यात्रा-| करनेसे अशुभ होता है। कालमें क्रन्दनध्वनिनिवृत्ति सुननेसे लाभ तथा सम्मुख यात्राकालमें राहुके भ्रमणके प्रति लक्ष्य करना भी भागमें रोदन सुननेसे एवं शत्रुका क्रन्दन सुननेसे भी उचित है। निम्नोक्त प्रकारसे राहुका भ्रमण स्थिर किया कार्यकी सिद्धि होती है। यात्राकालमें गाय और शब्द- जाता है। दिनमानके आठवें भागका नाम यामाद्ध है। होन गाल देखनेसे उसी समय कोई न कोई अमंगल | वामावर्त्तमें अश्वगतिक्रमसे राहु प्रति याममें भ्रमण करता होगा | वाई ओर शृगालको जाते देखनेसे यात्रामें है। रविवारको आद्ययाममें पश्चिम, सोमवारको आद्य- शुभ तथा रात्रिकालमें यदि वहुतसे शृगाल इकट्ठे हो कर | याममे अग्निकोणमें, इसी प्रकार मङ्गलवारको वायुकोण- वाई ओर शब्द करे, तो भी शुभ होता है। यात्राकाल में | में, वुधवारको उत्तरमें, वृहस्पतिवारको दक्षिणमें, शुक्र- धाई ओर भ्रमरको देखनेसे भी शुभ होता है। गमन- | वारको नैऋतमें और शनिवारको ईशानकोणमें रहता कालमें यदि अनुन्नत मस्तक सर्प अथवा वामभागमें है । यात्राके समय सम्मुखस्थित राहु स्थिर करके उसका पश्चनखी दिखाई दे तो शुभ होगा। किन्तु आधे रास्ते परित्याग कर यात्रा करे। सम्मुखस्थ राहुमें यात्रा करने. यदि उन्नतमस्तक सर्प दिखाई दे, तो कभी भी आगे से बहुत अमंगल होता है। . नहीं बढ़ना चाहिये। यहां तक राज्यलाभको सम्भावना जहां विशुद्ध दिन न मिले और जल्दो जाना हो वहां Vol. xviII, 159