पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६३९

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यात्रा उत्सवका खर्च चलता है। यह कुमारी नेपालमें 'अष्ट- धारी रामके सिवा अन्यान्य कृष्णलीलाओंको भी करते मातृका के रूपमें पूजी जाती है। रहते हैं। इस समय यह रथयात्रा. उत्सव यथार्थमें यात्रा श्रीचैतन्यदेवके समयमें जो सव यात्रा या देवलीलाओं- रूपान्तरित हुआ है। राजाने अन्यान्य देवीप्रतिमाके | का अभिनय होता था, वे कुछ अंशोंमें उसीके अनुरूप द्वारपाल या भैरवको तरह इस कन्याके भी द्वारपाल- है, इसमें सन्देह नहीं । वैष्णव अधिकारियोंकी रासयात्रा, स्वरूप दो वांढा बालकको सजा कर 'गणेश और महा- | कृष्णयात्रा, चण्डीलीला (यात्रा) आदि इस प्राचीन काल' निकाला था । उसी समयसे यह उत्सव उसी । यात्राके आदर्श पर गठित होने पर भी इसमें यथेष्ट विशे- भांतिसे मनाया जाता है। इस समय वाढावंशके। षत्व और विभिन्नता दिखाई देती थो। आज कल इन दो बालक और एक बालिका हर तीसरे वर्ष इस । देवलोलाओंके जिस तरह चरित्राभिनय होते हैं, वे एक उत्सवके लिये चुने जाते हैं। इनका भरणपोषण उसी सम्पूर्ण नये सांचेमें ढाले मालूम होते हैं । कितने दिनोंसे जागीरकी आयसे होता है, जो राजाने दे रखा है।। और किसके द्वारा यह नवयात्रापद्धति प्रचलित हुई है, बालकोंको डेढ़ हजारके हिसावसे और बालिकाको तीन उसका जानना सहज वात नहीं। हजारके हिसावसे वार्षिक मिलता है। किंतु उत्सवका ' चैतन्य महाप्रभुके बाद इस समय तक वैष्णव अधि- खर्च भी इन लोगोंको इसी रकमसे ही देनी पड़ती है। कारियों द्वारा कृष्णलीला सम्बन्धीय जा अभिनय कार्य इस तरह ये तीन या चार वर्षों के बाद नये-नये चुने जाते होता था, वह कालीय-दमनके नामसे लमे प्रसिद्ध हैं। उस समय पुराने तीनों वालक वालिका अपने । था। कालीय झीलमें कालीयनागको श्रीकृष्णने नाथा समाजमें मिल जाते हैं और नये निर्वाचित तीन वालक था, उसी घटनाके आधार पर पहले एक यात्रा अभिनीत बालिका निर्दिएकाल तक दरवारके सामनेके देवताके हुई होगी. उसीका नाम 'कालोयदमन' हुआ होगा। इसो मकानमें आवद्ध रहते हैं। यह उत्सव पश्चिम प्रान्तीय समयसे कृष्णलोला-सम्बन्धोय यात्राने ही कालीयदमन- रामलीलासे वहुत कुछ मिलता जुलता है । उसमें भी को ख्याति प्राप्त कर ली है। ऐसे हो राम, लक्ष्मण और सीताके लिये तीन वालिका | ऐसी कोई बात नहीं, कि केवल कृष्णलीला हो वङ्गालमें और चालकोंका प्रयोजन होता है। यात्राका प्रधान विषय वन गई थी। वङ्गाली राम आदि प्राचीन देवलीला-यानाकी छायासे किस तरह अवतारोंको लीला और चरित्रका अभिनय भी करते वर्तमान यात्रा गठित हुई थी, उसका कुछ आभास नेपालकी यात्रापद्धतिके अनुसरण करनेसे मिलता है। प्राचीन यात्रा। . नेपालका यात्राभिनय अति प्राचीन प्रथाका हो नमूना दक्षिणके महिसुर और त्रिवांकुड़ राज्यमें बहुत वर्ष है, वह पुराविमात्र ही स्वीकार करते हैं। इसी तरह पहलेसे यात्राका प्रथा प्रचलित है । नम्मुत्तिरी (नम्पुत्रीय पिछले समय उत्तर-पश्चिमप्रदेशमे श्रीकृष्णका लीला- ब्राह्मणोंमे सामाजिक धर्मनाट्याभिनय करनेके लिये भिनय कई अंशोंमे विकृत होता आ रहा था, वर्तमान अट्ठारह संघ या सम्प्रदाय हैं । यह अभिनय 'यात्राकलो' समयमें जो वालक कृष्णलोलाका अभिनय करते हैं उन- और 'कथाकली' नामसे दो तरहका है। को रासधारी कहते हैं। वङ्गालमें जिस तरहसे अभिनय करनेवाले नेपथ्यसे रङ्गभूमिमें आते और अपने कर्तव्य ____ यात्राकलो उत्सवके दिन सन्ध्या समय इसी श्रेणी- को पूरा कर चले जाते हैं, युक्तप्रदेशमें ये ऐसा नहीं | के ब्राह्मण एकत्र हो कर भगवतीके लिये पवित्र दीप करते। उनमें कोई नन्द, कोर्ड यशोदा, कोई कृष्णा, | । जलानेके बाद वे किसी दालान या बड़े कमरे में गण- कोई श्रीमती राधाका रूप बना कर एक हो समय आते | पति और शिवकी स्तुति गान करते हैं। इसीके साथ और अपने अपने कर्त्तव्यों का पालन करते रहते हैं । रास- | भूत पिशाचोंका नाच और भगवतीका गान भी होता आते हैं।