पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६४०

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६३७ यात्रा है। इसके बाद 'यात्राकली' के नम्मुत्तिरि नामक ब्राह्मण हिन्दू-राजाओंके समयसे भारतवर्ष में सर्वत्र यात्रा तरह तरहका कौतुक किया करते हैं। या लोलाओंका समादर होता है। बङ्गाल में भी रास- मलवारके रहनेवाले नम्मुत्तियोंके अत्यन्त प्रिय यात्राकी सृष्टि कुछ कम दिनकी नहीं। कुछ लोग सम- कथाकलिका अमिनय प्रायः ३०० वर्ष पहले कोत्तरकर- झते हैं, कि रामलीला या यात्राके बहुत दिन बाद कृष्ण- वंशीय एक राजाने चलाया था। राम नाट्यका अभिनय लीला या यात्राको श्रीचैतन्यदेवके समयसे सृष्टि हुई है। हो इनका प्रधान कार्य है। रातको ८१० घंटे तक यह सदलवल श्रीचैतन्य महाप्रभु कृष्णलीलाका अभिनय अभिनय होता है। एक एक आदमी राम, सीता, नारद करते थे। उनका राधाभाव देख कर आपामर साधा- मुनि, सूर्पनखा, भांड या विदुषक, क्षत्रिय, असुर, राक्षस, / रण विमोहित हो जाते थे। जनताके सामने जव उनका वानर, पक्षो, किरात, राक्षसी और क्षत्रिय-रमणोकी वह प्रेममय अभिनय होता था, उस लोगोंको विश्वास भूमिका किया करते है। उनको वेशभूषा और हावभाव हो जाता था, कि उनको भाषा वंगला है। इसी समय- देखनेसे वे किस अंशका अभिनय करते हैं, यह स्पष्ट ही से वङ्गभाषाकी उन्नति तथा वङ्गभाषामें प्रकृत नाटक- समझमें आता है। रङ्गन्धलमें आ कर वे अपने अपने अंश- रचनाका समय आरम्भ हुआ। की आवृत्ति कर जाते हैं। संगीतके लिये 'भागवतर' नाम लोचनदासके श्रीचैतन्यमङ्गलमें लिखा है, कि चैतन्य. का एक अलग आदमी रहता है। जहां गानेका काम पड़ता देखने गोपिकारूप धारण कर श्रोचलशेखराचार्य के घर है, वहां यही व्यक्ति गाता है। कहाँ कहाँ जनताका ध्यान नाच किया था। यहां श्रीवासने नारदके आवेशसे प्रभुके आकृष्ट करने तथा उसके मनोरञ्जनके लिये पुतलीके चरणमें प्रणाम कर अपनेको दास कह कर परिचय दिया । नाचकी तरह रंगभूमिमें निर्वाक अभिनय ( Dumb / था। गदाधर, श्रीनिवास, हरिदास, अद्वैताचार्य आदि Show ) भी होता है। इस तरहको यात्राका अभिनय इस अभिनयमें योगदान किया था। लोचनदासने वैष्णव- अनेकांशमें आज कलके थियेटरोंकी तरह ही कहा जा के उस समय के भाव और वेशभूषा आदिको भी वैसी सकता है। -सिवा इसके 'यात्राकली'को तरह यहां हो उल्लेख किया है। 'ईझामत्तुकली' नामक एक और यात्रागानको प्रथा दिखाई ____ कृष्णदास कविराज नामक एक वंगालोके रचे देती है। इसमें एक एक आदमी रंगभूमिमें आ कर श्रीचैतन्यचरितामृतमें लिखा है-एक दिन श्रीवासके अपने पार्ट किया करते हैं। ___ अयोध्यापति भगवान् रामचन्द्रकी तरह अथवा गृहमें महाप्रभुने आवेशमें विभोर हो वंशोको प्रार्थना भगवान श्रीकृष्णकी तरह अलौकिक क्षमताशाली राजा की। श्रीवासने कहा, कि गोपियोंने वंशो हर ले गई और महापुरुष प्रधानतः नाटकके नायक हुआ करते हैं। हैं। इसी सम्बन्धमें श्रीवासाचार्य महाप्रभुकी वृन्दावन- अतएव रामलीला या कृष्णलीला, गोत, नाट्य दिखाना लीला, वनविहार, रासोत्सव आदि कृष्णलीला गान हो यालाका प्रधान विषय हो गया था। कान्यकुब्ज या सुनाने पर वाध्य हुए थे। यह सुन कर महाप्रभु निमाई- कनौजके राजा हर्षवर्धन और शाकम्मरोके चाहमान- एक दिन रासलीला की थी। वंशीय राजा विग्रहपाल जिस तरह सबके सामने अपने | ___ इसी रासलीला या यात्रा तथा नौकाविहार अपने पार्टीका अभिनय कर साधारणकी तृप्ति किया। यात्राका अनुकरण कर वर्तमान यात्राको सृष्टि हुई है। करते थे, ऐसे ही उत्तर पश्चिमप्रदेशके कोई संभ्रान्त युक्तप्रदेश तथा बिहारमें जिस तरह रामलीला होती वंशमैं और तो क्या मणिपुर-राजवंशमें भी अपने है, पहले रासलीला भी वैसे ही होती थी अर्थात् एक अपने परिवारमें अभिनेता और अभिनेत्री निर्वाचन कर अङ्कका अभिनय एक ही जगह पूर्ण कर दूसरी जगह कृष्णलोलाकी रासयात्राका अभिनय करनेको चिरपद्धति | दूसरे अङ्कको पूरा किया जाता था। दर्शकमण्डलो भी प्रचलित है। यात्राकारियोंके पीछे पीछे उनका अनुकरण करती था। Vol. XVIII, 160