पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६४४

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यात्रा १४१ · उड़िया कलकत्तानिवासी वीरनसिंह मल्लिकका नौकर | कर बाहर निकलते थे। चोली वा टकाई साड़ी रानी था। उक्त वीरनसिंह महाशयने बहुत धन खर्च कर इस अथवा राजकन्याओंकी पोशाक थी। ये सब कपड़े या दलका संगठन किया था। सिंगुडनिवासी भैरवचन्द्र हाल- अलङ्कारादि प्रायः याला करानेवालोंसे ही ले लिया करते दारने इस मंशके गाने आदिको रचना की थी। बावूको थे, यात्राभङ्गाके वाद लौटा देते थे। इस समय जिन अपने मकान (इस समयका Speace Hotel) वेंच देनेसे सव दलोंकी यात्रा हुई थी, वे प्रायः अपने अपने अध्यक्ष एक लाखसे अधिक रुपया मिला। इसी धनसे यात्राका अथवा पृष्ठपोषक अथवा गृहस्थले बहुमूल्य सोनेका अल. खर्च चलता था। केवल तीन आसर गाने हुए थे। झार, मोतोको माला और परिच्छदादि ले कर यात्रा ___ तदनन्तर टीकाके सुप्रसिद्ध जमोदार मुन्सो वैकुण्ठ करते थे। नाथराप चौधरी महाशयके अनुग्रहसे वहां एक सखका पूर्वपद्धतिके अनुसार जो सव कालियदमन यात्रा दल कायम हुआ । टाकी दल के समय हवड़ा जिलेके उस समय प्रचलित थी उसमें नत्तक द्वारा जैसा नृत्य अन्तर्गत कोणाके जमींदार दीननाथ चौधरी द्वारा प्रतिष्ठित होता था, वह वर्तमान विंगालको नृत्यप्रणालीसे विल- . एक शौकोनोदलका नाम बहुत फैल गया। उस दलका : कुल स्वतन्त्र था। अभिनीत' हरिश्चन्द्रका पाला' कवि ठाकुरदास द्वारा पुरानो पद्धतिको छोड़ कर नई पद्धतिका अनुसरण रचा गया है। जब तक वह दल रहा, तब तक हरिचन्द्र- करनेसे ही यात्रा-सम्प्रदायमें एक संस्कार-युग (age of का हो पाला किया करता था। roformation )के प्रवर्तनका सूत्रपात हुआ है, ऐसा दुगो घडेल (दुर्गाचरण घड़ियाल ) की यात्राका , कह सकते हैं। इस संस्कारमें सुर, नाच, गान, भाषा, दल नीलकमलके कुछ वाद ही प्रसिद्ध हुआ। यह दत्त । भाव और घेशभूपादिका विलकुल परिवर्तन हो गया वंशीय कायस्थ-सन्तान थे। नलदमयन्ती, कलङ्कमान तथा वाद्य संगोतमें भी बहुत कुछ हेरफेर किया गया। और श्रीमन्तका मशान नामक तीन पाला ही यह गा , कहनेका तात्पर्य यह है, कि इस समय देशी लोगोंकी गये हैं। दुर्गाचरणके दलमें क्योवृद्ध दोयारके बदले सु. रुविके अनुसार सभी ओर सभ्यताको कृपादृष्टि पड़ गई मधुरकण्ठ वालक दीयारको प्रसिद्धि देखी जाती है। दो थी। पूर्णकालकी भाषा और भावके परिवर्तनसे अभि- दो करके चारों ओर अव आठ लड़के खड़े होते और गोन। नेताओंको वातचीत बहुत कुछ परिमार्जित और परि- शुरू करते थे, तव श्रोताके आनन्दको सीमा न रहती थी। शोधित तो हुई थी, परन्तु आदिरसघटित अश्लीलता. दुगो घड़े लेकी मृत्युके बाद लोकनाथदास उर्फ सूचक संगीत रचनाका प्रभाव विलकुल न सका । वरन् लोकाधोपा (यह चासाघोपा जातिका और कलकत्ते के वह दिनों दिन बढ़ता ही गया। कैलास वाईको स्वभाव- 'वेणेपुकुरका रहनेवाला था )ने अपना जीवनयात्रा हो । संगीत रचना उसका प्रकृष्ट प्रमाण है। व्यतीत किया। ४१४२ वर्ष याता गा कर वे लाखपति यात्राके इस नैतिक-संस्कार-युगमें संस्कारके प्रवर्तक हो गये हैं। लोकनाथके गोतकी ऐसी प्रसिद्धि थो, कि रूपमें मदन मास्टरके यालादलका अभ्युदय हुआ। ५६ कोस दूरसे लोग उनका गीत सुनने आते थे। । मदनवावू पहले हुगली कालेज में शिक्षकका काम करते नीलकमल सिंहका गाना ठीक यात्राके जैसा होता । थे। पोछे कर्मसूत्रक कुचक्रमें पड़ कर उन्होंने शौकीनो था। उस समय वेशभूषाकी उतनी परिपाटी न थी। यात्रादलका संगठन किया। उन्होंने बड़ी पारदर्शिता राजाका परिच्छद कमरबंद, ढोला पाजामा, चपकन, | और सुकौशलसे इस दलको चलाया । जव इस दलका कमरवंद या कमरपेटी और सिरकी पगड़ी, होता खर्चवर्ण वे जुटा न सके, तब उन्होंने उसे पेशादारी दल था। कभी कभी सिर पर सफेद कपड़े की पगड़ी बांध बना लिया। वे मास्टरी करते थे। इस कारण उन्हें कर भी राजा रङ्गभूमिमें उत्तरते थे। राजपुल भो ढीला | मदन मास्टर नामसे ही पुकारते थे। और भी विशेषता पाजामा, चपकन और सिर पर जड़ीकी टोपी पहन | यह थी, कि वे ही यात्रा-दलके अधिकारी थे, अतएव उनके Val, XVIII, 161