पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६४९

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यादवराजवश . वर्द्धनके पौत्र वीरवल्लाल होयसल सिंहासन पर बैठा।। १११३ शकमें भिल्लमके पुत्र जैलपाल वा जैतनि पित. उन्होंने अन्तिम चालुक्याधिप ४थ सेग्मेश्वरके सेनापतिको सिंहासन पर अभिषिक्त हुए। उन्होने अपने पिताके परास्त किया तथा उनके करतलगत विजणके सामन्त | साथ कितने युद्धोंमें अपनी वीरताका परिचय दिया था. राज्यको छोन लिया। इधर उत्तरके यादववंशने भी यह | तथा तैलङ्गाधिपति ( काकतेय ) रुद्रका मेध ले कर नर- मौका हाथसे जाने नहीं दिया। मल्लूगि विजणके साथ | मेधयज्ञ सम्पन्न किया था। पैठनके ताम्रशासनमें भी युद्ध में लिप्त हुए । दादा नामधारी उनके सेनापतिने रण-| लिखा है, कि जैतुगिने त्रिकलिङ्गाधिपतिको युद्ध में मारा. क्षेत्रमें कलचूरिरोजके सामने उतर यादवराजका मुख गणपतिको कारामुक्त कर सिंहासन पर बैठाया और उज्ज्वल किया था। जाहणकी सूक्तिमुक्तावलिमें लिखा, आन्ध्रोंको स्वामिसुखसे वञ्चित किया। यह गणपति है, कि मल्लूगिके चार पुत्र था, महीधर, जह, साम्ब और और कोई भी नहीं थे, काकतेय सदके भतीजे थे । शायद गङ्गाधर । उनमेंसे महीधर पितृसिंहासन पर बैठे। इन्हों. चचाने ही इन्हें कैद किया था। विख्यात ज्योतिर्विद् ने विजण-राजकी सेनाको विध्वस्त किया था। भास्कराचार्यके पुत्र वेदादि सर्वशास्त्रवित् लक्ष्मोधरने मल्लूगिके वोरपुत्र भिल्लमके हो प्रतापसे सारा | जैतुगिकी सभाको उज्ज्वल किया था ! यादवपतिने उन्हें चालुक्य-साम्राज्य यादवोंके आधिकारमुक्त हुआ था। पण्डितराजपद पर अभिषिक्त किया। . उन्होंने कुन्तलराजाको परास्त कर श्रीवर्धननगर जीता, ___ जैत्रपालके पुत्र सिंघण थे। उनके शासनकाल में रणक्षेत्रमें प्रत्यन्तकराजको विध्वस्त किया, मङ्गलवेटकके यादवराज्यको सीमा बहुत दूर तक फैल.गई थी। उनका अधिपति विहणकी हत्या की तथा होसल ( सम्भवतः | अभिषेकान्द ११३२ शक माना जाता है । जाहणकी वीर वल्लालके पिता होयसल यादव नरसिंह ) राजाको | सूक्तिमुक्तावलिमें लिखा है, कि, जाहणके भाई यमपर भेज कर कल्याणराज्य अपनाया था। इन सव सुविख्यात गङ्गाधरके पुत्र जनार्दनके निकट सिंघणने महा-युद्धोंमें महीधरके भाई जह उनका सेनापति और गजशिक्षा पाई था । उसीके प्रभावसे वे मालव- दाहिना हाथ था। पति अर्जुनका ध्वंस करनेमें समर्थ हुए थे। हेमाद्रिने उन्होंने गुर्जरसैन्यके मध्य मतवालो हाथी चला कर लिखा है, कि उन्होंने जजल्लराजको परास्त कर उनके मल्लको डरा दिया तथा मुञ्ज और अन्नको यमपुर भेज हाथियोंको अपनाया, कक्कूलराजको सिंहासनसे उतारा, दिया था । इस प्रकार भिल्लम कृष्णके उत्तरवत्ती अर्जुनको मारा और भोजको कैद किया था। फिर विस्तीर्ण जनपदको अधिकार कर देवगिरि नगर वसाया उन्होंने अवहेलामें रम्भागिरिके वीरकेशरी लक्ष्मोधरको और ११०६ शकमें सिंहासनको सुशोभित किया। अभी हराया, अश्वसादीके कौशलसे धारापति पर आक्रमण से देवगिरिमें यादववंशक राजधानी हुई। किया और वल्लालके सभी राज्यों पर अधिकार भिल्लम दक्षिणांशमें अपना राज्य फैलानेके लिये जमाया था। अग्रसर हुए। किन्तु होयसल यादववंशीय वल्लाल उस हेमाद्विवर्णित जजल्ल पूर्व-चेदिवंशीय विस्थात जजल्ल- समय दक्षिणके अधिपति थे। दोनों में घमासान लड़ाई देवथे।छत्तीसगढ़प्रदेश उनके अधिकारमें था। कक्कूल छिड़ी, दोनों ही साम्राज्यलाभके अभिलाषी थे, अतएव पश्चिम चेदिराजवंशीय सुविख्यात कोक्कलदेव थे। त्रिपुर वह घमसान युद्ध सहजमें बंद हुआ। आखिर धारवाड़ वा तेवारमें उनको राजधानी थी। जिलेके लोकिगुण्डि (वर्तमान लपकुण्डि) नामक स्थान ___ इसके अतिरिक्त सिंहणने महासमरमें मथुरा और में जो भीषण संग्राम छिड़ा उसमें भिल्लमका दाहिना काशीपतिको परास्त किया था। उनके एक वालक- हाथ जैनसिंह मारा गया तथा वोरवल्लाल कुन्तलका सेनापतिके निकट हम्मीरने अपनी पराजय खीकार की अधिपति वन बैठा । १९१४ शकमें यह घटना घटी। इस थी। गइकले आविष्कृत ११३५ शकमें उत्कीर्ण शिला- प्रकार उत्तर-यादववंशके हृदयसे कुछ दिनके लिये कुन्तल जीतनेको भाशा जाती रही। | लिपिसे यह साबित होता है, कि इसके पहले ही वीर