पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६५०

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यादवराजवंश वल्लाल अपने अधिकारका दक्षिणांश खो बैठे थे। पन्- | महामण्डलेश्वरराणक श्रीलादण्यप्रसादस्य च । साम्राज्य- हालके भोज नामक प्रसिद्ध शिलाहारपति जब सिधणसे कुलश्री श्रीमसिंहणदेवने महामण्डलेश्वर राणश्री. परास्त हुए, तब कोल्हापुर तक यादवोंके अधिकारमें आ लावण्यप्रसादेन पूर्वरूढ्यान्मोयदेशेषु रहणीयं । केनापि गया था। उक्त जिलेके खेद्रापुर प्राममें जो कोप्पेश्वर- कल्यापि भूमोना क्रमणीया।" मन्दिर है उसमें ११३६ शकको उत्कीर्ण सिङ्घणराजको ___ अर्थात्-१२८८ संवत् (१९३१ ई०) वैशाखको १५वीं शिलालिपि देखी जाती है। उन्होंने कई बार गुजरात सुदि (शुक्लपक्षमें) आज इस सोमवारको जयस्कन्धवारमें पर आक्रमण किया था। वहां आम्बेस ग्राममें उत्कीर्ण महाराजाधिराज श्रीमसिंहणदेव और महामण्डलेश्वर पक शिलालिपिसे जान जाता है, कि यादव-सेनापति राणक श्रोलावण्यप्रसादको सन्धि हुई । साम्राज्यभोगी ब्राह्मणमवर खोलेश्वरने गुजरपतिका दर्प चूर्ण कर श्रीमसिहणदेव और महामण्डलेश्वर श्रीलावण्यप्रसाद मालव और आभीर-रोजवंशको ध्वंस कर डाला था। कर्तृक अपने अपने राज्यको पूर्नसीमाके अनुसार रहा, और तो क्या, उन्होंने अपने मालिक सिंधणको समीकोई भी किसीको भमि पर आक्रमण नहीं कर सकता। आशा पूरी की थी। खोलेश्वरके बाद उसका लड़का सेना- लवणप्रसाद देखो। पति हुमा । उसने भी नर्मदाके किनारे गुजर-सेनाका मुकावला किया था। वहुतसे गुर्जर उसके हाथसे मारे सेनापति खोलेश्वरने उत्तरमें जिस प्रकार अपने प्रभु- जाने पर भी आखिर वह शत्रु के हाथसे यमपुरका मेहमान | के शत्रुके साथ समरानल प्रज्ज्वलित किया था, दक्षिण- बना । कीर्तिकौमुदीके रचयिता सोमेश्वरने लिखा है, कि में उनके प्रतिनिधि वाचन वो वीचने उसी प्रकार विपक्ष चौलुक्यराज लवणप्रसाद और उसके लड़के वीरधवल समुद्रको मथ डाला था। वीचन मल्लके छोटे भाई थे। शासनकालमें यादवपति सिंघणने गुर्जर पर आक्रमण | उन्होंने दक्षिणमहाराष्ट्र के रहसामन्तोंको, कोणके कदम्वों किया। उनके भयसे प्रजा सहित और व्याकुल हो| को, प्राचीन गुप्तवंशसम्भूत दक्षिणके गुप्तराजाओंको तथा भागनेकी तैयारी कर रही थी। सैकड़ों ग्राम कारखार पाण्ड्य, होयशल, दक्षिणप्रदेशके सामन्तोंको परास्त कर हो गये थे। इस समय मारवाड़के चार राजाने लवण- कावेरीके किनारे जयस्तम्भ गाड़ दिया था। ताम्रशासन- प्रसाद और वीरधवल विरुद्ध अwair किया से जाना जाता है, कि ११६० शक (१२३८के पहले ) उनके अधीन गोधरा और लाटके सामन्तगण रणक्षेत्र में उक्त घटना घटी थी। उनका पक्ष छोड़ कर मारवाड़के पक्षमें मिल गये थे।। ___ यथार्थमें यहां समय यादव-इतिहासका समुज्ज्वल अतएव लवणप्रसादको यादवसैन्यके विरुद्ध न जा कर! काल है। यादवसाम्राज्य बहु विस्तीर्ण और प्रभूत मारवाड़के राजाओंका दमन करने के लिये जाना पड़ा। समृद्धिशाली हो गया था । यादवपति सिंहणने 'महा- था। अव यादवसेना आगे न बढ़ कर फिर लौटी। राजाधिराज' और 'पृथ्वोवल्लभ' को उपाधि पाई थी। कीत्तिकौमुदीके इस वर्णनसे भी सिंघण कत्तु के गुज- कृष्ण द्वारकामें राज्य करते थे। इसका कारण उस वंशके रात-आक्रमणका हाल जाना जाता है। शायद गुर्जर सिंहण और उनके वंशधरगण "बारवतीपुराधीश्वर" पतिने यादवराजको अधीनता स्वीकार कर ली होगी, उपाधिसे भी भूपित थे। उनके और उनके परवत्तों दो नहीं, तो कब सम्भव है,कि आक्रमणकारी सहजमें लौट यादवराजके समय कश्मोर कायस्थ सोढ़ल 'श्रीकरणा- आता।"लेखपञ्चाशिका" नामक एक संस्कृत ग्रन्थ गुज- धिप' वा लेख्य विभागके अध्यक्ष ( Chict secretary) रातसे पाया गया है । उसमें सिंहण और लवणप्रसादकी | थे। उनके बाद प्रसिद्ध पण्डित हेमाद्रि उस पद पर सन्धिका हाल इस प्रकार लिखा है- नियुक्त हुए। श्रीकरण सोढलके पुत्र शाङ्गधर एक "संवत् १२८८ वर्ष वैशाख-सुदि १५ सोमेऽद्य ह । विख्यात सङ्गीतशास्त्रविद् थे। उन्होंने 'सङ्गीतरत्नाकर' श्रीमद्विजयकटके महाराजाधिराज श्रीमत्सिंहणदेवस्य | की रचना की । सम्राट सिक्षण इसके टीकाकार थे