पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६५१

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यादवरोजवंश भास्कराचार्य के पौत्र और लक्ष्मीधरके पुत्र चाङ्गदेव तथा भाष्यके ऊपर वाचस्पति मिश्रको भामती नामक जा भास्कराचार्य के भाई श्रीपतिके पौत्र अनन्तदेव राज- टीका है अमलानन्दनने 'वेदान्तकल्पतरु' नामले उसकी ज्योतिर्विद् थे। चाङ्गदेवने खान्देश-जिलेके पाटना नामक टीका लिखी है। यह अमलानन्द कृष्णराजके ही एक स्थानमें अपने पितामहरचित सिद्धान्त-शिरोमणिका पाठ सभापण्डित थे। करनेके लिये एक मठ खोला था । उस पाटना निकट । ११८२ शक (१२६० ई०)में कृष्णके बाद उनके भाई वत्तो एक प्राममें अनन्तदेवने ११४४ शकाब्दकी श्ली। महादेवने राज्यलाभ किया। उन्होंने तैलङ्ग, गुर्जर, चैत्रको एक भयानो मन्दिरकी प्रतिष्ठा की। कोडण, कर्णाट और लोटराजका दा चूर्ण किया था। सिणक पुत्र जैतुजगी वा जैत्रपाल थे। उनके हेमाद्रिने लिखा है, कि महादेव स्त्री, बालक और शरणा. सम्वन्धमें हेमाद्रिने लिखा है, कि ये सभी कलाओंके । गत पर कभी भी अस्त्र नहीं छोड़ते थे। इस कारण आलय और विद्वेषी राजाओं के कालखरूप थे। इनके अन्ध्रोजे एक रमणोको और मालवोंने एक वालकको भाग्यमें साम्राज्यभोग बदा न था, ऐसा मालूम होता है। सिंहासन पर बैठाया था। उन्होंने तैलङ्गाधिपके हाथियों उन्होंने केवल पिताको 'युवराज' पद पाया था। क्योंकि, और पञ्चसङ्गीतयन्त्रको छीन लिया था तथा रुद्रमाको सिखणने १९६६ शक पर्यान्त राज्य किया। उनके पौत्र स्त्री कह कर छोड़ दिया था। हम लोग देखते हैं, कि कृष्णका १२७६ शकके प्रवादीसंवत्सरमें उत्कोर्ण ताम्र- यादवपति जैतगिक वाहवलसे जिस कामतीय गणपतिने शासन पाया जाता है। उसमें उनका राज्याङ्क है, इस मुक्तिलाम किया था, विद्यानाथके प्रतापरुद्रीय नाटक, हिसावसे सिंहणके बाद हो जैत्रपालके पुत्र कृष्ण ११६९ वह गणपति अपना राज्य कन्याको दे रहा है। कन्या शकमें मभिषिक्त हुए थे, ऐसा मालूम होता है। होने पर उन्होंने अपनेको 'राजा' कह कर घोपित कर कृष्णका प्रकृत नाम कन्हार, कनहर वा कन्धार था।) दिया था, उन्होंने अपने दौहित्रको उत्तराधिकारी बनाया वे मालव, गुजरात और कोकणक राजाओंके आतङ्कथा। वह गणपति-कन्या 'रुद्रमा' के सिवा और कोई भी स्वरूप, तैलराज प्रतिष्ठापक और चोलाधिपति भी थे। नहीं है। महादेवने बहुसंख्यक निषादी ले कर कोङ्कण- हेमाद्रिके वर्णनसे ज्ञात होता है, कि उन्होंने गुर्जरपति पति सोमेश्वर पर हमला कर दिया । स्थलयुद्धौ परास्त वोसलकी विपुल वाहिनीका मार भगाया था । जनार्दन- 'हो कर कोकणपति नावसे भाग गये थे। किन्तु महादेव- के पुत्र लक्ष्मीदेव उनके विज्ञ मन्त्री थे। उन्हींके अस्त्रवल | रूपी वड़वानलसे वे आत्मरक्षा करनेमें समर्थ न हुए 'से वे शत्रु विजयी हुए थे। नाना यज्ञका अनुष्ठान करके उनकी पराजयसे कोङ्कणराज्य भी यादव साम्राज्यभुक्त भी उन्होंने विलुप्त वैदिक मार्ग प्रवर्तनको चेष्टा की थी। हो गया था। पण्ढरपुरस्थ ११९२ शकमें उत्कीर्ण शिला बेलगामसे आविष्कृत ११७१ शकके ताम्रशासनमें लिखा लिपिमें महादेवको "प्रौढप्रताप-चक्रवत्ती उपाधि देखी है, कि सिंहणके प्रतिनिधि वोचनके बड़े भाई मल्ल कृष्ण- जाती है। उस शिलालिपिमें काश्यपगोत्रीय केशव नामक 'के अधीन हुण्डीप्रदेशके शासनकर्ता थे। उन्होंने एक ब्राह्मण कत्तुक अप्तोर्याम यशानुष्ठानका उल्लेख है। कृष्णराजकी सलाहसे बत्तीस विभिन्न गोत्रीय ब्राह्मणोंको महादेवके पुत्र आमण थे। किन्तु हम लोग महादेव बागेवाड़ी ग्राममें शासन दान किया था, इन सव ब्राह्मणों के बाद कृष्ण के पुत्र प्रकृत उत्तराधिकारी रामचन्द्रको में पटवर्धन, पैसारू, घलिदास, घलिस, पाठक, चित्र- ११९३ शक ( १२७१ ई० ) में अभिषिक्त होते देखते हैं। वाड़ी आदि उपाधि देखी जाती हैं। लक्ष्मीदेवके पुत्र ठानासे आविष्कृत उक्त रामराजके ताम्रशासनसे मालूम जहलन अपने छोटे भाईके साथ कृष्णराजको हमेशा होता है, कि उन्होंने मालव और तैलङ्गाधिपके साथ शलाह दिया करते थे। इसके सिवा वे निषादसमूह- समरानल प्रज्वलित किया था। यही तैलङ्गाधिप प्रताप के अधिनायक भी थे। वे "सूक्तिमुक्तावलि" नामक ब्द हैं। उनके समरकी बात "प्रतापरुद्रीय" नाटकमें एक संस्कृत कवितासंग्रह सङ्कलन कर गये हैं। शारीरक-1 लिखी देखी जाती है। महिसुरसे भी रामचन्द्रको